कल्याण आयुर्वेद- गर्भावस्था में वास्तविक मधुमेह नहीं पाया जाता . गर्भावस्था में इस रोग में अधिकतर दुग्ध शर्करा ही पाई जाती है जो स्थानीय दुग्ध से रक्त में आ जाती है. इस प्रकार की शर्करा से कोई हानि की संभावना नहीं रहती है.
वास्तविक मधुमेह में शर्करा यानी ग्लूकोज पाई जाती है. इस प्रकार के वास्तविक मधुमेह की अवस्था यदि गर्भावस्था के पूर्व से ही उपस्थित हो तो यह दुर्बलता, बहुमुत्रता आदि विकारों से युक्त हो तो माता की अपेक्षा गर्भ के लिए अत्यधिक हानिकारक होती है.
मधुमेह के अतिरिक्त गर्भवती में मूत्र शर्करा दो अन्य कारणों से भी मिलती है. एक वृक्कज शर्करामेह, दूसरा शर्करा सह्यता की क्षणिक कमी.
वृक्कज शर्करामेह- इसमें वृक्क प्रभाव सीमा सामान्य से अल्प हो जाती है. जिससे खून में शर्करा की बढ़ोतरी ना होते हुए भी उससे शर्करा निकल जाती है. साथ ही प्रसव के बाद इसका निकलना खुद ही बंद हो जाता है. वृक्क की प्रभाव सीमा अल्पता का निदान शर्करासह्यता- परीक्षण द्वारा किया जाता है. इसकी चिकित्सा में कार्बोहाइड्रेट की मात्रा घटा दी जाती है. रोगिनी को पथ्य अनुसार भोजन दिया जाता है.
शर्करा सह्यता की क्षणिक कमी- एक सामान्य स्वस्थ स्त्री- परुष पर्याप्त मात्रा में कार्बोहाइड्रेट पचाने में समर्थ होते हैं. परंतु गर्भावस्था में इनका ऐसीमिलेसन भली प्रकार से नहीं हो पाता है. जिससे गर्भवती के मूत्र में शर्करा आने लगती है. इस प्रकार उत्सर्जित शर्करा की मात्रा अत्यधिक10 से 50 ग्राम प्रति दिन से अधिक नहीं होती है. ऐसी अवस्था अत्यधिक चिंता एवं अत्यधिक परिश्रम से भी उत्पन्न हो जाती है. इसका निदान रोगिणी को 25 से 50 ग्राम ग्लूकोज खिलाकर उसके रक्तगत शर्करा का परिणाम देख कर किया जाता है. इसमें शर्करा सह्यता की कमी का ज्ञान हो जाता है.
इसकी चिकित्सा में भी कार्बोहाइड्रेट की मात्रा घटा दी जाती है. रोगिणी को चीनी खिलाना बिल्कुल बंद कर दिया जाता है. साथ ही पथ्य अनुसार भोजन की व्यवस्था की जाती है. यदि फिर भी पूर्ण सफलता न मिले तो चीनी का सेवन बिलकुल बंद कराकर इंसुलिन 5 से 10 यूनिट की मात्रा में प्रतिदिन देना चाहिए.
वास्तविक मधुमेह-
जब महिला को वास्तविक मधुमेह होता है तब उसे इस रोग से स्थाई विकार युक्त समझना चाहिए. इसकी रोगिणी में प्यास एवं सुधा की अधिकता रहती है. रोहिणी में अतिशय दुर्बलता रहती है. रक्त शर्करा की मात्रा प्राकृत से कहीं अधिक बढ़ हो जाती है.
जब इंसुलिन चिकित्सा का प्रचार नहीं था तब मधुमेह से ग्रस्त महिलाओं को अत्यधिक कष्ट होता था. अधिकांश रूप से गर्भपात एवं मृत गर्भ पैदा होते थे. साथ ही कभी-कभी गर्भिणी का जीवन भी संकट में हो जाता था. जिससे गर्भ नष्ट करने की क्रिया अपनानी पड़ती थी.
मधुमेह का गर्भवती एवं उसके गर्भ में पल रहे बच्चे पर प्रभाव-
मधुमेह के कारण गर्भवती महिला का गर्भपात हो जाता है. यह मधुमेह से ग्रसित महिलाओं में 19% पाया जाता है. अधिकांश रूप से गर्भ की मृत्यु हो जाती है जो गर्भावस्था के अंतिम तीन सप्ताहों में अधिकांश रूप से होता है. गर्भ मृत्यु की संभावना उस समय अधिक होती है. जब मधुमेह की उचित चिकित्सा व्यवस्था नहीं की जाती है.
मधुमेह की बीमारी से गर्भ का भार अत्यधिक बढ़ जाता है. साथ ही अपरा भी बड़ी हो जाती है. इस व्याधि से गर्भ-कुरचनाओं की संभावना अधिक रहती है. गर्भ के बड़े होने के कारण प्रसव के समय योनि में भी पर्याप्त कठिनाई होती है.
मधुमेह की गंभीर महिलाओं को अतिरिक्त रक्तचाप, एल्बुमेन मूत्रता तथा दृष्टि पटल शोथ तक हो जाते हैं. जिसके कारण गर्भ मृत्यु की संभावना और भी अधिक बढ़ जाती है.
गर्भावस्था में मधुमेह नियंत्रित करने के आयुर्वेदिक उपाय-
* महिला को पूर्ण आराम दिया जाता है, इस रोग में रुक्ष शोषक जैसे- त्रिफला, त्रिबंग, नीम, करेला, लोध, बेलपत्र तथा सालसारादि वर्ग और न्यग्रोदादि वर्ग की औषधियों का प्रयोग ठीक रहता है. इनके सेवन से मूत्र में शर्करा की निकासी कम हो जाती है.
* महिला को जामुन के फल की मजा 4 ग्राम, नीम पत्र 4 ग्राम, आंवला 4 ग्राम, गुड़मार पत्र 2 ग्राम, बिल्वपत्र 2 ग्राम और करेला सूखा 8 ग्राम इन सब का चूर्ण बनाकर 2 ग्राम की मात्रा में दिन में तीन बार सेवन करने से 1 माह में पूर्ण लाभ हो जाता है.
अथवा जामुन फल के मजा में करेले, नीम, आंवले एवं बेलपत्र के चूर्ण को मिलाकर गोलियां बनाकर दिन में 4-6 गोलियां तक दी जाती है. इस औषधि के साथ-साथ लौह, त्रोबंग, अभ्रक, प्रवाल, सूक्ति, रजत भस्म यह औषधियां 11 ग्राम शिलाजीत 2 ग्राम अहिफैन आधा ग्राम को 120 मिलीग्राम की गोली बनाकर दिन में 2 बार सेवन कराने से लाभ होता है.
* बसंत कुसुमाकर रस, स्वर्ण घटित चंद्रकांत रस आदि में से किसी एक का प्रयोग दिन में एक बार करने से महिला की प्राण शक्ति बढ़ती है.
* शिलाजीत को चंद्रप्रभा के साथ अथवा अकेले 480 मिलीग्राम की मात्रा में देने से मूत्र शर्करा की मात्रा कम हो जाती है.
* सुखा करेला 4 ग्राम, जामुन 2 ग्राम, त्रिबंग 2 ग्राम, अदरक 1 ग्राम, लौह भस्म 1 ग्राम, शिलाजीत 2 ग्राम और अफीम आधा ग्राम इन सबको मिलाकर 240 मिलीग्राम की गोली बना लें, अब एक से दो गोली के मात्रा में सुबह-शाम सेवन कराने से गर्भवती स्त्री का मधुमेह नियंत्रित हो जाता है,
* महिला को सुबह-शाम जौ और गेहूं की बनी रोटी तथा हरी सब्जियां देनी चाहिए. रोटी की मात्रा 100 ग्राम से अधिक नहीं होनी चाहिए. चिकनाई रहित मट्ठे का प्रयोग करना लाभदायक होता है.
Note-यह पोस्ट शैक्षणिक उद्देश्य से लिखा गया है किसी भी प्रयोग से पहले योग्य डॉक्टर की सलाह जरूर लें.
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स्रोत- स्त्री रोग चिकित्सा.
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गर्भावस्था में हुए मधुमेह को दूर करने के आयुर्वेदिक उपाय |
मधुमेह के अतिरिक्त गर्भवती में मूत्र शर्करा दो अन्य कारणों से भी मिलती है. एक वृक्कज शर्करामेह, दूसरा शर्करा सह्यता की क्षणिक कमी.
वृक्कज शर्करामेह- इसमें वृक्क प्रभाव सीमा सामान्य से अल्प हो जाती है. जिससे खून में शर्करा की बढ़ोतरी ना होते हुए भी उससे शर्करा निकल जाती है. साथ ही प्रसव के बाद इसका निकलना खुद ही बंद हो जाता है. वृक्क की प्रभाव सीमा अल्पता का निदान शर्करासह्यता- परीक्षण द्वारा किया जाता है. इसकी चिकित्सा में कार्बोहाइड्रेट की मात्रा घटा दी जाती है. रोगिनी को पथ्य अनुसार भोजन दिया जाता है.
शर्करा सह्यता की क्षणिक कमी- एक सामान्य स्वस्थ स्त्री- परुष पर्याप्त मात्रा में कार्बोहाइड्रेट पचाने में समर्थ होते हैं. परंतु गर्भावस्था में इनका ऐसीमिलेसन भली प्रकार से नहीं हो पाता है. जिससे गर्भवती के मूत्र में शर्करा आने लगती है. इस प्रकार उत्सर्जित शर्करा की मात्रा अत्यधिक10 से 50 ग्राम प्रति दिन से अधिक नहीं होती है. ऐसी अवस्था अत्यधिक चिंता एवं अत्यधिक परिश्रम से भी उत्पन्न हो जाती है. इसका निदान रोगिणी को 25 से 50 ग्राम ग्लूकोज खिलाकर उसके रक्तगत शर्करा का परिणाम देख कर किया जाता है. इसमें शर्करा सह्यता की कमी का ज्ञान हो जाता है.
इसकी चिकित्सा में भी कार्बोहाइड्रेट की मात्रा घटा दी जाती है. रोगिणी को चीनी खिलाना बिल्कुल बंद कर दिया जाता है. साथ ही पथ्य अनुसार भोजन की व्यवस्था की जाती है. यदि फिर भी पूर्ण सफलता न मिले तो चीनी का सेवन बिलकुल बंद कराकर इंसुलिन 5 से 10 यूनिट की मात्रा में प्रतिदिन देना चाहिए.
वास्तविक मधुमेह-
जब महिला को वास्तविक मधुमेह होता है तब उसे इस रोग से स्थाई विकार युक्त समझना चाहिए. इसकी रोगिणी में प्यास एवं सुधा की अधिकता रहती है. रोहिणी में अतिशय दुर्बलता रहती है. रक्त शर्करा की मात्रा प्राकृत से कहीं अधिक बढ़ हो जाती है.
जब इंसुलिन चिकित्सा का प्रचार नहीं था तब मधुमेह से ग्रस्त महिलाओं को अत्यधिक कष्ट होता था. अधिकांश रूप से गर्भपात एवं मृत गर्भ पैदा होते थे. साथ ही कभी-कभी गर्भिणी का जीवन भी संकट में हो जाता था. जिससे गर्भ नष्ट करने की क्रिया अपनानी पड़ती थी.
मधुमेह का गर्भवती एवं उसके गर्भ में पल रहे बच्चे पर प्रभाव-
मधुमेह के कारण गर्भवती महिला का गर्भपात हो जाता है. यह मधुमेह से ग्रसित महिलाओं में 19% पाया जाता है. अधिकांश रूप से गर्भ की मृत्यु हो जाती है जो गर्भावस्था के अंतिम तीन सप्ताहों में अधिकांश रूप से होता है. गर्भ मृत्यु की संभावना उस समय अधिक होती है. जब मधुमेह की उचित चिकित्सा व्यवस्था नहीं की जाती है.
मधुमेह की बीमारी से गर्भ का भार अत्यधिक बढ़ जाता है. साथ ही अपरा भी बड़ी हो जाती है. इस व्याधि से गर्भ-कुरचनाओं की संभावना अधिक रहती है. गर्भ के बड़े होने के कारण प्रसव के समय योनि में भी पर्याप्त कठिनाई होती है.
मधुमेह की गंभीर महिलाओं को अतिरिक्त रक्तचाप, एल्बुमेन मूत्रता तथा दृष्टि पटल शोथ तक हो जाते हैं. जिसके कारण गर्भ मृत्यु की संभावना और भी अधिक बढ़ जाती है.
गर्भावस्था में मधुमेह नियंत्रित करने के आयुर्वेदिक उपाय-
* महिला को पूर्ण आराम दिया जाता है, इस रोग में रुक्ष शोषक जैसे- त्रिफला, त्रिबंग, नीम, करेला, लोध, बेलपत्र तथा सालसारादि वर्ग और न्यग्रोदादि वर्ग की औषधियों का प्रयोग ठीक रहता है. इनके सेवन से मूत्र में शर्करा की निकासी कम हो जाती है.
* महिला को जामुन के फल की मजा 4 ग्राम, नीम पत्र 4 ग्राम, आंवला 4 ग्राम, गुड़मार पत्र 2 ग्राम, बिल्वपत्र 2 ग्राम और करेला सूखा 8 ग्राम इन सब का चूर्ण बनाकर 2 ग्राम की मात्रा में दिन में तीन बार सेवन करने से 1 माह में पूर्ण लाभ हो जाता है.
अथवा जामुन फल के मजा में करेले, नीम, आंवले एवं बेलपत्र के चूर्ण को मिलाकर गोलियां बनाकर दिन में 4-6 गोलियां तक दी जाती है. इस औषधि के साथ-साथ लौह, त्रोबंग, अभ्रक, प्रवाल, सूक्ति, रजत भस्म यह औषधियां 11 ग्राम शिलाजीत 2 ग्राम अहिफैन आधा ग्राम को 120 मिलीग्राम की गोली बनाकर दिन में 2 बार सेवन कराने से लाभ होता है.
* बसंत कुसुमाकर रस, स्वर्ण घटित चंद्रकांत रस आदि में से किसी एक का प्रयोग दिन में एक बार करने से महिला की प्राण शक्ति बढ़ती है.
* शिलाजीत को चंद्रप्रभा के साथ अथवा अकेले 480 मिलीग्राम की मात्रा में देने से मूत्र शर्करा की मात्रा कम हो जाती है.
* सुखा करेला 4 ग्राम, जामुन 2 ग्राम, त्रिबंग 2 ग्राम, अदरक 1 ग्राम, लौह भस्म 1 ग्राम, शिलाजीत 2 ग्राम और अफीम आधा ग्राम इन सबको मिलाकर 240 मिलीग्राम की गोली बना लें, अब एक से दो गोली के मात्रा में सुबह-शाम सेवन कराने से गर्भवती स्त्री का मधुमेह नियंत्रित हो जाता है,
* महिला को सुबह-शाम जौ और गेहूं की बनी रोटी तथा हरी सब्जियां देनी चाहिए. रोटी की मात्रा 100 ग्राम से अधिक नहीं होनी चाहिए. चिकनाई रहित मट्ठे का प्रयोग करना लाभदायक होता है.
Note-यह पोस्ट शैक्षणिक उद्देश्य से लिखा गया है किसी भी प्रयोग से पहले योग्य डॉक्टर की सलाह जरूर लें.
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स्रोत- स्त्री रोग चिकित्सा.
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