जानें- स्तन कैंसर होने के कारण, लक्षण और आयुर्वेदिक उपाय

कल्याण आयुर्वेद- स्तन कैंसर में प्रायः स्तन कैंसर का शोथ जाता है. शोथ धीरे- धीरे बढ़ता है और अंत में घाव का रूप धारण कर लेता है.
जानें- स्तन कैंसर होने के कारण, लक्षण और आयुर्वेदिक उपाय
स्तन कैंसर 45 से 50 वर्ष की अवस्था वाली महिलाओं में अधिक होता है. साथ ही यह रोग बाल विधवाओं एवं बांझ महिलाओं में अधिक मिलता है. मासिक धर्म बंद हो जाने के पश्चात यह प्रायः ज्यादातर महिलाओं को हो सकता है.
स्तन कैंसर होने के कारण-
रक्त दोष के कारण प्रायः स्तनों में कैंसर होता है.
स्तन कैंसर के लक्षण-
स्तन कैंसर के कारण स्तनों में सख्त शोथ हो जाता है, साथ ही स्तन के ऊपर नीली- नीली सी उभार आती है, वहां का चमड़ा कड़ा एवं काला सा हो जाता है. स्तन में प्रत्येक समय जलन एवं बरछी चुभने जैसा दर्द होता रहता है. दर्द का कष्ट रात्रि के समय अत्यधिक बढ़ जाता है. स्तन की ढेपुनी बाहर की ओर मुड़ जाती है.
क्योंकि यह रोग धीरे-धीरे होता है. इसलिए इसमें समयानुसार भिन्न-भिन्न लक्षण पैदा होते रहते हैं. सुविधा की दृष्टि से इस रोग को समझने के लिए इसकी तीन अवस्थाएं मानी गई है.
जानें- स्तन कैंसर होने के कारण, लक्षण और आयुर्वेदिक उपाय
प्रथम अवस्था- अधिकांश रूप से स्तन कैंसर बाएं स्तन से प्रारंभ होता है. पहले स्तन का एक भाग लाल होकर फूल जाता है. जिसमें पीड़ा होती है. यह भी देखा गया है कि कभी-कभी स्तन का अग्रभाग विकृत होता है. साथ ही वह भीतर की ओर धस जाता है. धीरे-धीरे समस्त स्तन संकुचित होकर अन्तः प्रविष्ट हो जाता है. साथ ही चारों तरफ से खिंचाव लेकर वह तन सा जाता है. कभी-कभी स्तन का अग्रभाग लाल होकर फूल जाता है और संपूर्ण स्तन भयंकर रूप से भूलकर इट की भांति कठोर हो जाता है. कभी-कभी दोनों स्तन एक साथ आक्रांत हो जाते हैं और चारों तरफ स्रोत की भांति रोग का सिरा जाल फैल जाता है.
बाल विधवाओं ने यह रोग धीरे-धीरे बढ़ता है. संतान वाली महिलाओं को 40 से 50 वर्ष की अवस्था में उनके दोनों स्तन एक साथ प्रबल रूप से आक्रांत हो जाते हैं. वह 3 माह के अंदर ही ईट की भांति खड़े हो जाते हैं. अधिक उम्र वाली वृद्धा विधवाओं में स्तन कैंसर धीरे- धीरे बढ़ता है जो सहसा मारात्मक नहीं होता है.
दूसरी अवस्था- प्रथम अवस्था की सही चिकित्सा ना करने पर स्तन ग्रंथि के सख्त हो जाने से महिला की पीड़ा अधिक हो जाती है. 24 घंटे में एक बार स्तन में असह्य पीड़ा होती है. पीड़ा के समस्त अकरांत स्तन लाल हो जाते हैं और ऐसा प्रतीत होता है मानो वे फटे जा रहे है.
जानें- स्तन कैंसर होने के कारण, लक्षण और आयुर्वेदिक उपाय
तृतीय अवस्था- इस अवस्था में स्तन का कैंसर फूट जाता है. फूटने के बाद उसमें रक्त मिला हुआ पीप ( मवाद ) निकलता है. पीप का स्राव दिन की अपेक्षा रात्रि में ज्यादा होता है. कुछ समय के पश्चात स्तन का सारा मांस नष्ट होकर वह दुर्गंध युक्त घाव बन जाता है. यह घाव शीघ्र ही अंदर तक फैल जाता है. स्तन के भीतर का मांस क्षय होने से स्तन के ऊपर का चमड़ा संकुचित होकर भीतर की ओर प्रविष्ट होने लगता है. ऐसी अवस्था में महिला अति दुर्बल हो जाती है. उसे तीसरे पहर से बुखार हो जाता है जो सुबह तक बना रहता है. रोगिनी को रात्रि में नींद नहीं आती है. उसे भोजन में अरुचि हो जाती है. कभी-कभी रोगिणी को दुर्गंध युक्त पतले दस्त आने लगते हैं. रोगिनी को दिन के समय 3- 4 घंटे तक असह्य पीड़ा होती है. जिस ओर के स्तन में कैंसर होता है उसी ओर के हाथ- पैरों में सूजन भी आ जाती है.
स्तन कैंसर के आयुर्वेदिक उपाय-
* स्तन कैंसर की चिकित्सा रेडियम के द्वारा की जाती है. इस चिकित्सा से आराम ना मिलने पर स्तन कैंसर का ऑपरेशन किया जाता है. इसमें संपूर्ण अंग के विकृत सेलों को काट कर निकाल दिया जाता है. साथ ही रक्तशोधक दवाओं का व्यवहार किया जाता है.
* स्तन कैंसर में स्वर्ण पर पट्टी का प्रयोग कराया जाता है. 120 से 240 मिलीग्राम दिन में दो बार त्रिकुट और शहद के साथ देते हैं. धीरे-धीरे मात्रा 240 मिलीग्राम तक बढ़ाई जाती है. इसके साथ ही रोगिनी को रक्तशोधक एवं विरेचन औषधियां देनी चाहिए. इसके लिए आरोग्यवर्धिनी वटी 120 मिलीग्राम, रसमाणिक्य 120 मिलीग्राम, प्रवाल पंचामृत 120 मिलीग्राम शहद में मिलाकर देना चाहिए.
* शाम को 5:00 ग्राम पंचायत घृत गूगल गर्म दूध के साथ में दे.
* निम्न योग का प्रयोग स्तन कैंसर में पर्याप्त लाभकारी होता है. इसे कैंसर विध्वंसक भी कहते हैं.
सर्वेश्वर पर्पत्टी- 6 ग्राम.
शुद्ध पर किया हड़ताल- 6 ग्राम.
स्वर्ण भस्म- 6 ग्राम.
अभ्रक भस्म (सहस्त्र पुटी)- 6 ग्राम.
मुक्ता पिष्टी- 6 gram.
हीरा भस्म- 240 मिलीग्राम.
पन्ना पिष्टी- 3 ग्राम.
अमृता सत्व- 60 ग्राम.
इन सब को अच्छी तरह से मिलाकर सहजन की छाल के रस के साथ भावनाएं देकर खरल करके 240 मिलीग्राम की गोलियां बना लें. दिन में दो बार सुबह- शाम एक-एक गोली शहद के साथ दें. इसके बाद सहजन की छाल का रस एक औंस की मात्रा में पीलावें.
Note-यह उपचार महंगा पड़ता है. लेकिन शरीर के किसी भी स्थान पर स्थित कैंसर को इस योग के नियमित प्रयोग से ठीक किया जा सकता है.
स्तन कैंसर की प्रथम व द्वितीय अवस्था में इस योग का प्रयोग करना लाभदायक है.
हीरा भस्म- 120 मिलीग्राम.
स्वर्ण भस्म- 1. 5 ग्राम.
रस सिंदूर 3 ग्राम
रस कपूर शोधित- 3 ग्राम.
ताम्र भस्म- 12 ग्राम.
सफेद मिर्च- 18 ग्राम.
लौंग- 9 ग्राम.
अभ्रक भस्म (सहस्त्र पुटी)- 480 मिलीग्राम.
पन्ना पिष्टि- 180 मिलीग्राम.
बनाने की विधि-
रस सिंदूर और रस कपूर को खरल में घोटकर महीन चूर्ण बना लें. इसके बाद लौंग और सफेद मिर्च को कूट पीसकर छान लें. इसके बाद एक-एक द्रव्य को मिलाते हुए सभी द्रव्यों को मिलाकर दिनभर खरल करें. दूसरे दिन भेड़ के दूध की भावना देकर तीन दिन तक घोटकर 60- 60मिलीग्राम की गोलियां बना लें.
मात्रा एवं सेवन विधि-
एक से दो गोली दिन में दो-तीन बार. गोली खाने से पहले मुंह में खूब घी चुपड़कर खाएं या गोली को कैप्सूल में भरकर निगल लें और ऊपर से दूध पी लें.
परहेज एवं दुग्धकल्क सेवन करते हुए कैंसर की तृतीय अवस्था में भी इसका सेवन करना फायदेमंद होता है.
वेदना निवारण के लिए-
स्तन कैंसर की महिला को 24 घंटे में एक बार कम से कम दो-तीन घंटे तक काफी कष्टदायक दर्द होता है. जिससे वह बेचैन रहती है. इसके लिए निम्न व्यवस्था करें.
ताम्र पर्पत्टी 120 मिलीग्राम से 360 मिलीग्राम की मात्रा में सुबह-शाम एरंड तेल क साथ सेवन कराना चाहिए. यदि इससे पर्याप्त लाभ ना हो तो इस वटी का प्रयोग करें.
कुचला शुद्ध- 200 ग्राम.
सोठ- 50 ग्राम.
मीठा बिष- 50 ग्राम.
लौंग- 50 ग्राम.
पीपरामुल- 50 ग्राम.
रस पर्पट्टी- 50 ग्राम.
काली मिर्च- 50 ग्राम.
अजवायन- 50 ग्राम.
पीपल छोटी- 50 ग्राम.
इन सभी औषधियों को पीसकर पाउडर बना लें. इसके बाद 20 ग्राम अफीम को जल में घोलकर 1/ 8 ग्राम की गोली बना लें.
अब इस गोली को एक से दो गोली तक प्रतिदिन सेवन कराएं. इससे वेदना का निवारण हो कर नींद भी आ जाती है.
वेदना निवारण के लिए वर्फ का प्रयोग भी अच्छा रहता है. बर्फ के उपलब्ध ना होने पर खूब ठंडे पानी की पट्टी लगानी चाहिए. गर्म होने पर पट्टी को बदलते रहे.
प्राकृतिक चिकित्सा-
स्तन कैंसर की चिकित्सा में प्राकृतिक चिकित्सा काफी लाभदायक सिद्ध हुई है. इसमें स्वर्ण पर्पट्टी के प्रयोग के साथ-सथ प्राकृतिक चिकित्सा करना लाभदायक होता है.
इसके लिए उबले हुए नीम के पत्तों के पानी का एनिमा पेट की लपेट स्नान से पूर्व 3 से 6 मिनट तक भाप स्नान और उसके बाद घर्षण स्नान आदि का अवलंबन किया जाता है. इसके लिए किसी भी प्राकृतिक चिकित्सा कैंसर विशेषज्ञ से परामर्श लेना चाहिए.
जानें- स्तन कैंसर होने के कारण, लक्षण और आयुर्वेदिक उपाय
नोट- यह पोस्ट शैक्षणिक उद्देश्य से लिखा गया है. किसी भी प्रयोग से पहले आप योग्य वैद्य की सलाह जरूर लें. ताकि स्तन कैंसर की स्थिति के अनुसार उचित चिकित्सा मिल सके और लाभ हो
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स्रोत- स्त्री रोग चिकित्सा.

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