कल्याण आयुर्वेद- एक महिला को गर्भ धारण करना उसके लिए सौभाग्य की बात होती है और इस दौरान उन्हें कई तरह की शारीरिक एवं मानसिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है. गर्भावस्था के दौरान बवासीर की समस्या आम हो जाती है. ऐसे में इस समस्या में उन्हें काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है और वे कई तरह के उपाय करने लग जाती हैं. लेकिन सबसे खास बात यह है कि गर्भावस्था के दौरान बिना सोचे- समझे किसी भी तरह की दवाइयों का सेवन करना नुकसानदायक हो सकता है.
आज हम इस पोस्ट के माध्यम से गर्भावस्था के दौरान बवासीर होने के कारण एवं आयुर्वेदिक और घरेलू उपायों के बारे में बताएंगे.
चलिए जानते हैं विस्तार से-
कारण-
पेट की शिराओं पर बढ़े हुए गर्भाशय के कारण दबाव पड़ने से गुदा की शिराएं फूल जाती है और वह मस्से के रूप में प्रकट हो जाती है. यदि महिला को पहले से ही बवासीर का रोग चल रहा हो तो गर्भावस्था में यह और भी अधिक बढ़ जाता है. मस्से कहीं अधिक मोटे हो जाते हैं जो बहुत ही कष्टदायक होता है.
गर्भावस्था के दौरान हुए बवासीर को दूर करने की आयर्वेदिक एवं घरेलू उपाय-
1 .नीम के बीजों की गिरी मूली के रस में रगड़ कर थोड़ा सा कपूर मिलाकर मस्सों पर दिन में दो-तीन बार लगाने से लाभ होता है. साथ ही सोठ एवं मिश्री का चूर्ण एक 1 ग्राम की मात्रा में 250 मिली लीटर दूध के साथ सेवन करना लाभदायक होता है.
2 .भांग को पीसकर पाउडर बना लें. अब पानी के साथ घोटकर गिला बना लें और गुदा पर बांधे, साथ ही मक्खन 12 ग्राम, नागकेसर 2 ग्राम, मिश्री 6 ग्राम इन सबको मिलाकर रोगी को सेवन करावें. इस चिकित्सा क्रम से गुदा में कठोर दर्द शोध एवं जलन तुरंत दूर हो जाती है.
3 .गुलकंद 12 ग्राम रात के समय दूध के साथ सेवन कराने तथा दिन में अफीम को मलहम में मिलाकर मस्सों पर लगावे काफी राहत मिलेगा.
4 .सौंफ, जीरा, धनिया इनका क्वाथ बनाकर अब 50 मिलीलीटर क्वाथ में 12 ग्राम घी मिलाकर पिलावें. इससे खूनी बवासीर में तुरंत आराम मिलता है.
5 .कमल केसर 3 ग्राम, 3 ग्राम मक्खन 3 ग्राम, मिश्री 3 ग्राम, नागकेसर 3 ग्राम इन्हें अच्छी तरह से मिलाकर 15 गोलियां बना लें. एक से दो गोली सुबह- शाम महिला को सेवन करावें तथा वेदना स्थल पर महाकाशीशादी तेल लगावे.
6 .इस रोग में महिला के मल में कठिनता, शुष्कता न रहे, मल मुलायम और बिना दबाव के निकल जाए ऐसा प्रयत्न करना चाहिए. इसके लिए ईसबगोल की भूसी को बादाम तेल में चिकना करके रात्रि में पानी के साथ सेवन कराना चाहिए.
7 .वायु का अनुभलोमन करने के लिए लौनोत्तम चूर्ण, विजय चूर्ण अथवा मरिचयादी चूर्ण सेवन कराना चाहिए. यदि आगमन एवं मल बंध अधिक हो तो नाराज चूर्ण दें.
8 .यदि बवासीर से खून अधिक आ रहा हो तो नागकेसर अथवा केसर का चूर्ण 3 ग्राम दही की मलाई एवं चीनी के साथ दें.
9 .महिला को पथ्य में गेहूं की रोटी, मूंग की दाल, हरे सब्जियां, मुली, घी, दूध, मक्खन, मट्ठा आदि का सेवन करावें.
नोट- यह रोग जब महिला को गर्भावस्था में होता है तो प्रसव के बाद अपने आप ही ठीक हो जाता है. ऐसी माताओं में जो अनेक प्रसव कर चुकी है. यह विकार अवश्य मिलता है. गर्भावस्था तक यह विकार पर्याप्त रूप से रहता है. तत्पश्चात खुद ही ठीक हो जाता है.
यह पोस्ट शैक्षणिक उद्देश्य से लिखा गया है, किसी भी प्रयोग से पहले आप योग्य डॉक्टर की सलाह जरूर लें. ताकि उचित चिकित्सा में मदद मिले और लाभ हो.
यह जानकारी अच्छी लगे तो लाइक, शेयर करें. धन्यवाद.
स्रोत- स्त्री रोग चिकित्सा.
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गर्भावस्था में बवासीर रोग होने के कारण एवं आयुर्वेदिक और घरेलू उपाय |
चलिए जानते हैं विस्तार से-
कारण-
पेट की शिराओं पर बढ़े हुए गर्भाशय के कारण दबाव पड़ने से गुदा की शिराएं फूल जाती है और वह मस्से के रूप में प्रकट हो जाती है. यदि महिला को पहले से ही बवासीर का रोग चल रहा हो तो गर्भावस्था में यह और भी अधिक बढ़ जाता है. मस्से कहीं अधिक मोटे हो जाते हैं जो बहुत ही कष्टदायक होता है.
गर्भावस्था के दौरान हुए बवासीर को दूर करने की आयर्वेदिक एवं घरेलू उपाय-
1 .नीम के बीजों की गिरी मूली के रस में रगड़ कर थोड़ा सा कपूर मिलाकर मस्सों पर दिन में दो-तीन बार लगाने से लाभ होता है. साथ ही सोठ एवं मिश्री का चूर्ण एक 1 ग्राम की मात्रा में 250 मिली लीटर दूध के साथ सेवन करना लाभदायक होता है.
2 .भांग को पीसकर पाउडर बना लें. अब पानी के साथ घोटकर गिला बना लें और गुदा पर बांधे, साथ ही मक्खन 12 ग्राम, नागकेसर 2 ग्राम, मिश्री 6 ग्राम इन सबको मिलाकर रोगी को सेवन करावें. इस चिकित्सा क्रम से गुदा में कठोर दर्द शोध एवं जलन तुरंत दूर हो जाती है.
3 .गुलकंद 12 ग्राम रात के समय दूध के साथ सेवन कराने तथा दिन में अफीम को मलहम में मिलाकर मस्सों पर लगावे काफी राहत मिलेगा.
4 .सौंफ, जीरा, धनिया इनका क्वाथ बनाकर अब 50 मिलीलीटर क्वाथ में 12 ग्राम घी मिलाकर पिलावें. इससे खूनी बवासीर में तुरंत आराम मिलता है.
5 .कमल केसर 3 ग्राम, 3 ग्राम मक्खन 3 ग्राम, मिश्री 3 ग्राम, नागकेसर 3 ग्राम इन्हें अच्छी तरह से मिलाकर 15 गोलियां बना लें. एक से दो गोली सुबह- शाम महिला को सेवन करावें तथा वेदना स्थल पर महाकाशीशादी तेल लगावे.
6 .इस रोग में महिला के मल में कठिनता, शुष्कता न रहे, मल मुलायम और बिना दबाव के निकल जाए ऐसा प्रयत्न करना चाहिए. इसके लिए ईसबगोल की भूसी को बादाम तेल में चिकना करके रात्रि में पानी के साथ सेवन कराना चाहिए.
7 .वायु का अनुभलोमन करने के लिए लौनोत्तम चूर्ण, विजय चूर्ण अथवा मरिचयादी चूर्ण सेवन कराना चाहिए. यदि आगमन एवं मल बंध अधिक हो तो नाराज चूर्ण दें.
8 .यदि बवासीर से खून अधिक आ रहा हो तो नागकेसर अथवा केसर का चूर्ण 3 ग्राम दही की मलाई एवं चीनी के साथ दें.
9 .महिला को पथ्य में गेहूं की रोटी, मूंग की दाल, हरे सब्जियां, मुली, घी, दूध, मक्खन, मट्ठा आदि का सेवन करावें.
नोट- यह रोग जब महिला को गर्भावस्था में होता है तो प्रसव के बाद अपने आप ही ठीक हो जाता है. ऐसी माताओं में जो अनेक प्रसव कर चुकी है. यह विकार अवश्य मिलता है. गर्भावस्था तक यह विकार पर्याप्त रूप से रहता है. तत्पश्चात खुद ही ठीक हो जाता है.
यह पोस्ट शैक्षणिक उद्देश्य से लिखा गया है, किसी भी प्रयोग से पहले आप योग्य डॉक्टर की सलाह जरूर लें. ताकि उचित चिकित्सा में मदद मिले और लाभ हो.
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स्रोत- स्त्री रोग चिकित्सा.
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