कल्याण आयुर्वेद- नीम का पेड़ लगभग हर क्षेत्र में पाया जाता है. इसे लोग गांव का दवाखाना और पवित्र मानते हैं. इसका वानस्पतिक नाम अजार्डिचटा इंडिका है. अंग्रेजी में इसे मार्गोसा तथा भारतीय भाषाओं नीम, इंडियन लिलेक, निम्मी, निम्ब, लिम्बो, निमो तथा लिमडा आदि नाम से पुकारते हैं. नीम अधिकांश का अर्धशुष्क क्षेत्र में बहुत पाया जाता है. आयुर्वेद में नीम का महत्व विशेष उल्लेख के साथ किया गया है.
नीम के लिए जलवायु क्या है ?
नीम के लिए गर्म जलवायु सबसे उपयुक्त रहती है. वैसे तो यह 49 डिग्री सेंटीग्रेड से 0 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान पर भी उगाया जा सकता है. आज नीम का विस्तार दुनिया के लगभग 30 देशों में हो गया है. इसकी उपयोगिता को देखते हुए और एशिया, अफ्रीका, मध्य दक्षिणी अमेरिका तथा संयुक्त राज्य अमेरिका में भी उगया जा रहा है. नीम वैसे तो हर प्रकार की भूमि में उगाया जा सकता है लेकिन इसके लिए गहरी काली मिट्टी तथा 8.5 पीएच तापमान तक की भूमि सबसे अच्छी रहती है. नीम को कम पानी तथा अधिक धुप की आवश्यकता होती है. 450 से 1200 मिलीमीटर वर्षा वाले क्षेत्र में भी नीम का पेड़ अच्छी तरह से बढ़ जाता है. लेकिन 200- 250 मिलीमीटर वर्षा या उचित जल निकास ना होने पर यह सुख जाता है. 3 से 5 वर्ष की अवस्था में यह फल देने लगता है.
नीम में बहुत सारे रासायनिक तत्व पाए जाते हैं जो इस प्रकार हैं-
नीम में निमबिडिन, निमबिन, निनबिडोल, गेडूनिन, सोडियम निमबिनेट, सालनिन, एजार्डीयडिन आदि प्रमुख है. सबसे ज्यादा सक्रिय तत्व मुख्य रूप से इसके बीज और तेल में पाए जाते हैं. लेकिन पत्तियों और छाल में भी सक्रिय तत्व होते हैं जो कम मात्रा में पाए जाते हैं.
आयुर्वेद में नीम का क्या महत्व है ?
आयुर्वेद में नीम की बड़ी महिमा गाई गई है. भारत में एक कहावत बहुत प्रचलित है कि जिस धरती पर नीम के पेड़ होते हैं वहां मृत्यु और बीमारी कैसे हो सकती है. इस पेड़ के बहुत सरे औषधीय गुण हैं. उन्हें प्राचीन काल से ही नीम का उपयोग कई बीमारियों के उपचार के लिए किया जाता रहा है. आज भी बहुत सी ऐसी देसी दवाइयां हैं जिनमें नीम के पत्तों का रस, नीम के पेड़ के दूसरे हिस्सों का इस्तेमाल होता है. नीम के पेड़ की छांव की तो बात ही कुछ और है क्योंकि यह उन पेड़ों में शुमार होता है जो सबसे ज्यादा वातावरण में ऑक्सीजन प्रदान करता है.
नीम के फायदे और इस्तेमाल करने के तरीके-
1 .नीम की दातुन करने से दांत व मसूड़े मजबूत होते हैं और दांतों में कीड़ा नहीं लगता है तथा मुंह से दुर्गंध आना भी खत्म हो जाता है. इसमें 2 गुना पिसा हुआ नमक मिलाकर मंजन करने से पायरिया, दांत का दांत का दर्द आदि दूर हो जाता है. नीम की कोमल पत्तियों को पानी में उबालकर कुल्ले करने से दांतों का दर्द दूर होता है.
2 .नीम की पत्तियां चबाने से खून साफ होता है और त्वचा से जुड़ी समस्याएं दूर होती है तथा त्वचा चमकदार होती है.
3 .नीम के छाल को जलाकर उसकी राख में तुलसी के पत्तों का रस मिलाकर लगाने से दाग तथा अन्य चर्म रोग दूर होते हैं.
4 .नीम के पत्तों का लेप सभी प्रकार के चर्म रोगों के निवारण में मददगार होता है. नीम के तेल से मालिश करने से हर प्रकार के चर्म रोग ठीक हो जाते हैं. नीम की पत्तियों को पानी में उबालकर और पानी ठंडा करके उस पानी से नहाने से चर्म रोगों में लाभ होता है.
5 .नीम की छाल के काढ़े में धनिया और सोंठ का चूर्ण मिलाकर पीने से मलेरिया रोग में अच्छा लाभ होता है. नीम मलेरिया फैलाने वाले मच्छरों को दूर रखने में अत्यंत मददगार होता है. जिस वातावरण में नीम के पेड़ रहते हैं वहां मलेरिया कम फैलता है. नीम के पत्ते जलाकर रात को धुआं करने से मच्छर नष्ट हो जाते हैं और विषम ज्वर यानी मलेरिया से बचाव होता है.
6 .नीम के द्वारा बनाया गया लेप बालों में लगाने से बाल स्वस्थ रहते हैं और कम झड़ते हैं. नीम और बेर के पत्तों को पानी में उबालें. ठंडा होने पर इससे बाल धोएं. स्नान करें. कुछ दिनों तक प्रयोग करने से बाल झड़ने रुक जाएंगे व बाल काले एवं मजबूत रहेंगे.
7 .नीम के तेल की 4-4 बूंदों को कैप्सूल में भरकर दिन में तीन बार सेवन करने से टीबी जैसे रोग में अच्छा लाभ होता है.
8 .नीम की पत्तियों के रस को आंखों में डालने से आंख आने की बीमारी ठीक हो जाती है.
9 .3 से 6 बूंद नीम के बीज के तेल को पान में डालकर खाने से दम फूलना आदि सांसों के रोग में अच्छा लाभ होता है.
10 .नीम के तेल की 5- 10 बूंद को को सोते समय दूध में डालकर पीने से ज्यादा पसीना आने और शरीर में जलन होने संबंधी विकारों में बहुत लाभ होता है.
11 .नीम के बीजों के चूर्ण को खाली पेट गुनगुने पानी के साथ सेवन करने से बवासीर में अच्छा लाभ होता है. कुछ दिनों तक सेवन करने से बवासीर नष्ट हो जाता है.
12 .नीम के बीजों का चूर्ण बनाकर 12 ग्राम रात को गुनगुने पानी के साथ नियमित कुछ दिनों तक सेवन करने से कब्ज की समस्या दूर होता है एवं आंतें मजबूत बनती है.
13 .नीम की 20 पतियों को पीसकर एक कप पानी में मिलाकर पिलाने से हैजा रोग ठीक हो जाता है.
14 .बिच्छू के काटने पर नीम के पत्ते मसल का काटे गए स्थान पर लगाने से जलन नहीं होती है और जहर का असर भी कम हो जाता है.
15 .नीम के 25 ग्राम तेल में थोड़ा सा कपूर मिलाकर रखें. यह तेल फोड़ा- फुंसी, घाव आदि पर लगाने से घाव, फोड़ा- फुंसी दूर हो जाते हैं.
16 .नीम के तेल को 4-5 बूंद कैप्सूल में डालकर प्रतिदिन सुबह खाली पेट सेवन करने से मधुमेह रोग में लाभ होता है. इसके नियमित सेवन करने से एड्स, कैंसर और बहुत ही गंभीर बीमारियों को दूर करने में मदद मिलती है.
17 .नीम की पत्तियां तथा अजवाइन दोनों को बराबर मात्रा में पीसकर कनपटियों पर लेप करने से नकसीर यानी नाक से खून आना बंद हो जाता है.
बालों की समस्याओं के लिए नीम के फायदे और इस्तेमाल करने के तरीके -
1 .नीम के तेल नियमित सिर में लगाने से गंजापन या बाल का तेजी से झड़ना बंद हो जाता है. यह बालों को भूरा होने से भी बचाव करता है. नीम से हेयर आयल तथा हेयर लोशन भी बनाए जाते हैं.
2 .बालों में नीम का तेल लगाने से जुएँ तथा रूसी नष्ट होते हैं. नीम के बीजों को पीसकर लगाने से या नीम के पत्तों को उबालकर उस पानी से बाल धोने से लिखें मर जाती है.
3 .नीम के बीजों को भांगरा के रस तथा आसन पेड़ की छाल के काढ़े में भिगोकर छाया में सुखाएं. ऐसा कई बार करें. इसके बाद तेल निकालकर नियमानुसार दो-दो बूंद नाक में डालें. इससे उम्र से पहले हुए सफेद बाल काले हो जाते हैं. इस प्रयोग के दौरान केवल दूध और भात यानी पके हुए चावल ही खाने चाहिए.
4 .नीम के पत्ते एक भाग तथा बेर का पत्ता एक भाग को अच्छी तरह से पिस लें. इसका उबटन बालों पर लगाकर एक-दो घंटे बाद धो लें. इससे बाल काले, लंबे और घने होते हैं.
5 .नीम के पत्तों को पानी में अच्छी तरह उबाल कर ठंडा होने पर इससे बाल नियमित धोते रहने से बाल मजबूत होते हैं. बालों का गिरना या झड़ना रूक जाता है. इसके अतिरिक्त सिर के कई रोगों में भी इससे लाभ होता है.
आंखों की समस्याओं के लिए नीम के फायदे और इस्तेमाल करने के तरीके-
1 .नीम की हरी फल का दूध आंखों पर लगाने से रतौंधी दूर होती है. आंख में जलन या दर्द हो तो नीम की पत्ती कनपटी पर बांधने से राहत मिलता है. नीम के पत्ते का रस थोड़ा गर्म कर जिस तरफ आँख में दर्द हो उसके दूसरी तरफ कान में डालने से लाभ होता है. दोनों आंख में दर्द हो तो दोनों कान में इसे डालना चाहिए.
2 .सोठ और नीम के पत्तों को सेंधा नमक के साथ पीसकर नेत्र पलकों पर लगाने की सूजन, जलन, दर्द तथा आंखों का गड़ना ठीक होता है.
3 .नीम की पत्तियों तथा लोधरा का पाउडर कपड़े में बांधकर पानी की कुछ बूंदे छोड़ दें. फिर पानी से आँख धोने से नेत्र विकार ठीक होते हैं.
4 .दुखती आंख में नीम की पत्तियों का रस शहद मिलाकर लगाने से भी दर्द दूर होता है और साफ दिखाई देने लगता है. नीम की लकड़ी जलाकर उसकी राख का सुरमा भी लगाने से अच्छा लाभ होता है.
5 .नीम के बीज का चूर्ण को नत्य आंखों में काजल की तरह लगाने से मोतियाबिंद में लाभ होता है.
6 .50 ग्राम नीम के पत्तों को पानी के साथ पीसकर टिकिया बनाकर सरसों के तेल में पकाएं. जब वह जलकर काली हो जाए तब उसे उसी तेल में मिलाकर उसमें दसवां भाग कपूर तथा दसवां हिस्सा कलमीशोरा मिला लें, इसे अच्छी तरह से घोटकर कांच की शीशी में भरकर रख लें. इसे रात के समय आंख में काजल की तरह लगाएं और सुबह त्रिफला के पानी से आंखों को धोएं. इससे आंखों की खुजली, जलन, लालिमा आदि दूर होती है और आंखों की रोशनी बढ़ती है.
कान के रोगों में नीम के फायदे और इस्तेमाल करने के तरीके-
1 .नीम का तेल गर्म कर एवं थोड़ा ठंडा कर कान में कुछ दिन तक नियमित डालने से बहरापन दूर होता है.
2 .नीम के पत्ते का रस 40 मिलीलीटर और तिल के तेल 40 मिलीलीटर को पका लें तेल मात्र शेष रहने पर छानकर तीन- चार बूंद कान में डाल दें. इससे कान का बहना ठीक हो जाता है.
3 .कान के घाव एवं कान से मवाद आने में नीम का रस शहद के साथ मिलाकर डालने से या बत्ती में भिगोकर कान में रखने से मवाद निकलना बंद हो जाता है और घाव ठीक हो जाता है.
4 .नीम के तेल 40 मिलीलीटर और 5 ग्राम मोम को आग पर गर्म करें. मोम गल जाने पर उसमें फुलाई हुई फिटकरी का 750 मिलीग्राम चूर्ण अच्छी तरह से मिलाकर शीशी में रख लें. इस मिश्रण की तीन- चार बूंद दिन में दो बार कान में डालने से कान का बहना ठीक हो जाता है.
5 .कान दर्द या कान बहने में नीम के तेल कुछ दिन तक कान में नियमित डालने से ठीक हो जाता है.
दांतो के लिए नीम का फायदे और इस्तेमाल करने के तरीके-
1 .प्राचीन काल से ही नीम दातुन का इस्तेमाल दांतो को साफ करने के लिए किया जाता रहा है. इससे नियमित दांत साफ करने से दांतों के रोग दूर रहते हैं.
2 .सौ ग्राम नीम की जड़ को पीसकर आधा लीटर पानी में पकाएं, पानी एक चौथाई शेष रहने तक उबालें. इस पानी से कुल्ला करने से दांतों के अनेक रोग खत्म हो जाते हैं.
3 .नीम की जड़ की छाल के चूर्ण से दातों को मंजन करने से दांतों से खून गिरना, मवाद निकलना, मुंह में छाले पड़ना, मुंह से दुर्गंध आना, जी मिचलाना आदि समस्याएं दूर हो जाती है.
4 .मसूड़ों से खून आना और पायरिया होने पर नीम के तने की भीतरी छाल या पत्तों को पानी में उबालकर उस पानी से कुल्ला करने से लाभ होता है. इससे मसूड़े और दांत मजबूत होते हैं. नीम के फूलों का काढ़ा बनाकर पीने से भी इससे अच्छा लाभ होता है.
लू की जलन में नीम से फायदा और इस्तेमाल करने के तरीके-
1 .नीम के पंचांग यानी पत्ता, जड़, फूल, फल एवं छाल तथा मिश्री एक- एक तोला पानी के साथ पीसकर पीने से लू का प्रभाव नष्ट होता है. नीम की पत्ती पीसकर नीम के रस के साथ माथे पर लगाने से भी लू का असर कम होता है.
2 .चैत्र मास में 10 दिन तक नीम की कोमल पत्तियां एवं काली मिर्च सेवन करने वाले व्यक्ति को गर्मी में लू नहीं लगती है. शरीर में ठंडक बनी रहती है साथ ही फोड़ा- फुंसी, चर्म रोग भी नहीं होता है.
पेट रोगों में नीम के फायदे और इस्तेमाल करने के तरीके-
1 .40 50 ग्राम नीम की छाल को जौ के साथ कूटकर 400 मिलीलीटर पानी में पकाएं. इसमें 10 ग्राम नमक भी डाल दें आधा रहने पर गुनगुना कर पिलाने से पेट दर्द से राहत मिलता है.
2 .नीम की सींक,धनिया, सोंठ, और शक्कर सभी 6-6 ग्राम को एक साथ मिला लें. इसका काढ़ा बनाकर सुबह-शाम पीने से खट्टी डकार, एसिडिटी तथा अत्यधिक प्यास लगने की समस्या दूर होती है.
3 .नीम का पंचांग का महीन चूर्ण एक भाग विधारा चूर्ण 2 भाग तथा सत्तू 10 भाग तीनों को मिलाकर रखें. उचित मात्रा में शहद के साथ सेवन करने से एसिडिटी में लाभ होता है. पित्त के कारण होने वाले बुखार में भी यह काफी फायदेमंद होता है.
स्तनों में घाव होने पर नीम के फायदे और इस्तेमाल करने के तरीके-
50 मिलीलीटर सरसों के तेल में 25 ग्राम नीम के पत्ते को पकाकर रख लें. अब नीम के पत्ते के काढ़े से घाव को धोकर उसके बाद राख मिला तेल लगा दें तथा कुछ सुखी राख ऊपर से लगाकर पट्टी बांधे, दो-तीन दिन में काफी आराम मिलेगा. इसके बाद प्रतिदिन नीम के काढ़े से नीम का तेल लगाते रहे. घाव भरकर सूख जाएगा.
पथरी के लिए नीम के फायदे और इस्तेमाल करने के तरीके-
1 .नीम के पत्तों की 500 मिलीग्राम राख को कुछ दिनों तक लगातार पानी के साथ दिन में तीन बार खाने से पथरी टूटकर निकल जाती है.
2 .2 ग्राम नीम के पत्तों में 50 से 100 मिलीलीटर तक पानी में पीसकर छानकर डेढ़ महीना तक पिलाते रहने से पथरी गलकर निकल जाती है. इसका सेवन दिन में तीन बार करना चाहिए.
फाइलेरिया रोग में नीम के फायदे और इस्तेमाल करने के तरीके-
नीम की छाल और खैर की छाल 10-10 ग्राम 250 मिली लीटर गोमूत्र में पीसकर छान लें. अब इसमें 100 ग्राम शहद मिलाकर सुबह, दोपहर तथा शाम को पिलाने से हाथीपाव यानी फाइलेरिया रोग धीरे-धीरे नष्ट हो जाता है.
गठिया रोग में नीम के फायदे और इस्तेमाल करने के तरीके-
1 .20 ग्राम नीम के अंदर की छाल को पानी के साथ खूब महीन पीसकर दर्द के स्थान पर गाढ़ा लेप करें. सूख जाने पर लेप को उतार कर फिर से लेप करें. इससे तीन- चार बार में ही जोड़ों के दर्द में राहत मिलता है.
2 .नीम के बीज के तेल की मालिश करने से भी गठिया रोग में लाभ होता है.
3 .नीम के बीज का तेल की कुछ बूंदों को पान में लगाकर खिलाने से तथा रसनादी क्वाथ में इसकी 30 बूंदे डालकर पिलाने से ऐठन तथा कई तरह के वातविकार रोग दूर हो जाते हैं.
धवल रोग में नीम के फायदे और इस्तेमाल करने के तरीके-
शरीर के विभिन्न भागों में चकते के रूप में चमड़ी का सफेद हो जाना, फिर पूरे शरीर की चमड़ी का रंग बदल जाना जिसे धवल रोड कहते हैं. इसका स्वास्थ्य पर तो कोई असर नहीं पड़ता है, इसके होने का कारण भी बहुत ज्ञात नहीं है लेकिन यूनानी चिकित्सा का मत है कि यह खून की खराबी, पाचन शक्ति की गड़बड़ी, कफ की अधिकता, पेट में कीड़े, असंयमित खानपान तथा मानसिक तनाव, अधिक एंटीबायोटिक दवाओं का सेवन आदि के कारण होता है. इसमें नीम की पत्ती के साथ बाकूची का बीज तथा चना को पीसकर लगाने से ठीक होता है.
सिर दर्द में नीम के फायदे और इस्तेमाल करने के तरीके-
1 .नीम के तेल को ललाट पर लगाने से सिर दर्द ठीक होता है.
2 .सूखे नीम के पत्ते, काली मिर्च और चावल को बराबर मात्रा में मिलाकर पीसकर चूर्ण बना लें. अब सूर्योदय से पहले सिर के जिस तरफ दर्द हो उसके दुसरे तरफ की नाक में इस चूर्ण को एक चुटकी भर डालें. इससे आधासीसी यानी अधकपारी के दर्द या माइग्रेन में जल्द लाभ होता है.
जले- कटे में नीम के फायदे और इस्तेमाल करने के तरीके-
1 .आग से जले स्थान पर नीम का तेल लगाने अथवा नीम तेल में नीम के पत्तों को पीसकर लेप करने से राहत मिलती है क्योंकि नीम में प्रदाहरोधी यानी एंटी इन्फ्लेमेटरी गुण पाई जाती है जिसके कारण ऐसा होता है.
2 .नीम के तेल एवं पत्तियों में एंटीसेप्टिक गुण होते हैं. कटे हुए स्थान पर नीम का तेल लगाने से धनुषटंकार ( टिटनेस ) होने का डर नहीं रहता है.
3 .नीम की पत्ती को पानी में उबालकर पानी को जले हुए अंग को लगाने से भी शीघ्र राहत मिलती है.
हैजा रोग में नीम के फायदे और इस्तेमाल करने के तरीके-
हैजा विब्रियो कैलेरा नामक जीवाणु से संक्रमित होता है. कूड़े- कचडों में के शरण में इनका निवास अधिक होता है. इस बैक्टीरिया से ग्रस्त व्यक्ति अपने मल द्वारा हैजे के करोड़ों जीवाणु वातावरण में छोड़ता है उससे जल, मिट्टी, खाद पदार्थ तथा वायु संक्रमित होते हैं. मक्खियां भी इसके संवाहक बनती है. उल्टी, दस्त, हाथ- पांव में ऐठन और तेज प्यास हैजे के मुख्य लक्षण होते हैं.
1 .हैजा रोग में नीम के पत्तों को पीसकर गोला बनाकर तथा कपड़े में बांधकर ऊपर बनी हुई मिट्टी का मोटा लेप चढ़ाकर उसे आग के धूमल में पकाना चाहिए. जब वह पककर लाल हो जाए तब थोड़ी देर पर उस पके हुए गोले को अर्क गुलाब के साथ रोगी को देने से दस्त, वमन एवं प्यास की समस्या दूर हो जाती है.
2 .नीम तेल की मालिश से शरीर का ऐंठन कम होता है. हैजे में नीम तेल पानी के साथ पीने से भी लाभ होता है. नीम छाल का काढ़ा पतले दस्त में काफी फायदेमंद होता है.
घाव में नीम के फायदे और इस्तेमाल करने के तरीके-
1.10 ग्राम नीम की गिरी तथा 20 ग्राम मोम को 200 ग्राम तेल में डालकर पकाएं. जब दोनों अच्छी तरह से मिल जाए तो आग से उतारकर 10 ग्राम राल का चूर्ण मिलाकर अच्छी तरह से हिला कर रखें. यह मलहम आग से जले हुए घाव पर लगाने घाव जल्दी ठीक हो जाता है.
2 .हमेशा बढ़ते रहने वाले घाव को नीम के पत्तों के काढ़े से अच्छी तरह से धो लें. इसके बाद नीम के छाल की राख को उसमें भर दें. 7- 8 दिन में ही घाव पूरी तरह से खत्म हो जाएगा.
3 .50 मिलीलीटर नीम के तेल में 10 ग्राम कपूर मिलाकर रखें. इसमें रुई का फाहा डुबोकर घाव पर रखने से जल्दी ठीक हो जाता है.
4 .भगंदर एवं अन्य स्थानों के घाव पर नीम के तेल में कपूर मिला इसकी बत्ती बनाकर अंदर रखें एवं ऊपर भी इसी तेल की पट्टी बांधने से लाभ होता है. 6 ग्राम नीम के पंचांग के चूर्ण को प्रतिदिन कुछ दिनों तक सेवन करने से पुराने से पुराने भगंदर भी ठीक हो जाते हैं.
चर्म रोगों में नीम के फायदे और इस्तेमाल करने के तरीके-
1 .उकवत में शरीर के अंगों की चमड़ी कभी इतनी विकृत एवं विद्रूप हो जाती है कि अंग्रेजी डॉक्टर उस अंग को काटने तक की सलाह देते हैं. लेकिन नीम इस समस्या को दूर कर सकता है. इसके लिए एक तोला मंजिष्ठादि क्वाथ, नीम एवं पीपल की छाल 1-1 तोला तथा गिलोय का क्वाथ एक तोला मिलाकर प्रतिदिन 1 महीने तक लगाने से एक्जिमा नष्ट हो जाता है.
2 .एक्जिमा में नीम का रस नियमित कुछ दिनों तक लगाने से और एक चम्मच प्रतिदिन पीने से भी ठीक हो जाता है.
3 .कीड़े के काटने से होने वाली खुजली पर नीम की पत्ती और हल्दी 4:1 में पीसकर छापने से खुजली में 97 प्रतिशत तक लाभ पाया गया है. यह प्रयोग 15 दिन तक किया जाना चाहिए.
4 .वसंत ऋतु में 10 दिन तक नीम की कोमल पत्ती तथा गोल मिर्च पीसकर खाली पेट पीने से साल भर तक कोई चर्म रोग नहीं होता है. इससे खून साफ रहता है, रक्त विकार दूर करने में नीम की जड़ की छाल नीम का गोंड एवं नीम के फूल का अर्क काफी गुणकारी होता है. चर्म रोग में नीम तेल की मालिश करने से तथा छाल का क्वाथ पीने से अच्छा लाभ होता है.
5 .नीम के पत्तों को पीसकर दही में मिलाकर लगाने से दाद जड़ से खत्म हो जाता है.
6 .नीम की पत्ती और बुझे हुए चूने को नीम के हरे पत्तों के रस में घोटकर नासूर में भर देने से ठीक हो जाता है. जिस घाव में नासूर पड़ गया हो तथा उससे बराबर मवाद आता रहता हो तो उसमें नीम की पत्तियों का पुल्टिस बांधने से लाभ होता है.
7 .प्राचीन आयुर्वेद का मत है कि कुष्ठ रोगी को 12 महीने नीम वृक्ष के नीचे रहने, नीम के खाट पर सोने, नीम का दातुन करने, प्रातः काल नित्य एक छोटा नीम की पत्तियों को पीसकर पीने, पूरे शरीर में नित्य नीम तेल की मालिश करने, भोजन के समय नित्य 5 तोला नीम का रस पीने, शय्या पर नीम की ताजी पत्तियां बिछाने, नीम पत्तियों का रस जल में भिगोकर स्नान करने तथा नीम तेल में नीम की पत्तियों की राख मिलाकर घाव पर लगाने से पुराने से पुराना कोढ़ यानी कुष्ट नष्ट हो जाता है.
8 .नीम के तेल में नीम की पत्तियों की राख मिलाकर जहां पर भी सफेद दाग हो गया हो वहां पर प्रतिदिन लगाना चाहिए. प्रतिदिन सुबह 10 मिलीलीटर नीम के पत्ते का रस पीना चाहिए तथा पूरे शरीर में नीम के पत्ते का रस और तेल की मालिश करनी चाहिए.
चेचक रोग में नीम के फायदे और इस्तेमाल करने के तरीके-
1 .चेचक कभी निकले ही नहीं इसके लिए आयुर्वेद में बताया गया है कि चैत्र मास में 10 दिन तक प्रातः काल नीम की कोमल पत्तियां गोल मिर्च के साथ पीसकर पीना चाहिए. नीम का बीज, बहेड़े का बीज और हल्दी बराबर मात्रा में लेकर पीसकर छानकर कुछ दिन तक पीने से भी चेचक का डर नहीं रहता है.
2 .चेचक के रोगी को अधिक प्यास लगती हो तो नीम की छाल को जलाकर उसके अंगारों को पानी में डालकर बुझा लें और इस पानी को छानकर रोगी को पिलाने से प्यास कम हो जाती है. अगर इससे भी प्यास शांत ना हो तो 1 लीटर पानी में 10 ग्राम कोमल पत्तों को उबाल लें. जब आधा पानी रह जाए तो छानकर रोगी को पिलाएं.
3 .चेचक के दाने में अगर बहुत गर्मी हो तो नीम की 10 ग्राम कोमल पत्तियों को पीस लें. इसका रस बहुत पतला कर लेप करना चाहिए. नीम के बीजों की 5-10 गिरी को पानी में पीसकर लेप करने से चेचक के दाने की जलन शांत होती है.
4 .जब चेचक के दाने खून सूख उतर जाते हैं तो उनकी जगह पर छोटे- छोटे गड्ढे दिखाई देते हैं और आकृति बिगड़ जाती है. इन स्थानों पर नीम का तेल अथवा नीम के बीजों की मगज को पानी में पीसकर लगाया जाए तो दाग मिट जाते हैं.
5 .चेचक के रोगी का अगर बाल झड़ जाए तो सिर में कुछ दिनों तक नीम का तेल लगाने से बाल फिर से निकल जाते हैं.
नोट- यह लेख शैक्षणिक उद्देश्य से लिखा गया है. किसी भी प्रयोग से पहले योग्य चिकित्सक की सलाह जरूर लें. अगर जानकारी अच्छी लगे तो शेयर करें ताकि किसी को इससे लाभ हो. धन्यवाद
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