कहानी- नक़ल के लिए अकल होनी चाहिए

एक पहाड़ की ऊंची चोटी पर एक बाज  रहता था. पहाड़ की तराई में एक बरगद के पेड़ पर एक कौवा अपना घोंसला बनाकर रहता था. कौवा  वह बहुत चालाक था . उसकी कोशिश सदा यही रहती थी की बिना मेहनत के उसे खाने को मिल जाए.

कहानी- नक़ल के लिए अकल होनी चाहिए
उस पेड़ के आसपास कुवे में कई सारे खरगोश रहते थे. जब भी खरगोश बाहर आते तो बाज ऊंची उड़ान भरता और किसी एक खरगोश को अपने मजबूत पंजो में दाबोचकर लेकर जाता.  ये सारा दृश्य कौवे ने कई बार देखा था ,एक दिन कौवे ने सोचा कि  ऐसे बैठें- बैठें तो ये चतुर खरगोश मेरे हाथ आएंगे नहीं. अगर इनका नरम-नरम मांस खाना है तो मुझे भी बांझ की तरह करना होगा. मैं भी उनको एका एक उपर से आकर लपक लूंगा. 


दूसरे दिन कौवे ने भी एक खरगोश को दबोचने की बात सोच कर ऊंची उड़ान भरी फिर उसने खरगोश को पकड़ने के लिए बाज की तरह जोर से झपाटा मारा. अब भला कौवा बाज का क्या मुकाबला करता !

कहानी- नक़ल के लिए अकल होनी चाहिए
खरगोश ने उस कौवे को देख लिया और झट वहां से भाग के एक बड़े पत्थर के पीछे छुप गया. कौवा अपनी तीव्र गति को संभाल न सका नतीजन उस पत्थर से जा टकराया. उसको बहुत चोट लगी , उसकी गर्दन भी टूट गई और उसने वहीं तड़प- तड़प के दम तोड़ दिया.


कहानी का सार-


कोई भी काम करने से पहले उसके परिणाम के बारे सोच कर ही उसे करना है या नहीं यह तेय करने में ही समझदारी होती हैं. इसीलिए कहा जाता है कि नकल के लिए भी अकल चाहिए. 

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