इस कहानी की शुरुआत आज के समय के पाकिस्तान से शुरू हुई थी. गुजरात का जो हिस्सा पाकिस्तान में है उसके एक छोटे से गांव में एक तुला नामक कुम्हार रहता था. उसी परिवार में सोहनी का जन्म हुआ था. सोहनी के पिता उस समय कई प्रकार की मिट्टी के बर्तन तैयार करते थे और सोहनी अपने पिता की कामों में उनका काफी मदद किया करती थी. इसके अलावा सोहनी तैयार हो चुके मिट्टी के बर्तनों में अपने हाथों के द्वारा सुंदर चित्रकारी किया करती थी.
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सोहनी- महिवाल के सच्चे प्रेम की कहानी |
कहा जाता है कि जिस प्रकार सोहनी बर्तनों को खूबसूरत बनाती थी. उसी प्रकार वह खुद भी बहुत ही खूबसूरत दिखाई देती थी. एक बार जब सोहनी अपने पिता की मदद कर रही थी, तब उसी समय वहां उज्बेकिस्तान का शहजादा इज्जत बेग दुकान पर आया. सोहनी को देखता रहा और अपना दिल खो बैठा. यह इज्जत बेग आगे चलकर महिवाल बना.
अपने सच्चे प्यार को पाने के लिए उज्बेकिस्तान के उस शहजादे ने अपने महल की शानोशौकत सब कुछ त्याग कर गांव की धूल मिट्टी में रहने लगा. शहजादा पहली ही नजर में सोहनी को दिल दे चुका था. इसलिए शहजादा अपने दोस्तों के साथ सोहनी के गांव में रहने लगा और सोहनी को देखने के लिए प्रतिदिन मटके खरीदने के बहाने उसकी दुकान पर आने लगा.
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सोहनी- महिवाल के सच्चे प्रेम की कहानी |
धीरे-धीरे सोहनी को भी महिवाल अच्छा लगने लगा और वह भी पसंद करने लगी. सोहनी के साथ ज्यादा से ज्यादा समय बिताने के लिए इज्जत बेग ने अपनी पहचान बताएं बिना सोहनी के पिता से कहा कि वह उसको कोई काम दे दे. सोहनी के पिता ने इज्जत बेग को अपने घर पर पालतू जानवरों की देखभाल करने के लिए रख लिया. उन दिनों पंजाब में पालतू जानवरों को चराने वाले को महिवाल कहा जाता था. इसलिए इज्जत बेग महिवाल के नाम से जाना जाने लगा.
वास्तव में महिवाल को यकीन था कि वह और सोहनी एक हो जाएंगे और फिर उसके बाद वह खुशी-खुशी रहने लगेंगे. लेकिन कहते हैं ना कि जब तक सच्चे प्यार में कोई इम्तहान ना हो तो उसे सच्चा प्यार नहीं माना जाता है. उन दोनों की प्रेम कहानी में तब मोड़ आया जब सोहनी के पिता ने सोहनी की शादी गांव के एक अन्य कुमार युवक से तय कर दी.
इस बात को सुनकर सोहनी और इज्जत बेग की जिंदगी में तूफान आ गया और उनकी सपनों की दुनिया चकनाचूर हो गई. उन दिनों एक विवाह प्रचलित था कि कुम्हार जाति के लोग अपने बच्चों की शादी उसी गांव में कुम्हार जाति के लोगों से ही करते थे ताकि उनके बच्चे हमेशा उनकी नजरों के सामने रहें.
इस बारे में कुछ लोगों का मानना था कि सोहनी और महिवाल के बीच में चल रहे प्रेम प्रसंग का उनके परिवार को पता चल गया था. इसलिए सोहनी की शादी कहीं और तय कर दी गई थी. कुछ दिनों बाद महिवाल जब देखा जिस लड़की से बेइंतहा मोहब्बत करता था उसकी डोली किसी और के घर चली गई.
सोहनी की शादी हो जाने के बाद महिवाल का हाल काफी बुरा हो गया और वह अक्सर रोता रहता था तो दूसरी तरफ सोहनी भी काफी बेचैन रहने लगी थी. सोहनी कि कहीं और शादी हो जाने के बाद भी महिवाल उसे किसी भी कीमत पर अपना बनाना चाहता था.
सोहनी- महिवाल के सच्चे प्रेम की कहानी |
सोहनी के अधूरे प्यार और उसकी याद में महिवाल फकीर बन गया और वह दर-दर भटकने लगा. लेकिन जिनकी मोहब्बत सच्ची होती है तो तकदीर उन्हें अलग कर देती है व उन्हें मिला भी देती है. शादी के बाद भी सोहनी- महिवाल से चोरी- चुपके मिलने लगी और दोनों के बीच बेइंतहा प्यार भी उमड़ने लगा.
दोनों ने सोचा कि वह घर वालों से छुपकर एक- दूसरे से मिला करेंगे. महिवाल चिनाब नदी की दूसरी तरफ रात को एक पेड़ के नीचे सोहनी का इंतजार करने लगा और सोहनी हर रात को अंधेरे में पानी के मटके के सहारे महिवाल से मिलने जाने लगी. दोनों एक- दूसरे के साथ अपनी पुरानी यादों में खो जाते और रात वही बीता देते थे.
एक बार सोहनी की भाभी को इस बात की भनक लग गई कि सोहनी चोरी चुपके महिवाल से मिलने जाती है तो इस हरकत के बारे में उसने सोहनी की सांस को बता दिया. लेकिन अभी भी सोहनी- महिवाल दोनों एक दूसरे से मिलने लगे और प्यार की दुनिया में खोते रहते. लेकिन उन्हें इस बात की बिल्कुल खबर नहीं थी कि सोहनी की सास और भाभी उनके खिलाफ कोई साजिश रच रही है.
सोहनी की भाभी और सास ने मिलकर सोहनी को मारने का विचार बना लिया. उन्होंने उस मटके को छुपा दिया जिस मटके के सहारे सोहनी महिवाल से मिलने जाती थी. उसकी जगह दोनों ने एक कमजोर ( कच्चा ) मटका रख दिया. सोहनी को पता चल गया कि उसका घड़ा बदल गया है फिर भी अपने प्रियतमा से मिलने की ललक में वह कच्चा घड़ा लेकर चिनाब में कूद पड़ी. कच्चा घड़ा टूट गया और सोहनी पानी में डूब गई.
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सोहनी- महिवाल के सच्चे प्रेम की कहानी |
दूसरे किनारे पर पैर लटकाए महिवाल सोहनी का इंतजार कर रहा था. जब सोहनी का मुर्दा जिस्म उसके पैरों से टकराया तो अपनी प्रियतमा की ऐसी हालत देखकर महिवाल पागल हो गया. उसने सोहनी के जिस्म को अपनी बांहों में थामा और चिनाब की लहरों में कूद कर जान दे दी.
सुबह जब मछुआरों ने मछली पकड़ने के लिए अपना जाल डाला तो उन्हें अपने जाल में सोहनी-महिवाल के आबद्ध जिस्म मिले जो मर कर भी एक हो गए थे. सोहनी महिवाल एक साथ लिपटे हुए थे. गांव वालों ने उनकी मोहब्बत में एक यादगार स्मारक बनाया, जिसे मुसलमान मजार और हिन्दू समाधी कहते हैं. क्या फर्क पड़ता है मोहब्बत का कोई मजहब नहीं होता. आज सोहनी और महिवाल भले ही हमारे बीच न हों लेकिन उनकी अमर मोहब्बत अभी भी जिंदा है.
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