सुजाक होने के कारण, लक्षण और घरेलू एवं आयुर्वेदिक इलाज क्या है ?

कल्याण आयुर्वेद-  सुजाक एक तीव्र स्वरूप का औपसर्गिक रोग है जो सुजाक से ग्रसित महिला या पुरुष के आपसी समागम ( सम्भोग ) के कारण हो जाता है. इस रोग में मूत्र मार्ग में सूजन होकर उससे पीप आने लगती है. मूत्र मार्ग के छिद्र के अंदर खरास, जलन तथा दर्द होता है साथ ही उससे हरे रंग का पीप आने लगता है.

सुजाक होने के कारण, लक्षण और घरेलू एवं आयुर्वेदिक इलाज क्या है ?

सुजाक रोग होने के कारण क्या है ?

सुजाक रोग नाइसीरिया गोनोरी नामक जीवाणु के द्वारा फैलता है. यह जीवाणु महिला और पुरुष के मूत्र मार्ग को संक्रमित करता है. इस रोग से ग्रसित महिला के साथ शारीरिक संबंध बनाने पर यह जीवाणु लिंग के माध्यम से मूत्र मार्ग में प्रवेश कर जाते हैं. यह संख्या वृद्धि कर मूत्र नलिका को खाने लगते हैं जिससे पीप बनने लगता है. इससे ग्रसित व्यक्ति के साथ शारीरिक संबंध बनाने के 2 से 7 दिन के अंदर ही इस रोग के लक्षण दिखाई देने लगते हैं.

सुजाक रोग का लक्षण क्या है ?

सुजाक रोग महिला व पुरुष दोनों में होने वाला रोग है.

सुजाक रोग का पुरुषों में लक्षण क्या है ?

1 .पुरुषों में सबसे पहले संक्रमण मूत्रमार्ग के अगले भाग में होता है. जहां से प्रोस्टेट ग्रंथि, मूत्राशय और एपीडिडिमिस में फैल जाता है.

2 .संभोग के दो-चार दिन बाद मूत्र मार्ग में जलन तथा दर्द होती है और कुछ ही घंटों में पीप आना शुरू हो जाता है. इस समय शिश्नमुंड की शिरा रक्तमय तथा शोथ युक्त हो जाता है.

3 .पुरुष जननांगों में विकृति होने के कारण रोगी को पेशाब करते समय जलन होती है. पेशाब के रास्ते से सफेद या पीले रंग का स्त्राव निकलना शुरू हो जाता है.

4 .इससे ग्रसित पुरुष को बार- बार पेशाब करने की इच्छा होती है और मूत्रकृच्छ के लक्षण मिलते हैं.

5 .कुछ दिनों तक उपरोक्त लक्षण चलते रहते हैं इसके साथ ही कटि और श्रोणि- प्रदेश में दर्द होती है.

6 .सुजाक की तीव्र अवस्था में रोगी को बुखार भी हो जाता है.

7 .मूत्र मार्ग की श्लैश्मिककला काफी सूज जाती है और वहां पर घाव बन जाते हैं. यहीं से रक्त और पीप आते हैं.

8 .शोथ के कारण मूत्र मार्ग बंद हो जाता है जिससे मूत्र अवरुद्ध हो जाता है.

9 .धीरे-धीरे पेशाब की मात्रा कम होती जाती है और कुछ समय बाद प्रातः काल सोकर उठने पर दिखलाई देता है. इस समय के स्राव को ग्लिट कहते हैं.

10 .कुछ समय बाद मूत्र मार्ग में निकुंचन की अवस्था उत्पन्न हो जाती है.

11 .जब संक्रमण वृषणों में पहुंच जाता है तब रोगी के वृषणों में तीव्र दर्द अनुभव होने लगती है. जिसके परिणाम स्वरूप वंध्यत्व उत्पन्न हो जाता है.

विशिष्ट लक्षण- सुजाक के कुछ महत्वपूर्ण लक्षण निम्न प्रकार हैं-

1 .इस रोग में पेशाब साफ नहीं आती है और बूंद-बूंद कर होती है.

2 .हल्की हरारत, जाड़ा अथवा कपकपी तथा सिर दर्द की उपस्थिति मिलती है.

3 .रात में लिंग में अधिक कड़ापन होने के कारण रोगी को नींद नहीं आती है.

4 .रोग पुराना होने पर जलन और पीड़ा कम होती है. लेकिन पीप का स्राव जारी रहता है.

5 .दीर्घकालिक ( पुराने ) रोग में गोंद की तरह सफद और लसीला होता है.

6 .कुछ रोगों में कुछ समय बाद पीप आना बंद हो जाता है अथवा कम हो जाता है. कुछ समय तक बंद रह कर फिर आने लगता है. यह क्रम कुछ महीनों अथवा वर्षों तक चलता रहता है. इस प्रकार पर पीप के बंद होने को रोग- मुक्ति नहीं समझनी चाहिए, हो सकता है कि कुछ महीने अथवा कुछ वर्षों बाद पुनः पीप आने लगे.

7 .रोग 15 दिन में मूत्र मार्ग के पूर्व भाग फर्स्ट भाग में फैल जाता है. यहां से यह पौरुष ग्रंथि, शुक्राशय एवं शुक्र ग्रंथियों में पहुंचकर शोथ पैदा करता है. जिससे बेहद दुखदाई लक्षण पैदा हो जाते हैं.

8 .पौरुष ग्रंथि में शोथ उत्पन्न हो जाने पर इसका शांत होना असंभव हो जाता है. ऐसी अवस्था में पीप पुनः पतला निकलने लगता है जो बिना किसी दर्द और जलन के आता रहता है. कभी-कभी यह इतना कम हो जाता है कि केवल लिंग के नीचे उड़ने से ही प्रतीत होता है. यह अवस्था कई सालों तक बनी रहती है.

विभिन्न अंगों में संक्रमण से अनुसार संक्षिप्त लक्षण-

1 .यूरेथ्रा में संक्रमण पहुंचने पर- जलन, पेशाब करते समय दर्द, बार बार पेशाब आना, कष्ट के साथ पेशाब की प्रवृत्ति, सफेद या हरा- पीला स्राव होना.

2 .प्रोस्टेट ग्रंथि में संक्रमण होने पर- पेशाब का बंद हो जाना.

3 .सेमिनल वेसिकल में संक्रमण होने पर- दर्द और स्थानीय कड़ापन, ठंडा लग कर बुखार.

4 .ब्लैडर में संक्रमण होने पर- पेशाब बार- बार आती है साथ ही बिंदु मूत्रकृच्छ की उपस्थिति.

5 .ईपीडिडिमिस में संक्रमण होने पर- गंभीर स्वरूप की पीड़ा, सूजन तथा लिंग में कड़ापन.

6 .टेस्टीकिल में संक्रमण होने पर- दर्द होता रहता है.

महिलाओं में सुजाक होने के लक्षण क्या है ?

महिलाओं में इसका संक्रमण मूत्रमार्ग, योनि, गर्भाशय ग्रीवा, डिंब वाहिनी और बर्थोलिन ग्रंथियों तक ही सीमित होता है.

1 .रोग के प्रारंभ में महिला को पेशाब करने में कष्ट होता है.

2 .बार-बार पेशाब करने की इच्छा होती है.

3 .योनि मार्ग से पीपयुक्त पेशाब का आना.

अगर इसका संक्रमण डिंब वाहिनी में पहुंच गई हो तो-

1 .निम्न उदर के दोनों तरफ पीड़ा होती है.

2 .बुखार आना.

3 .श्रोणि परीक्षा करने पर दोनों पाश्व्रो में दाब युक्त वेदना, पिंड की उपस्थिति.

बालकों में- जिन महिलाओं को सुजाक रोग होता है उनसे उत्पन्न नवजात शिशु में नेत्राभिष्यंद अधिकांश देखने को मिलता है.

सुजाक रोग का निदान-

1 .मूत्र मार्ग से निकलने वाले स्राव की माइक्रोस्कोपिक परीक्षा करने पर गोनोकोकाई की उपस्थिति होने पर रोग का निश्चित निदान हो जाता है.

2 .जीवाणु वृक्क की आकृति के तथा दो जीवाणु आमने- सामने एक कोषा के भीतर मिलते हैं. यह ग्राम नेगेटिव होते हैं.

3 .स्राव में बहुकेंद्रिक स्वेत कयाणु बहुत अधिक संख्या में तथा उससिप्रिय अल्प संख्या में मिलते हैं.

4 .कंप्लीमेंट फिक्सेशन टेस्ट पॉजिटिव होता है.

रोग विनिश्चय- रोग निदान में निम्न लक्षण तथा चिन्ह सहायक होते हैं-

1 .अवैध शारीरिक संबंध का इतिहास.

2 .उपसर्ग के 3 स 7 दिन के अंदर मूत्र त्याग में जलन तथा पीड़ा होना.

3 .मूत्र मार्ग से विशेष प्रकार के पीप का रक्त स्राव.

4 .इस परीक्षा में जीवाणु विशेष की उपस्थिति.

5 .दिन के समय रोग में वृद्धि.

सुजाक रोग का उपद्रव- यानि इसका इलाज न किया जाए तो-

पुरुषों में-

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1 .युरेथ्रल ग्लैंड शोथ.

2 .गोनोकोकल प्रोस्टेटाइटिस.

3 .गनोरियल ईपीडिडिमाइटिस एवं स्टेरिलिटी.

4 .गनोरियल वेसीक्युलाइटिस.

5 .गनोरियल पैरा यूरेथ्राइटिस.

6 .यूरेथ्रा का संकोच.

7 .गनोरियल सिस्टाइटिस.

महिलाओं में-

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1 .स्केनाइटिस.

2 .बर्थोलिनाइटिस.

3 .सालपिन्जाइटिस.

4 .गनोरियल वल्वो-वेजीनाइटिस.

5 .गनोरियल इंडोमिट्राइटिस.

6 .गनोरियल पेरीटोनाइटिस.

सुजाक के कारण मिले-जुले उपद्रव-

1 .सेप्टीसीमिया

2 .अर्थराइटिस

3 .नेत्राभिष्यंद.

4 .स्पर- फॉर्मेशन.

5 .टीनों- साइनोवाइटिस.

सुजाक रोग का घरेलू सामान्य चिकित्सा क्या है ?

1 .मूत्र द्वार को गुनगुने नमक के पानी से साफ करें. महिलाओं में इसे गर्म पानी में रुई भिगोकर सेक अथवा प्रक्षालन करें.

2 .मलावरोध ( कब्ज ) को दूर करें.

3 .पेशाब को क्षारीय बनाए रखें ताकि पेशाब में जलन न हो.

4 .सुजाक से ग्रसित व्यक्ति को कम से कम 15 दिनों तक शराब का सेवन नहीं करना चाहिए. जब तक कि वह स्वस्थ न हो जाए.

5 .शारीरिक संबंध से दूरी बनाकर रखें. जब तक की बीमारी खत्म न हो जाए.

6 .सुजाक से ग्रसित व्यक्ति को प्रतिदिन स्नान करना आवश्यक है.

7 .यदि रोगी के कथन से पता चले कि उसने रोग ग्रस्त वेश्या से संभोग करने के बाद अपनी पत्नी से भी संभोग किया है तो उस परिस्थिति में पति-पत्नी दोनों की चिकित्सा करना आवश्यक है. जिससे कि भविष्य में एक दूसरे को रोग न लगे.

8 .सुजाक रोग से ग्रसित व्यक्ति को दिन में कई बार कच्चा दूध पीना चाहिए इसके लिए 4 किलो दूध में 1 किलो पानी मिलाकर दिन भर में कई बार पीना लाभदायक होता है.

9 .3 ग्राम रेवंद चीनी का चूर्ण सुबह-शाम ताजे पानी के साथ सेवन करने से पुराने से पुराना सुजाक ठीक हो जाता है.

10 .केले के तने में से 250 ग्राम रस निकालकर मिश्री मिलाकर पीने से सुजाक में अच्छा लाभ होता है.

11 .2 माशा से फूली हुई फिटकरी को छाछ के साथ सेवन करने से सुजाक ठीक हो जाता है.

12 .सूजाक ( लिंग में घाव हो तो ) 8 ग्राम पिसी हुई हल्दी की फक्की पानी के साथ दिन में तीन बार सेवन करने से घाव जल्दी सूखता है.

13 .भुनी हुई फिटकरी और गेरू बराबर मात्रा में लेकर उसकी दुगनी शक्कर मिलाकर रख लें. अब इसमें से 7 माशा की मात्रा में गाय के दूध के साथ सेवन करने से सुजाक ठीक हो जाता है.

14 .एक रत्ती त्रिवंग भस्म और 2 ग्राम कबाब चीनी मक्खन अथवा मलाई में मिलाकर खाने से सुजाक ठीक हो जाता है. आप चाहे तो इसमें शक्कर भी मिला सकते हैं.

15 .बकरी के दूध की लस्सी के साथ 3 माशा अजवाइन का चूर्ण सेवन करने से सुजाक में अच्छा लाभ होता है.

16 .गेंदे का स्वरस पीने से सुजाक रोग मिटता है.

17 .गर्म दूध में गुड़ मिलाकर पीने से सुजाक में लाभ होता है.

सुजाक का आयुर्वेदिक चिकित्सा क्या है ?

1 .श्रीखंड चूर्ण 1 ग्राम, लिंग विरेचन चूर्ण 2 ग्राम, सज्जीक्षार या यवाक्षार 1/2 ग्राम और चंदन वटी 2- 2 ग्राम, चंद्रप्रभा वटी 2-2 ग्राम दिन में 3-4 बार पानी या चंदन के शरबत के साथ सेवन करने से सुजाक रोग में तुरंत लाभ होता है.

2 .चंदनासव, त्रिवंग भस्म, शुद्ध फिटकरी, चंदन तेल, कबाब चीनी का तेल, ऐलादि चूर्ण, जौ का पानी, नारियल का पानी, गोखरू हिम आदि का सेवन करना उत्तम है.

3 .इस रोग में विरेचन कराना लाभदायक होता है.

4 .रोग पुराना हो या अधिक हो तो रसोत तथा फिटकरी 3-3 ग्राम 20 मिलीलीटर पानी में डालकर छानकर उसकी उत्तरवस्ति 3 दिन तक देनी चाहिए. इससे घाव जल्दी ठीक हो जाता है.

निष्कर्ष-

चरित्रहीन नारियों या वेश्याओं के साथ शारीरिक संबंध बनाने से या सुजाक से ग्रसित व्यक्ति के वस्त्र आदि पहनने से यह रोग होता है. यह संसर्गज रोग है. लिंग में अंदर व्रण हो जाता है. अतः पेशाब में दाह, वेदना, रुकावट होती है. पीप आता है. लिंग को दबाने से पीप निकलता है और लिंग के मुंह पर सदा पीप रहता है. कभी-कभी रक्त भी आता है. पेशाब पीला या लाल हो, बुखार हो, महिलाओं को भी सुजाक होता है तो वह गर्भधारण के योग्य नहीं रहती है. यदि वे गर्भ धारण कर लेती हैं तो उनसे होने वाला बच्चा में नेत्राभिष्यंद का खतरा रहता है.

नोट- यह लेख शैक्षणिक उद्देश्य से लिखा गया है. किसी बीमारी के उचित चिकित्सा का विकल्प नहीं है क्योंकि रोग का सही निदान एक चिकित्सक ही कर सकता है और आयु और रोग की अवस्था के अनुसार दवा का निर्धारण कर उचित इलाज कर सकता है. इसलिए किसी भी प्रयोग से पहले योग्य चिकित्सक की सलाह जरूर लें. धन्यवाद.

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