कोलोरेक्टल कैंसर- कारण, लक्षण और इलाज

कल्याण आयुर्वेद- हमारी पाचन प्रणाली भोजन को पचाती है और उसमें से पोषक तत्वों को अवशोषित करती है। ग्रासनली (भोजन की नली), पेट (अमाशय), छोटी आंत और बड़ी आंत मिलकर पाचन तंत्र बनाते हैं। बड़ी आंत, कोलन से शुरू होती है, जो लगभग 5 फीट लंबा होता है और मलाशय और गुदा (मलद्वार) में समाप्त होती है।

कोलोरेक्टल कैंसर- कारण, लक्षण और इलाज
कोलन और मलाशय की दीवार में ऊतक की चार परतें होती हैं। कैंसर तब होता है जब शरीर में कोशिकाएं अनियंत्रित रूप से बढ़ने लगती हैं। कोलोरेक्टल कैंसर की शुरुआत बड़ी आंत की दीवार के सबसे भीतरी परत से होती है। अधिकांश कोलोरेक्टल कैंसर छोटे पॉलीप्स से शुरू होते हैं। ये पॉलिप्स कोशिकाओं का एक समूह होते हैं। समय के साथ, इनमें से कुछ पॉलीप्स कैंसर में विकसित हो जाते हैं। यह कैंसर पहले बड़ी आंत की दीवार में, फिर आसपास के लिंफ नोड्स में और फिर पूरे शरीर में फैलता है।

कोलन कैंसर और रेक्टल कैंसर काफी कुछ मिलते- जुलते हैं और कोलोरेक्टल कैंसर के नाम से एक साथ इनकी चर्चा की जाती है। लेकिन मलाशय एक संकीर्ण जगह में होता है जिसे श्रोणि (pelvis) कहा जाता है। यहां पर वो आस-पास के अंगों और श्रोणि की हड्डी से चिपका हुआ होता है। इस कारण रेक्टल कैंसर की जांच और निदान का तरीका थोड़ा अलग होता है।

इनमें से अधिकांश कैंसर एडेनोकार्सिनोमा होते हैं। न्यूरोएंडोक्राइन (कार्सिनॉइड) ट्यूमर, गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल स्ट्रोमल ट्यूमर, लिम्फोमा और सार्कोमा भी बड़ी आंत में हो सकते है, पर दुर्लभत: ही पाए जाते हैं।

कोलोरेक्टल कैंसर के बारे में कुछ तथ्य-

1 .कोलोरेक्टल कैंसर दुनिया भर में तीसरा सबसे आम कैंसर है.

2 .यह विश्व स्तर पर प्रत्येक वर्ष 18 लाख व्यक्तियों में होता है.

3 .यह वैश्विक स्तर पर प्रति वर्ष 862000 मौतों का कारण बनता है.

4 .जीवनकाल में कोलोरेक्टल कैंसर होने का जोखिम 20 में से एक है.

कोलोरेक्टल कैंसर के कारण और जोखिम कारक-

कभी-कभी कोशिका विभाजन के दौरान एक स्वस्थ कोशिका के डीएनए में बदलाव आ जाता है। इससे उस कोशिका में अनियंत्रित विकास होने लगता है और कैंसर बनता है।

जिस किसी भी चीज से किसी को कैंसर होने का खतरा बढ़ता है, उसे जोखिम कारक कहते हैं। जोखिम कारक बीमारी उत्पन्न नही करता है बल्कि यह केवल जोखिम को बढ़ाता है।

कोलोरेक्टल कैंसर- कारण, लक्षण और इलाज
कोलोरेक्टल कैंसर के जोखिम कारक हैं:

1 .वृद्धावस्था

2 .पश्चिमी आहार (अत्यधिक वसायुक्त आहार, लाल मांस और प्रोसेस्ड मांस से भरपूर आहार; कम फाइबर वाला आहार)

3 .कोलोरेक्टल पॉलीप्स का इतिहास (एडिनोमेटस पॉलीप, बड़े पॉलीप्स और अनेक पॉलीप्स)

4 .कोलोरेक्टल कैंसर का पारिवारिक इतिहास (एक तिहाई कोलोरेक्टल कैंसर के मरीजों के परिवार के सदस्यों में यह बीमारी होती है)

5 .कोलोरेक्टल कैंसर का पिछला इतिहास (यदि आपका पहले कोलोरेक्टल कैंसर के लिए इलाज हुआ है)

6 .कोलन की सूजन आंत्र रोग (inflammatory bowel disease); अल्सरेटिव कोलाइटिस और क्रोहन (Crohn's ) रोग (कैंसर का खतरा अवधि और गंभीरता के साथ बढ़ जाता है)

7 .मधुमेह

8 .मोटापा

9 .शारीरिक निष्क्रियता

10 .धूम्रपान और शराब का सेवन

11 .आनुवांशिक जोखिम कारक (वंशानुगत संलक्षण) -

कोलोरेक्टल कैंसर के रोगियों के एक छोटे प्रतिशत, (लगभग 5%) में जीन परिवर्तन होता हैं जो अनुवांशिक होता है और जोखिम को बढ़ाता है।

12 .आम वंशानुगत कोलन कैंसर सिंड्रोम हैं:

हेरेडिटरी नॉनपोलिपोसिस कोलोरेक्टल कैंसर (HNPCC)- HNPCC, जिसे लिंच सिंड्रोम भी कहा जाता है, कोलन कैंसर और कुछ अन्य कैंसर के जोखिम को बढ़ाता है। एचएनपीसीसी वाले लोगों को 50 वर्ष की आयु से पहले कोलोरेक्टल कैंसर हो जाता है।

फैमिलियल एडिनोमेटस पॉलीपोसिस (FAP)- FAP एक दुर्लभ रोग है जिसके कारण बड़ी आंत में हजारों पॉलिप्स बन जाते हैं। FAP से पीड़ित लोगों में 40 वर्ष की आयु से पहले कोलोरेक्टल कैंसर होने का खतरा होता है।

13 .अन्य दुर्लभ वंशानुगत सिंड्रोम:Peutz-Jeghers syndrome and MYH-associated polyposis

कोलोरेक्टल कैंसर के लक्षण-

पेट के बाकी कैंसर की तरह कोलोरेक्टल कैंसर के भी शुरुआती चरणों में सामान्यतः कोई लक्षण नहीं होते हैं।

कोलोरेक्टल कैंसर के लक्षणों में शामिल है:

1 .मल त्याग की आदतों में परिवर्तन; लगातार दस्त, कब्जियत या यह महसूस करना कि पेट पूरी तरह से खाली नहीं है

2 .लगातार कमजोरी या थकान महसूस करना और भूख न लगना

3 .वजन कम होना

4 .हीमोग्लोबिन में कमी (एनीमिया)

5 .पेट में दर्द या बेचैनी

6 .मल में लाल या काले रंग का खून का धब्बा

ध्यान दें कि इनमें से कई लक्षण कोलोरेक्टल कैंसर के अलावा अन्य बीमारियों में भी हो सकते हैं।

कोलोरेक्टल कैंसर की जांच (डायग्नोसिस)-

1 .स्वास्थ्य परीक्षण- एक चिकित्सक द्वारा लक्षणों को समझना और संकेतों की जांच करना बीमारी तक पहुंचने के लिए जरूरी है।

2 .मल का ओकल्ट ब्लड परीक्षण (एफओबीटी)- ट्यूमर से थोड़ा-थोड़ा रक्तस्राव होता है जो आंखों को दिखाई नहीं देता है। इन टेस्ट के द्वारा इसका पता चलता है।

यह टेस्ट दो प्रकार के होते हैं:

1 .Guaiac एफओबीटी

2 .फेकल इम्यूनोकेमिकल टेस्ट (FIT) - यह एक नया और बेहतर परीक्षण है।

3 .कोलोनोस्कोपी-

कोलोनोस्कोपी से कोलोरेक्टल कैंसर की पुष्टि होती है।

कोलोनोस्कोप एक लचीली पतली ट्यूब होती है, जिसमें एक कैमरा होता है। यह आपकी बड़ी आंत के अंदर की छवि को एक मॉनिटर पर प्रसारित करता है। यदि कोई असामान्यता मिलती है, तो उसमें से एक छोटा सा नमूना भी लिया जाता है, जिसे बायोप्सी कहा जाता है।

4 .वर्चुअल कोलोनोस्कोपी-

बड़ी आंत की जांच के लिए एक विशेष रूप का सीटी स्कैन किया जाता है। इसे कोलोनोग्राफी भी कहते हैं।

5 .बायोप्सी-

बायोप्सी का अर्थ है कि ट्यूमर के एक छोटे से हिस्से का नमूना लेना और माइक्रोस्कोप के द्वारा इसकी जांच करना। यह एक पैथोलॉजिस्ट द्वारा किया जाता है। यदि आवश्यक हो तो बायोप्सी नमूनों पर जीन परीक्षण भी किया जा सकता है।

6 .कैंसर का प्रसार निर्धारित करना (स्टेजिंग)-

कैंसर की गांठ से कैंसर कोशिकाएं निकलती है और शरीर में तीन प्रकार से फैलती हैं; (1) रक्त के माध्यम से (2) लिंफेटिक के माध्यम से (3) सीधे आसपास के उत्तकों में।

स्टेजिंग से बीमारी के प्रसार का पता चल रहा है। पेट के कैंसर का पता चलने के बाद, हम यह पता लगाने के लिए परीक्षण करते हैं कि ट्यूमर कितना फैल गया है। इसके लिए निम्नलिखित जांचों में से हम कुछ टेस्ट करते हैं।

7 .रक्त परीक्षण- रक्त में विभिन्न प्रकार के तत्वों की जांच की जाती है। कुछ रोगियों में एनीमिया (कम हीमोग्लोबिन) होता है। इसके अलावा, लिवर और किडनी के टेस्ट भी किए जाते हैं।

8 .ट्यूमर मार्कर- अधिकांश कोलोरेक्टल कैंसर सीईए (कार्सिनोइम्ब्रायोनिक एंटीजन) नामक एक पदार्थ का उत्पादन करते हैं। एक रक्त परीक्षण रक्त में इसके स्तर की जाँच करता है। उपचार के बाद कैंसर की निगरानी के लिए यह एक उपयोगी परीक्षण है।

9 .कंप्यूटेड टोमोग्राफी (CT) स्कैन- इस टेस्ट में मरीज को एक सीटी स्कैनर में रखा जाता है। फिर एक्स-रे की किरणें चारों तरफ से अंदरूनी अंगों की छवि लेती है। कंप्यूटर इन छवियों को विकसित कर हमें अंदरूनी स्थिति के बारे में सटीक जानकारी देते हैं। कंट्रास्ट का इंजेक्शन देने से हमें बेहतर छवि मिलती है।

10 .मैग्नेटिक रेजोनेंस इमेजिंग (MRI)- एक्स-रे के बजाय यह टेस्ट रेडियो तरंगों, और शक्तिशाली चुंबकीय क्षेत्रों का उपयोग करता है। रेक्टल कैंसर की स्टेजिंग में इसका ज्यादा उपयोग होता है।

11 .पोजीट्रान एमिशन टोमोग्राफी (PET) स्कैन- कैंसर कोशिकाएं ग्लूकोज ज्यादा मात्रा में लेती हैं। इस टेस्ट में रेडियोएक्टिव ग्लूकोज (18एफ-फ्लोरोडीऑक्सी; FDG) का इंजेक्शन देते हैं। यह रेडियोएक्टिव ग्लूकोज ट्यूमर में चला जाता है जिसे हम स्कैनर से देख सकते हैं।

ये टेस्ट्स हमें कैंसर को एक चरण प्रदान करने में मदद करते हैं। मोटे तौर पर हम कैंसर को तीन श्रेणियों में वर्गीकृत करते हैं:

1 .स्थानीयकृत - कैंसर उस अंग तक सीमित है जिसमें यह शुरू हुआ था।

2 .स्थानीय प्रसार - कैंसर आसपास के लिम्फ नोड्स में फैल गया है या उस अंग की दीवार से बाहर आ गया है जिसमें यह शुरू हुआ था।

3 .दूर तक फैला हुआ - कैंसर दूर के अंगों तक फैल गया है, जो ट्यूमर की उत्पत्ति के अंग से दूर है। इसे मेटास्टेसिस कहा जाता है।

TNM (ट्यूमर, नोड और मेटास्टेसिस) वर्गीकरण-

यह वर्गीकरण अमेरिकन जॉइंट कमेटी ऑन कैंसर (AJCC) द्वारा विकसित किया गया है। इसका उपयोग कैंसर की स्टेज के सटीक वर्गीकरण के लिए किया जाता है। यह निम्नलिखित तीन प्रमुख तत्वों पर आधारित है और स्टेज I से लेकर IV तक होता है।

1 .ट्यूमर की माप (T)- कोलन की परतों में कैंसर कितनी दूर तक बढ़ गया है? क्या कैंसर आस-पास की संरचनाओं या अंगों तक पहुंच गया है?

2 .पास के लिम्फ नोड्स (N) में फैला हुआ- क्या कैंसर पास के लिम्फ नोड्स में फैल गया है? और कितने लिंफ नोड्स में?

3 .दूर के अंगों तक फैला हुआ (मेटास्टेसिस) (M)- क्या कैंसर दूर के लिम्फ नोड्स या दूर के अंगों जैसे लिवर या फेफड़ों में फैल गया है?

टी, एन और एम के आगे संख्या और अक्षर लिखे जाते हैं जो और ज्यादा विवरण देते हैं। संख्या जितनी अधिक होती है कैंसर उतना ही बढ़ा हुआ होता है। टी, एन और एम से मिली जानकारी को मिलाकर हम कैंसर को एक चरण प्रदान करते हैं। कोलोरेक्टल कैंसर चरण I से IV तक होता है।

चरण I से III तक स्थानीयकृत रोग होता है और चरण IV फैला हुआ कैंसर (मेटास्टैटिक रोग) है।

कैंसर से उबरने की संभावना इलाज के समय कैंसर के चरण पर निर्भर करती है। जितना कम चरण उतनी बेहतर संभावना।

उपचार-

कोलोरेक्टल कैंसर- कारण, लक्षण और इलाज
स्थानीयकृत (सीमित) बीमारी का उपचार - सर्जरी

बड़ी आंत के कैंसर का उपचार ट्यूमर के चरण और स्थान पर निर्भर करता है।

शुरुआत के चरणों के कोलोरेक्टल कैंसर का प्राथमिक उपचार सर्जरी है।

इसमें बड़ी आंत के कैंसर वाले हिस्से को आस पास के लिम्फ नोड्स के साथ निकाला जाता है। फिर आंत के कटे हुए हिस्सों को आपस में जोड़ कर आंत की निरंतरता को पुन: स्थापित करते हैं (एनास्टोमोसिस)।

कभी-कभी, जब ऊतक स्वस्थ नहीं होते हैं, तो एनास्टोमोसिस के जुड़ने की संभावना नहीं होती है। ऐसे मामलों में, आंत को पेट के ऊपर खोल दिया जाता है जिसे ओस्टोमी (इलेओस्टोमी या कोलोस्टोमी) कहा जाता है। यह अस्थायी होती है और रोगी की स्थिति में सुधार और कीमोथेरेपी (यदि आवश्यक हो) के बाद बंद कर दी जाती है।

कोलन कैंसर के लिए शल्यक्रिया - कोलेक्टॉमी (COLECTOMY)-

मोटे तौर पर कोलन कैंसर के ऑपरेशन को पार्शियल कोलेक्टॉमी कहा जाता है। इस शल्य प्रक्रिया का बृहदान्त्र के निकाले गए हिस्से के आधार पर विभिन्न नाम हैं ; राइट हेमिकोलेक्टॉमी, लेफ़्ट हेमिकोलेक्टोमी, सिग्मोइडेक्टॉमी, ट्रांस्वर्स कोलेक्टॉमी, राइट या लेफ़्ट एक्सटेंडेड हेमिकोलेक्टोमी और एंटीरियर रिसेक्शन।

रेक्टल कैंसर का उपचार-

बढ़े हुए रेक्टल ट्यूमर में सर्वोत्तम परिणाम प्राप्त करने के लिए कीमोथेरेपी, रेडियोथेरेपी और सर्जरी को संयोजित किया जाता है जिसे मल्टीमॉडल उपचार कहते हैं। वर्तमान में रेक्टल कैंसर के उपचार में कीमोथेरेपी या कीमोराडोथेरेपी पहले दी जाती है जिसे नियोएडजुवेंट (neoadjuvant) उपचार कहा जाता है, इसके बाद सर्जरी की जाती है।

रेक्टल कैंसर की सर्जरी में, मलाशय के कैंसर वाले हिस्से को स्वस्थ ऊतकों तक आसपास के लिम्फ नोड्स के साथ ऑपरेशन द्वारा निकाला जाता है। सर्जिकल प्रक्रिया को विभिन्न नामों के साथ पहचाना जाता है जो मलाशय के निकाले गए भाग के आधार पर होते हैं; एंटीरियर रिसेक्शन, लो एंटीरियर रिसेक्शन, अल्ट्रा-लो एंटीरियर रिसेक्शन या एब्डोमिनोपेरीनियल रिसेक्शन।

आंत के कटे हुए हिस्सों को या तो आपस में जोड़ कर आंत की निरंतरता को पुन:स्थापित करते हैं (एनास्टोमोसिस) या फिर आंत को पेट के ऊपर खोल दिया जाता है जिसे कोलोस्टोमी कहा जाता है।

सर्जरी से पहले एक महत्वपूर्ण जानकारी की जरूरत है कि ट्यूमर गुदा के कितना करीब है। कोलोस्टॉमी करने या ना करने का निर्णय ट्यूमर से गुदा की दूरी और फसाव पर निर्भर करता है।

कभी कभी, पूरे बृहदान्त्र को हटा दिया जाता है। यह उन रोगियों में किया जाता है जिन रोगियों का बचा हुआ कोलन का हिस्सा भी पॉलीप्स, इंफ्लेमेटरी बाउल डिजीज या आंत में रुकावट से ग्रसित होता है।

कोलोरेक्टल कैंसर के ऑपरेशन करने के दो तरीके हैं;

1 .ओपन.

2 .लेप्रोस्कोपिक.

1 .ओपन सर्जरी में, पेट में एक लंबा चीरा लगाया जाता है।

2 .लैप्रोस्कोपिक सर्जरी ऑपरेशन करने की एक विशेष तकनीक है, जिसे की-होल सर्जरी, मिनिमली इनवेसिव सर्जरी या मिनिमल एक्सेस सर्जरी के रूप में भी जाना जाता है। इसमें, बड़े चीरे के बजाय, आपके पेट के ऊपर छोटे छोटे छेदों द्वारा विशेष उपकरणों और एक कैमरे को डाल कर ऑपरेशन किया जाता है। ये उपकरण विशेष बनावट से पतले एवं लम्बे बनाये जाते हैं। कैमरा एक बड़ी स्क्रीन पर आपके पेट के अंदर की उच्च रिज़ॉल्यूशन छवियों को प्रोजेक्ट करता है, जिसे देख कर सर्जन पेट के अंदर ऑपरेशन करते हैं। यह तकनीक पिछले कुछ दशकों में सर्जिकल फील्ड के सबसे महत्वपूर्ण अविष्कारों में से एक है जिसने पेट की सर्जरी के क्षेत्र में क्रांति ला दी है। सर्जरी की यह तकनीक अब पेट के ज़्यादातर ऑपरेशन्स के लिए उपलब्ध एवं मान्य है। इस तकनीक का उपयोग पेट के कैंसर के ऑपरेशन में भी लाभदायक है।

लैप्रोस्कोपिक सर्जरी के लाभ-

पेट की ओपन सर्जरी में बड़ा चीरा लगता है और इसकी वजह से ठीक होने में वक़्त लगता है और अस्पताल में लंबे समय तक रहना पड़ता है। मिनिमली इनवेसिव सर्जरी का अर्थ है "कम दर्द", "न्यूनतम निशान" और "तेज़ रिकवरी"। आईसीयू और अस्पताल में कम रहना पड़ता है। बड़े मॉनिटर पर पेट के अंदर का दृश्य बड़ा होने के कारण सर्जरी के दौरान रक्त की हानि कम होती है। आप जल्दी से चलना और मुँह से खाना शुरू कर सकते हैं। ओपन सर्जरी की तुलना में इन्फेक्शन और हर्निया का खतरा भी कम होता है।

कैंसर कभी-कभी बृहदान्त्र को अवरुद्ध कर देगा। ऐसे मामलों में, रुकावट को दूर करने, रोगी की स्थिति में सुधार लाने और फिर सर्जरी करने के लिए एक स्टेंट लगाया जा सकता है। यदि स्टेंट नहीं लगाया जा सकता है या उपलब्ध नहीं है, तो सीधे सर्जरी की जाती है। ऐसे मामलों में, आमतौर पर, आंत के सिरों को फिर से जोड़ा नहीं जाता है, बल्कि ऑस्टॉमी के रूप में बाहर लाया जाता है। रोगी के स्वास्थ्य में सुधार होने पर, आंत के सिरों को बाद में एक दूसरे ऑपरेशन में फिर से जोड़ दिया जाता है।

बढ़े (फैले) हुए कैंसर का उपचार-

1 .सर्जरी - 

कुछ चरण IV के कैंसर, फेफड़ों, यकृत और पेरिटोनियम में कुछ स्थानों तक सीमित होते हैं। यदि कोलन और कैंसर के इन सभी स्पॉट्स को सुरक्षित रूप से सर्जरी द्वारा हटाया जा सके, तो ऑपरेशन करके कैंसर के उपचार का प्रयास किया जा सकता है।

लिवर का रिसेक्शन-

यह लीवर के कैंसर वाले हिस्से को हटाने के लिए एक शल्य प्रक्रिया है, जिसे हेपेटेक्टमी या metastasectomy भी कहा जाता है।

फेफड़े का रिसेक्शन-

फेफड़े का रिसेक्शन, फेफड़े के उस भाग को हटाने के लिए एक शल्य प्रक्रिया है, जिसमें कैंसर होता है।

Cytoreductive surgery और hyperthermic intraperitoneal chemotherapy (HIPEC)

हाइपरथर्मिक इंट्रापेरिटोनियल कीमोथेरेपी (HIPEC) के साथ Cytoreductive सर्जरी, उन कोलोरेक्टल कैंसर का इलाज करती है जो पेट की पेरिटोनियम तक सीमित है। साइटोइडेक्टिव सर्जरी के दौरान, सभी दृश्यमान ट्यूमर को शल्य चिकित्सा से हटा दिया जाता है, और केवल सूक्ष्म कैंसर कोशिकाएं बच जाती हैं। HIPEC का उद्देश्य शेष सूक्ष्म कैंसर कोशिकाओं को नष्ट करना है। HIPEC में, केंद्रित और गर्म कीमोथेरेपी का घोल सीधे पेट में दिया जाता है जो उन कोशिकाओं को मारता है।

यह दृष्टिकोण रोगियों को लंबे समय तक जीवित रहने में मदद करता है और उन्हें लंबे समय तक कैंसर से मुक्त रहने का मौका प्रदान करता है। हम इन रोगियों में सर्जरी से पहले कीमोथेरेपी, रेडियोथेरेपी या दोनों देते हैं ।

2 .लिवर डिरेक्टेड थेरेपी-

कैंसर जो लिवर में कुछ ही स्थानों पर फैला हो उसे एम्बोलिज़ेशन या एबलेशन द्वारा उपचारित किया जाता है।

3 .एम्बोलिज़ेशन-

एम्बोलिज़ेशन का अर्थ है ट्यूमर के रक्त की आपूर्ति को रोकना। ट्यूमर को रक्त पहुंचाने वाले नस में एक पतले कैथेटर को डाल कर छोटे कणों और अन्य एजेंटों से उसे अवरुद्ध करते हैं । कीमोथेराप्यूटिक एजेंट और रेडियोएक्टिव मोतियों को भी इस दौरान सीधे ट्यूमर में पहुंचाया जा सकता है, जिसे कीमोइम्बोलाइजेशन या रेडियोएम्बोलाइजेशन कहा जाता है।

4 .एबलेशन-

एब्लेशन ट्यूमर कोशिकाओं को मारने के लिए अत्यधिक गर्मी, ठंड या रसायन का उपयोग करता है। यह उन छोटे ट्यूमर के लिए अच्छा है जो 2 सेंटीमीटर से छोटे हों । रेडियोफ्रीक्वेंसी एब्लेशन (RFA) गर्मी पैदा करने और ट्यूमर को मारने के लिए उच्च-आवृत्ति रेडियो तरंगों का उपयोग करता है। अल्ट्रासाउंड या सीटी स्कैन में देखकर ट्यूमर में एक सलाई डाली जाती है। माइक्रोवेव एब्लेशन गर्मी पैदा करने और ट्यूमर को मारने के लिए माइक्रोवेव का उपयोग करता है। क्रायोबैलेशन या क्रायोथैरेपी, ट्यूमर में धातु की सलाई डाल कर उसे उसे ठंड से जमा कर मार देता है। पर्क्यूटेनियस इथेनॉल इंजेक्शन (PEI) द्वारा भी ट्यूमर कोशिकाएं को मारा जा सकता है।

5 .सर्जरी - पैलिएटिव-

ओस्टॉमी (इलियोस्टॉमी या कोलोस्टॉमी) आंत में एक सुराख़ बनाने और पेट की दीवार में एक छेद बनाकर उसे बाहर लाने का एक ऑपरेशन है। इसके ऊपर एक बैग अच्छे से लगा दिया जाता है जिसमें मल का उत्सर्जन होता है। ओस्टॉमी तब की जाती है जब जब ट्यूमर बड़ा होकरआंतों की रुकावट (ब्लॉकेज) कर रहा हो, जबकि रोगी ट्यूमर को हटाने के लिए बड़ी सर्जरी से गुजरने के लिए अयोग्य है या कैंसर शरीर के अन्य भागों में फैल गया है।

6 .कीमोथेरेपी-

कीमोथेरेपी कैंसर कोशिकाओं को नष्ट करने के लिए दवाओं का उपयोग करती है। बेहतर परिणाम के लिए कई दवाओं को एक साथ दिया जाता है। इन्हें एक चक्र के रूप में विशिष्ट दिनों पर एक विशिष्ट क्रम में दिया जाता है।

1 .Adjuvant chemo - स्थानीयकृत बृहदान्त्र कैंसर के रोगियों में, कीमोथेरेपी आमतौर पर सर्जरी के बाद दी जाती है। यह उन कोशिकाओं को नष्ट करती है जो ऑपरेशन के बाद भी शरीर में रह जाती हैं। कीमोथेरेपी देने का निर्णय सर्जिकल चरण पर निर्भर करता है। यह आमतौर पर तब दी जाती है जब कैंसर लिम्फ नोड्स में फैल गया होता है या आंत की बाहरी परतों में चला जाता है। इस तरह, कीमोथेरेपी कैंसर की पुनरावृत्ति और कैंसर से मृत्यु के जोखिम को कम करने में मदद करती है।

2 .Neoadjuvant chemo - यदि ट्यूमर अत्यधिक बढ़ गया है, तो सर्जरी से पहले कीमोथेरेपी दी जाती है। इससे कैंसर छोटा हो जाएगा और बाद में ऑपरेशन से बेहतर परिणाम प्राप्त होगा।

3 .Palliative chemo - मेटास्टैटिक (फैले हुए) कैंसर में कीमोथेरेपी जिंदगी को बढ़ाती है और उसकी गुणवत्ता में सुधार करती है।

7 .टार्गेटेड थेरेपी-

पदार्थ जो सामान्य कोशिकाओं को नुकसान पहुँचाए बिना कैंसर कोशिकाओं की पहचान करते हैं और उन पर लक्ष्य करते हैं।

मोनोक्लोनल एंटीबॉडी-

ये एक ही प्रकार की इम्यून कोशिकाओं से बने होते हैं।

वैस्कुलर एंडोथीलियल ग्रोथ फैक्टर (VEGF) इन्हीबिटर- वीईजीएफ के कारण ट्यूमर बढ़ता है और नए रक्त की नसों का निर्माण होता है। VEGF अवरोधक इस मार्ग को अवरुद्ध करते हैं।

एपिडर्मल ग्रोथ फैक्टर रिसेप्टर (EGFR) इन्हीबिटर- ईजीएफआर कैंसर कोशिकाओं की सतह पर प्रोटीन होते हैं जो उनकी वृद्धि में मदद करते हैं। ईजीएफआर अवरोधक इन प्रोटींस को अवरुद्ध करते हैं और कैंसर कोशिकाओं को बढ़ने से रोकते हैं।

काइनेज इन्हीबिटर:मानव कोशिकाओं में कई अलग-अलग काइनेज होते हैं, और वे महत्वपूर्ण कार्यों को नियंत्रित करने में मदद करते हैं। काइनेज इन्हीबिटर इन एंजाइम को अवरुद्ध करते हैं और कैंसर कोशिकाओं को बढ़ने से रोकते हैं।

8 .IMMUNOTHERAPY-

यह कैंसर से लड़ने के लिए रोगी की प्रतिरक्षा प्रणाली (इम्यूनिटी) का उपयोग करता है। इम्यून चेकपॉइंट इनहिबिटर थेरेपी इम्यूनोथेरेपी का एक प्रकार है।

9 .विकिरण चिकित्सा (RADIATION THERAPY)

विकिरण चिकित्सा कैंसर कोशिकाओं को नष्ट करने के लिए उच्च ऊर्जा एक्स-रे का उपयोग करती है।

रोग का निदान-

1 .सर्वाइवल रेट्स-

कैंसर के इलाज के बाद जीवित रहने की संभावना को 5-साल सर्वाइवल रेट्स (5-year survival rates) में मापा जाता है। यह इलाज के बाद कैंसर से छुटकारा पाने और जीवित रहने की संभावना को दर्शाता है। सर्वाइवल रेट कैंसर के प्रकार और स्टेज पर निर्भर करता है। स्टेज 1 कोलोरेक्टल कैंसर के इलाज के बाद, 5 साल का सर्वाइवल 90% से थोड़ा अधिक है। स्टेज 2 के लिए यह लगभग 60-90% है। चरण III कोलोरेक्टल कैंसर के लिए 5-वर्ष का सर्वाइवल 45 से 90% और चरण 4 के लिए, 5-वर्ष का सर्वाइवल लगभग 15% है।

बड़ी आंत के कैंसर के लिए स्क्रीनिंग-

यदि हम बीमारियों का पता समय पर लगा सकें, तो हम उनका बेहतर इलाज कर सकते हैं।

स्क्रीनिंग द्वारा उनमें बीमारियों का पता लगाया जा सकता है जो बाहरी तौर पर स्वस्थ है और जिन्हें बीमारी के कोई लक्षण नहीं हैं।

एक असामान्य कोशिका को कोलोरेक्टल कैंसर में विकसित होने में 10-15 साल लगते हैं। हम उन्हें एक पॉलीप के चरण में भी निकाल सकते हैं और कैंसर को होने से रोक सकते हैं। अगर वे कैंसर में परिवर्तित होते भी हैं, तो हम उन्हें शुरूआत के चरण में पहचान सकते हैं, और बेहतर निजात सम्भव है।

लेकिन, सभी को स्क्रीनिंग की आवश्यकता नहीं है। स्क्रीनिंग उन लोगों में की जाती है जिनको कोलोरेक्टल कैंसर होने का रिस्क सामान्य से ज्यादा है।

कोलोरेक्टल कैंसर के लिए स्क्रीनिंग परीक्षणों में कोलोनोस्कोपी, सीटी कॉलोनोग्राफी, सिग्मायोडोस्कोपी और मल परीक्षण शामिल हैं।

कोलोरेक्टल कैंसर के लिए किसे स्क्रीन करना चाहिए?

यदि आपकी उम्र 45 वर्ष से अधिक है

यदि आपके परिवार में कोलोरेक्टल कैंसर या पॉलीप्स का इतिहास है

यदि आपको कोलोरेक्टल कैंसर या पॉलीप्स पहले हो चूका है

यदि आप इंफ्लेमेटरी बॉवेल डिजीज (अल्सरेटिव कोलाइटिस या क्रोन्स रोग) से पीड़ित हैं

यदि आपके परिवार में वंशानुगत कोलोरेक्टल कैंसर सिंड्रोम है जैसे कि फेमिलियल एडिनोमेटस पॉलीपोसिस FAP) या लिंच सिंड्रोम (HNPCC)

यदि आपको कैंसर के इलाज के लिए पेट (पेट) या पेल्विक क्षेत्र में रेडियोथेरेपी का इतिहास है

कोलोरेक्टल कैंसर होने का खतरा कैसे कम करें ?

हम कोलोरेक्टल कैंसर के जोखिम कारकों को परिवर्तनीय और गैर-परिवर्तनीय में वर्गीकृत कर सकते हैं। आयु और आनुवंशिक कारक गैर-परिवर्तनीय हैं और हम इसके बारे में कुछ नहीं कर सकते हैं।

लेकिन हम उन जोखिम कारकों से बचकर जोखिम को कम कर सकते हैं जिन्हें हम नियंत्रित कर सकते हैं।

हम निम्नलिखित कदम उठाकर अपने जोखिम को कम कर सकते हैं:

अपना वजन नियंत्रण में रखें

नियमित शारीरिक गतिविधि और व्यायाम करें

एक स्वस्थ आहार खाएं जो विशेष रूप से रेशेदार फल, सब्जियों और साबुत अनाज से समृद्ध हो, जबकि संसाधित भोजन से बचें

धूम्रपान और तंबाकू से बचें

शराब का सेवन न करें

डिस्क्लेमर- इस लेख को पढ़ने के बाद आप समझ चुके होंगे कोलोरेक्टल कैंसर का कारण, लक्षण और इलाज क्या है? लेकिन यह लेख शैक्षणिक उदेश्य से लिखा गया है अधिक जानकारी के लिए योग्य डॉक्टर की सलाह लें.

सतर्क रहें! स्वस्थ रहें! धन्यवाद.

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