श्रवण कुमार के पिता का नाम शांतुन था. जो एक साधु थे तथा उनकी माता का नाम ज्ञानवती था. श्रवण कुमार के माता-पिता दोनों अंधे थे, उन्होंने अपने पुत्र श्रवण का पालन पोषण बड़े ही कष्टों से किया था. इसलिए अपने माता-पिता के प्रति श्रवण के मन में अथाह प्रेम और श्रद्धा थी.
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इस श्राप के कारण पुत्र वियोग में तड़पते हुए प्राण त्यागना पड़ा था, राजा दशरथ को |
श्रवण कुमार बाल्यवस्था में ही अपने माता-पिता के कामों में हाथ बटाने लगे थे और जब वह बड़े हुए तो घर का सारा काम करने लगे थे. जैसे-नदी से पानी भरकर लाना, जंगल से लकड़ियां चुनकर लाना, भोजन तैयार करना घर के समस्त कम किया करते थे. अपने माता-पिता की सेवा में वह पूरी तरह लग गये थे. वह अपने जीवन का सारा समय अपने माता पिता की सेवा में ही लगा देना चाहते थे.
श्रवण कुमार जब विवाह के योग्य हुए तो उनके माता-पिता ने उनका विवाह करवा दिया. लेकिन जिस स्त्री से उनका विवाह हुआ था, वह स्त्री उनके अंधे माता-पिता को बोझ समझती थी, उनके माता-पिता को बहुत कष्ट दिया करती थी. परंतु श्रवण कुमार के सामने वह उनसे अच्छा व्यवहार किया करती थी, उनकी अच्छे से देखभाल करने लगती थी. लेकिन श्रवण कुमार के नही रहने पर उनकी बहुत बुराई करती थी.
जब इस बात की भनक किसी तरह श्रवण कुमार को लगी तो उन्होंने अपनी पत्नी को बहुत ही डाटा, जिसके कारण उनकी पत्नी रुष्ट हो गई और वह अपने मायके चली गई, और फिर वह कभी लौटकर नहीं आयी. पत्नी के जाने के बाद श्रवण ने अपने माता-पिता की सेवा को ही अपना धर्म समझे, उनके दु:ख को ही अपना दु:ख समझे, उनके दर्द को अपना दर्द समझने लगे थे, उन्होंने अपने माता-पिता को कभी दु:ख नहीं पहुंचने दिया.
समय के साथ श्रवण कुमार बड़े होते गये और उसके माता-पिता वृद्ध होते हैं, उनके माता- पिता की अंतिम इच्छा थी कि वह मरने से पूर्व तीर्थ यात्रा पर जाएं. उन्होंने अपनी इच्छा अपने पुत्र श्रवण कुमार को बताई. तब श्रवण कुमार उनकी इच्छा पूर्ति के लिए तैयार हो गए और जाने के लिए तैयारियां करना शुरू कर दिए.
श्रवण कुमार ने अपने माता- पिता को दो टोकरियों में बैठा लिया और अपने कंधे पर कावंर बनाकर उठाकर चल दिए. श्रवण कुमार अपने माता- पिता को काशी, गया, प्रयागराज ऐसे कई तीर्थ स्थलों पर लेकर गए. तीर्थ स्थलों का वर्णन करके अपने माता-पिता को सुनाते थे. इस प्रकार उनके माता-पिता उनके नैनों से तीर्थ स्थलों का दर्शन करते रहे.
फिर किसी दुसरे तीर्थ स्थल के लिए श्रवण कुमार जंगलों के रास्ते से गुजरते हुए जा रहे थे तभी शाम हो जाती है और शाम के समय उनके माता-पिता को बहुत तेज प्यास लगती हैं. उन्होंने श्रवण कुमार से पानी पीने की इच्छा जाहिर की तब श्रवण कुमार ने एक पेड़ के नीचे अपने माता-पिता को बैठे कांवर रखा और कलश लेकर जल की खोज में निकल पड़े. थोड़ी दूर चलने के बाद उन्हें एक नदी दिखाई देती और वह उस नदी के पास पहुंच गए.
संयोग से उसी दिन अयोध्या के राजा दशरथ वनों में शिकार करने निकले थे. दिन भर इधर-उधर घूमने के बाद जंगलों में भटकने के बाद में कोई शिकार नहीं मिला और वह घर की ओर प्रस्थान करने ही लगे थे कि उन्हें नदी के तट पर आहट सुनाई दी. उन्होंने सोचा कि अवश्य कोई वन्यजीव नदी तट पर प्यास बुझा रहा है.
राजा दशरथ नदी की ओर बढ़े और एक पेड़ के नीचे रुक कर ‘शब्दभेदी बाण’ चला दिया. बाण आहट की ओर बढ़ रहा था, जो आहट राजा दशरथ को सुनाई दी थी. लेकिन वह कोई वन्य प्राणी व जीव नहीं बल्कि श्रवण कुमार थे जो अपने माता-पिता के लिए जल लेने गए थे. बाण उनके सीने में जाकर लगा और वह पीड़ा से कहारने लगे. यह कराह सुनकर राजा दशरथ को अपनी गलती का एहसास हुआ और वे नदी के तट पर पहुंचे.
श्रवण कुमार घायल अवस्था में वहां पर तड़प रहें थे. राजा दशरथ जब वहां पर पहुंचे तो उन्हें बड़ा ही दु:ख हुआ. वे अपने आप को कोषने लगे, वे श्रवण कुमार से क्षमा मांगने लगे. तब श्रवण कुमार ने कहा “हे राजन मुझे अपनी मृत्यु का कोई दु:ख नहीं है दुःख है तो मुझे अपने माता-पिता की इच्छा का जो मैं पूरा नहीं कर सका. मैं उन्हें समस्त तीर्थों की यात्रा न करा सका और वह इस समय प्यास से व्याकुल है, मैं उन्हें पानी नही पिला सका. हे राजन! कृपया इस कलश को लेकर जाइए और मेरे माता-पिता की प्यास बुझा दीजिए।” इतना कहकर श्रवण कुमार ने अपने प्राण त्याग दिए.
जाने- अनजाने में स्वयं से हुए अपराध से दु:खी व व्याकुल राजा दशरथ श्रवण के माता-पिता के पास किसी तरह से पहुंचे. श्रवण कुमार के माता-पिता देख तो नहीं सकते थे लेकिन वह चरणों की आहट सुनकर जान जाते थे कि उनका पुत्र श्रवण कुमार है. लेकिन इस बार श्रवण कुमार नहीं है.
पिता द्वारा पूछने पर राजा दशरथ ने पूरा वृतांत सुना दिया. अपने पुत्र की मृत्यु का समाचार सुनकर माता-पिता जोर-जोर से रोने- विलाप करने लगे और उन्होंने राजा दशरथ को श्राप दिया कि तुम भी पुत्र वियोग भोगोगे और तड़प-तड़प के अपने प्राण त्याग दोगे. इसके बाद दोनों ने प्राण त्याग दिए.
इसी श्राप के कारण राजा दशरथ के बड़े पुत्र मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम को 14 वर्ष का वनवास काटना पड़ा और राजा दशरथ अपने पुत्र वियोग में तड़पते हुए अपने प्राण त्यागना पड़ा.
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