मिथिला देश के नरेश जनक के महल में पली बड़ी सीता माता का चरित्र परम गौरव शाली हैं. वाल्मीकि जी ने अपनी रामायण में सीता के चरित्र को वर्तमान के लिए आदर्श बताया हैं. जब राजा जनक खेत में हल जोत रहे थे, तब एक कन्या हल के नीचे मिली, राजा जनक ने उस कन्या का नाम सीता रख दिया. सीता का अर्थ होता हैं – हल की नोंक. इस प्रकार इसका कोई वास्तविक प्रमाण नहीं हैं कि सीता माता के असली माता पिता कौन हैं. सीता माता दो बार वनवास गयी. रावन की लंका में माता सीता को रावन ने खूब धमकाया और डराया. लेकिन माता सीता को अपने पत्नी धर्म पर पूरा विश्वास था कि श्री राम जरूर आयेंगे. आज हम आपको माता सीता के बारे में कुछ छोटी लघु कथाएं और तथ्य बताने वाले हैं. फ़िलहाल के लिए आप ये जान लीजिये की सीता माता का जन्म कैसे हुआ?
सीता को रावण ने लंका ले जाने के बाद भी क्यों नहीं छुआ था ? क्योंकि... |
माता सीता के जन्म को लेकर अनेक पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं. कुछ तथ्यों में कहा जाता हैं कि माता सीता राजा जनक की गोद ली हुई पुत्री थी. कुछ ग्रंथों में लिखा गया हैं कि माता सीता लंका नरेश रावण को पुत्री थी. इन कथाओं के अलावा भी एक अन्य कथा प्रचलित हैं.चलिए हम उसके बारे में आपको बताते हैं.
एक बार मिथिला नगर में भयंकर अकाल पड़ा. इसके निवारण के लिए ऋषि ने राजा जनक को यज्ञ करने की सलाह दी. जब राजा जनक धरती जब हल जोतने लगे तो हल की नोंक पर एक सुन्दर सोने का संदूक मिला जब जनक ने उसको खोलकर देखा तो उसके अन्दर एक छोटी कन्या थी. चूँकि राजा जनक की कोई संतान नहीं थी, इसलिए उस कन्या को हाथ में लेकर पिता प्रेम की अनुभूति हुई, और उनको हमेशा के लिए अपनी बेटी मान लिया और महल लेकर चले गये, फिर आगे चलकर उनका विवाह भगवान श्री राम के साथ कर दिया. राजा जनक की पुत्री होने के कारण इनका नाम जानकी पड़ा.
सीता माता के जन्म से जुडी दूसरी कथा यह हैं कि सीता माता रावण की पुत्री थी. दरअसल इसका ताल्लुक सीता माता के पूर्व जन्म से हैं. पूर्व जन्म में सीता माता का नाम वेदवती था. वेदवती बेहद ही सुन्दर कन्या थी. वेदवती परम विष्णु भक्त थी, और उनको पति के रूप में स्वीकार करना चाहती थी. इसलिए वेदवती ने भगवान् विष्णु के लिए घोर तपस्या की.
एक दिन रावण उस स्थान से गुजर रहा था, जिस स्थान पर वेदवती तपस्या कर रही थी. रावण उसके रूप को देखकर उस पर मोहित हो गया, और उनको महल चलने को कहा. वेदवती ने बताया की वह यहाँ पर भगवान् विष्णु के लिए तपस्या कर रही हैं.
रावण को इस बात पर गुस्सा आ गया, और उसने वेदवती के साथ दुर्व्यवहार करने की कोशिश की. इस कारण वेदवती ने अपनी तपस्या से खुद को भस्म कर दिया. अपने अंतिम क्षण में वेदवती ने रावण को श्राप दिया कि वह अगले जन्म में उसकी बेटी बनकर आएगी, और उसके मृत्यु का कारण भी बनेगी.
जब रावण और मन्दोदरी के संयोग से एक कन्या का जन्म हुआ तो रावण ने उसको एक संदूक में डालकर समुद्र में फेंका दिया.
समुद्र की देवी वरुनी ने उस बक्से को धरती माता को सौंप दिया. फिर धरती माता ने उस बक्से को राजा जनक और सुनैना को सोंप दिया.
तो यह थी सीता माता के पूर्व जन्म की कथा.
रामायण के अनुसार जब भगवान श्री राम, लक्ष्मण और सीता माता तीनो जब वनवास से अयोध्या लौटे और जब उनका राज्याभिषेक किया जा रहा था तब किसी धोबी ने सीता के चरित्र पर अंगुली उठाई. तत्पश्चात सीता माता को श्री राम से अलग होना पड़ा, और वन में जाकर रहना पड़ा था. इसी को सीता माता का दूसरा वनवास कहा जाता हैं.
जब अश्वमेध यज्ञ किया जा रहा तब लव- कुश ने सभी को बंदी बना लिया. और जब लव कुश ने भगवान् श्री राम के दरबार में उन्ही की गाथा सुनाई तब भगवान् श्री राम को अहसास हुआ की ये दोनों उन्ही के पुत्र हैं. सीता माता और श्री राम का पुनः मिलन भी वहीँ पर हुआ.
वाल्मीकि भी वहीँ पर हाजिर थे. उस वक्त भी सीता के चरित्र पर लोग लांछन लगाते थे, तब वाल्मीकि अति दरिद्र अवस्था में रोते हुए भगवान् राम को बोले. मैंने अपने जीवन में कभी झूठ नहीं बोला, सीता वहीँ पवित्र स्त्री हैं जिनको आप मिथिला देश से लेकर आये थे. आप इनकी परीक्षा मत लीजिये.
लेकिन जब दरबार ने सीता से उनके चरित्र का प्रमाण माँगा तो सीता माता ने ये कहा – अगर मेरा चरित्र पवित्र हैं तो इसी क्षण में धरती में समा जाउंगी. ठीक उसी क्षण धरती फट गई, और धरती के गर्भ से मां पृथ्वी आई. और सीता माता को अपनी गोद में लेकर वापस अन्दर समा गई.
रावण ने सीता को क्यों नहीं छुआ ?
दरअसल रावण को श्राप था की अगर उसने सीता माता को छु लिया तो उसके सर के सौ टुकड़े हो जायेंगे. रामायण की घटना त्रेतायुग की हैं. रावण को नल कुबेर ने श्राप दिया था की अगर वह इस युग में किसी भी स्त्री को बिना अनुमति गलत नियत से छुयेगा, तो उसका विनाश हो जायेगा. इसलिए रावण अपने श्राप के कारण किसी भी स्त्री को न छूने के लिए विवश था.
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