शिवजी श्री कृष्ण के दर्शन के लिए पधारे थे। शिवजी इन साकार ब्रह्म के दर्शन के लिए आए हैं। यशोदामाता को पता चला कि कोई साधु द्वार पर भिक्षा लेने के लिए खड़े हैं।
उन्होंने दासी को साधु को फल देने की आज्ञा दी। दासी ने हाथ जोड़कर साधु को भिक्षा लेने व बालकृष्ण को आशीर्वाद देने को कहा।
शिवजी ने दासी से कहा कि, ‘मेरे गुरू ने मुझसे कहा है कि गोकुल में यशोदाजी के घर परमात्मा प्रकट हुए हैं। इससे मैं उनके दर्शन के लिए आया हूँ।
मुझे लाला के दर्शन करने हैं।’ (ब्रज में शिशुओं को लाला कहते हैं, व शैव साधुओं को जोगी कहते हैं)।
दासी ने भीतर जाकर यशोदामाता को सब बात बतायी। यशोदाजी को आश्चर्य हुआ। उन्होंने बाहर झाँककर देखा कि एक साधु खड़े हैं।
उन्होंने बाघाम्बर पहिना है, गले में सर्प हैं, भव्य जटा हैं, हाथ में त्रिशूल है। यशोदामाता ने साधु को बारम्बार प्रणाम करते हुए कहा कि, ‘महाराज आप महान पुरुष लगते हैं।
क्या भिक्षा कम लग रही है? आप माँगिये, मैं आपको वही दूँगी पर मैं लाला को बाहर नहीं लाऊँगी।
अनेक मनौतियाँ मानी हैं तब वृद्धावस्था में यह पुत्र हुआ है।
यह मुझे प्राणों से भी प्रिय है।
आपके गले में सर्प है।
लाला अति कोमल है, वह उसे देखकर डर जाएगा।’
जोगी वेषधारी शिवजी ने कहा, ‘मैया, तुम्हारा पुत्र देवों का देव है, वह काल का भी काल है और संतों का तो सर्वस्व है।
वह मुझे देखकर प्रसन्न होगा।
माँ, मैं लाला के दर्शन के बिना पानी भी नहीं पीऊँगा।
आपके आँगन में ही समाधि लगाकर बैठ जाऊँगा।’
आज भी नन्दगाँव में नन्दभवन के बाहर आशेश्वर महादेव का मंदिर है जहां शिवजी श्रीकृष्ण के दर्शन की आशा में बैठे हैं।
शिवजी महाराज ध्यान करते हुए तन्मय हुए तब बालकृष्णलाल उनके हृदय में पधारे।
और बालकृष्ण ने अपनी लीला करना शुरु कर दिया। बालकृष्ण ने जोर-जोर से रोना शुरु कर दिया। माता यशोदा ने उन्हें दूध, फल, खिलौने आदि देकर चुप कराने की बहुत कोशिश की पर वह चुप ही नहीं हो रहे थे।
एक गोपी ने माता यशोदा से कहा कि आँगन में जो साधु बैठे हैं उन्होंने ही लाला पर कोई मन्त्र फेर दिया है। तब माता यशोदा ने शांडिल्य ऋषि को लाला की नजर उतारने के लिए बुलाया। शांडिल्य ऋषि समझ गए कि भगवान शंकर ही कृष्णजी के बाल स्वरूप के दर्शन के लिए आए हैं। उन्होंने माता यशोदा से कहा, ‘माँ, आँगन में जो साधु बैठे हैं, उनका लाला से जन्म-जन्म का सम्बन्ध है।
माँ उन्हें लाला का दर्शन करवाइये।’ माता यशोदा ने लाला का सुन्दर श्रृंगार किया, बालकृष्ण को पीताम्बर पहिनाया, लाला को नजर न लगे इसलिए गले में बाघ के सुवर्ण जड़ित नाखून को पहिनाया।
साधू (जोगी) से लाला को एकटक देखने से मना कर दिया कि कहीं लाला को उनकी नजर न लग जाये। माता यशोदा ने शिवजी को भीतर बुलाया। नन्दगाँव में नन्दभवन के अन्दर आज भी नंदीश्वर महादेव हैं।
आयो है अवधूत जोगी कन्हैया दिखलावै हो माई
आयो है अवधूत जोगी कन्हैया दिखलावै हो माई ॥ ध
हाथ त्रिशूल दूजे कर डमरू, सिंगीनाद बजावै ।
जटा जूटमें गंग बिराजै,
गुन मुकुंदके गावै हो माई ॥ १ ॥
भुजंगकौ भूषण भस्मकौ लेपन,
और सोहै रुण्डमाला ।
अर्द्धचंद्र ललाट बिराजै,
ओढ़नकों मृगछाला ॥ २ ॥
संग सुंदरी परम मनोहर,
वामभाग एक नारी ।
कहै हम आये काशीपुरीतें,
वृषभ कियें असवारी ॥ ३ ॥
कहै यशोदा सुनौ सखीयौ,
इन भीतर जिन लाऔ ।
जो मांगै सो दीजो इनकों,
बालक मती दिखाऔ ॥ ४ ॥
अंतरयामी सदाशिव जान्यौ,
रुदन कियौ अति गाढौ ।
हाथ फिरावन लाई यशोदा,
अंतरपट दै आड़ौ ॥ ५ ॥
हाथ जोरि शिव स्तुति करत हैं, लालन बदन उघारयौ ।
सूरदास स्वामीके ऊपर,
शंकर सर्वस वार्यौ ॥ ६ ॥
0 Comments