शिक्षाप्रद कहानी- एक वकील साहब ने अपने बेटे का रिश्ता तय किया....

कुछ दिनों बाद, वकील साहब होने वाले समधी के घर गए, तो देखा कि होने वाली समधन खाना बना रही थीं. सभी बच्चे और होने वाली बहू टी वी देख रहे थे. वकील साहब ने चाय पी, समाचार जाना और अपने घर चले आये. एक माह बाद, वकील साहब समधी जी के घर, फिर गए. देखा, भावी समधन जी झाड़ू लगा रहीं थी, बच्चे पढ़ रहे थे और होने वाली बहू सो रही थी। वकील साहब ने खाना खाया और चले आये.

कुछ दिन बाद, वकील साहब किसी काम से फिर होने वाले समधी जी के घर गए !! घर में जाकर देखा, होने वाली समधन बर्तन साफ़ कर रही थी, बच्चे टीवी देख रहे थे और होने वाली बहू खुद के हाथों में नेलपेंट लगा रही थी।

वकील साहब ने घर आकर, गहन सोच-विचार कर लड़की वालों के यहाँ खबर भेजवाई, कि हमें ये रिश्ता मंजूर नहीं है"

...कारण पूछने पर वकील साहब ने कहा कि, "मैं होने वाले समधी के घर तीन बार गया !! तीनों बार, सिर्फ समधन जी ही घर के काम काज में व्यस्त दिखीं. एक भी बार भी मुझे होने वाली बहू घर का काम काज करते हुए नहीं दिखी. जो बेटी अपने सगी माँ को हर समय काम में व्यस्त पा कर भी उन की मदद करने का न सोचे, उम्र दराज माँ से कम उम्र की, जवान होकर भी स्वयं की माँ का हाथ बटाने का जज्बा न रखे,,, वो किसी और की माँ और किसी अपरिचित परिवार के बारे में क्या सोचेगी.

"मुझे अपने बेटे के लिए एक बहू की आवश्यकता है, किसी गुलदस्ते की नहीं, जो किसी फ्लावर पाटॅ में सजाया जाये !!

इसलिये सभी माता-पिता को चाहिये, कि वे इन छोटी- छोटी बातों पर अवश्य ध्यान दें.

बेटी कितनी भी प्यारी क्यों न हो, उससे घर का काम- काज अवश्य कराना चाहिए.

समय-समय पर डांटना भी चाहिए, जिससे ससुराल में ज्यादा काम पड़ने या डांट पड़ने पर उसके द्वारा गलत करने की कोशिश ना की जाये.

हमारे घर बेटी पैदा होती है, हम खुश होते हैं कि हमारे घर लक्ष्मी आई है. लेकिन हमारी जिम्मेदारी, बेटी से "बहू", बनाने की भी है.

अगर हमने, अपनी जिम्मेदारी ठीक तरह से नहीं निभाई, बेटी में बहू के संस्कार नहीं डाले तो इसकी सज़ा, बेटी को तो मिलती है और माँ बाप को मिलती हैं, "जिन्दगी भर गालियाँ".

हर किसी को सुन्दर, सुशील बहू चाहिए. लेकिन भाइयो, जब हम अपनी बेटियों में, एक अच्छी बहु के संस्कार, डालेंगे तभी तो हमें संस्कारी_बहू मिलेगी.

ये कड़वा_सच , शायद कुछ लोग न बर्दाश्त कर पाएं ....लेकिन पढ़ें और समझें, बस इतनी प्रार्थना है ...

वृद्धाआश्रम में माँ बाप को देखकर सब लोग बेटो को ही कोसते हैं, लेकिन ये कैसे भूल जाते हैं कि उन्हें वहां भेजने में किसी की बेटी का भी अहम रोल होता है. वरना बेटे अपने माँ बाप को शादी के पहले वृद्धाश्रम क्यों नही भेजते.

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