माता सीता को वनवास में जाने से किसी ने क्यों नही रोका ? जानिए सच्चाई

क्या आप जानते हैं माता सीता को वन भेजने का निर्णय श्रीराम का नही बल्कि स्वयं माता सीता का था? क्या आप जानते हैं कि केवल एक रात में ही यह निर्णय ले लिया गया था तथा उसी रात में माता सीता वन को चली गयी थी? क्या आप जानते हैं सीता के लिए भगवान श्रीराम अपना राजपद छोड़ने को भी तैयार थे? आज हम आपको बताएँगे कि क्यों माता सीता ने यह निर्णय लिया तथा क्यों उनको जाने से किसी ने नही रोका।

माता सीता को वनवास में जाने से किसी ने क्यों नही रोका ? जानिए सच्चाई 
जब से भगवान श्रीराम को अयोध्या नगरी की प्रजा का माता सीता के प्रति कठोर विचारों का पता चला तब से उनका मन अशांत रहने लगा था। इसे देखकर माता सीता ने अपने गुप्तचरों के द्वारा संपूर्ण बात का पता लगाया। प्रजा में अपने प्रति ऐसी भावना को देखकर माता का मन विचलित तो हो गया था लेकिन लोकमत के अनुसार उन्होंने स्वयं ही वन में जाने का निर्णय लिया। इसके बाद उन्होंने श्रीराम को अपना यह निर्णय बता दिया।

जब श्रीराम ने माता सीता के द्वारा वन में जाने की बात सुनी तो वे विचलित हो उठे तथा स्वयं उनके साथ वन में जाकर रहने की इच्छा प्रकट की। उन्होंने सीता के लिए राज सिंहासन का पद छोड़ने तक का कह दिया लेकिन सीता ने राजा का पद ग्रहण करते हुए उन्हें अपने वचनों की याद दिलाई। उन्होंने समझाया कि राजा बनने के पश्चात उनके निजी जीवन से ज्यादा महत्वपूर्ण प्रजा के हित का सोचना होता है।

इसलिये ऐसे समय में एक राजा को अपना निजी जीवन इसके बीच में नही लाना चाहिए तथा जो प्रजा को सही लगता है वैसा ही होना चाहिए। साथ ही एक राजा को अपना दुःख प्रजा के समक्ष प्रस्तुत नही करना चाहिए। इसके बाद उन्होंने श्रीराम से वचन लिया कि वे उनको जाने के लिए नही रोकेंगे तथा इतना कहकर माता सीता ने वन में जाने की तैयारी कर ली।

भगवान श्रीराम तथा माता सीता के बीच जिस रात को यह सब बात हुई तथा उनके वन में जाने का निर्णय हुआ उस समय तीनों माताएं तीर्थ यात्रा पर गयी थी तथा सभी राजपरिवार के सदस्य, नगरवासी सो रहे थे। केवल श्रीराम के छोटे भाई लक्ष्मण को यह बात पता थी जिन्हें माता सीता को वन में छोड़कर आने का आदश मिला था। उन्हें उस रात यह बात किसी को भी न बताने का आदेश दिया गया था।

माता सीता ने अपना वनवासी का रूप धरा तथा रथ में बैठकर लक्ष्मण के साथ वन के लिए निकल गयी। जब वे वन में पहुंचे तब माता सीता ने एक निश्चित सीमा के बाद रथ रोकने का आदेश दिया तथा वहां से लक्ष्मण को वापस लौट जाने को कहा। इस पर लक्ष्मण विलाप करने लगे तथा वापस जाने से मना कर दिया। उन्होंने माता सीता के साथ रहने तथा जीवनभर एक पुत्र की भांति उनकी सेवा करने का निर्णय लिया। 

इस पर माता सीता ने एक पेड़ की डाली अपने सामने रखी तथा लक्ष्मण को अपनी शपथ दी कि वह इस रेखा को लांघकर उनके पीछे नही आएगा। इसके पश्चात माता सीता वहां से आगे चली गयी तथा लक्ष्मण विवश होकर वापस लौट गए।

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