गर्भ में पल रहे शिशु का रंग गोरा, सांवला या काला किस प्रकार बनता है ?

कल्याण आयुर्वेद- हर माता-पिता की चाहत होती है कि उसका होने वाला शिशु गोरा और स्वस्थ हो. लेकिन ऐसा नहीं हो पाता है बल्कि बच्चे कारण गोरा, सांवला या काला भी हो सकता है. आज हम इस लेख के माध्यम से गर्भ में पल रहे शिशु का रंग गोरा, सांवला या काला किस प्रकार बनता है ? मनुष्य की आकृति (शक्ल- सूरत ) अलग-अलग क्यों होती है ? गर्भ में पल रहे शिशु की आंखें विभिन्न प्रकार की कैसे बनती है ? के बारे में विस्तार से जानेंगे.

गर्भ में पल रहे शिशु का रंग गोरा, सांवला या काला किस प्रकार बनता है ?

गर्भ में पल रहे शिशु के रंग गोरा, सांवला या काला किस प्रकार बनता है के विषय में प्राचीन और अर्वाचीन अनेक विचार है जो इस प्रकार है-

पहला विचार- यह है कि तेज धातु और दूसरी धातुओं से मिलकर अनेक रंगों की संतान उत्पन्न करती है. शरीर में जो धातु अधिक होगी वही तेज धातु से मिलेगी. इस कारण एक ही गर्भ से कभी काली तो कभी गोरी और सांवली संतान उत्पन्न होती है.

दूसरा विचार- यह है कि गर्भवती जैसे रंग का आहार सेवन करती है वैसे ही संतान उत्पन्न होती है क्योंकि जैसा आहार सेवन किया जाता है उसी के अनुसार शरीर में स्थित धातुओं की वृद्धि होती है. इसलिए जैसा अन्न या आहार खाने में जैसी धातु की वृद्धि होगी वही धातु तेज धातु से मिलकर अपने रंग के अनुसार संतान उत्पन्न करेगी.

तीसरा विचार- यह है कि जैसे रूप रंग वाले महिला- पुरुष पर माता-पिता का ध्यान होगा उसी के अनुसार संतान उत्पन्न होगी. रति शास्त्र में लिखा है कि गर्भाधान समय में दूसरे महिला व पुरुष के रूप रंग का ख्याल आ जाने से अपने शरीर में उसी रंग की संतान उत्पन्न करने वाली धातु उत्कट यानी तीव्र या प्रबल होकर तेज धातु से मिलकर वैसे ही रंग की संतान उत्पन्न करती है.

चौथा विचार- यह है कि जैसा रूप रंग गर्भधारण के समय में महिला के सामने आ जाता है उसी के अनुसार संतान उत्पन्न होती है. इस विषय में एक यूरोपियन व्यक्ति के यहां काले रंग की संतान उत्पन्न हुई थी. कारण यह साबित किया कि गर्भाधान के समय में महिला की निगाह काले रंग के हब्सी के चित्र पर पड़ी थी जो पलंग के सामने था.

गर्भ में पल रहे शिशु का रंग गोरा, सांवला या काला किस प्रकार बनता है ?

नोट- शरीर में स्थित धातु भोजन, भाव, विचार और दृष्टि से उसी के अनुसार उत्तेजित हो तेज धातु से मिलकर संतान उत्पन्न करती है.

गर्भधारण के समय यदि तेज तत्व जल तत्व के अधिक अंश से युक्त हो तो गोरी संतान होती है. यदि तेज तत्व पृथ्वी धातु के अधिक अंश से युक्त हो तो काली संतान उत्पन्न होती है.

मनुष्य की आकृति ( शक्ल सूरत ) अलग-अलग क्यों होती है ?

इस संबंध में विभिन्न विचारों की एक झलक इस प्रकार है-

1 .रजोदर्शन के बाद स्नान के समय माता के ह्रदय पर जिस सूरत शक्ल की महिला- पुरुष का ध्यान आ जाता है उस रूप की संतान उत्पन्न होती है ऐसा रति शास्त्र में लिखा है.

2 .गर्भधारण के समय जिस जीव में महिला का चित होगा उसी के अनुसार संतान उत्पन्न होगी. ऐसा महर्षि चरक ने कहा है.

3 .माता- पिता के मिले हुए रज- वीर्य में शरीर के जिस अंग- प्रत्यंग के बनाने वाला अंश निर्बल होता है तो शरीर का वह अंग उत्तम नहीं होता है या जब अंग- प्रत्यंग बनाने का अंश नहीं होता है तो वह बनता नहीं है- शरीर कल्पद्रुम.

4 .जिस अंग को जिस प्रकार का भोजन उपयोगी होता है उसके कम होने या ना होने पर अधूरा अंग रह जाता है. जिस पदार्थ के खाने से शरीर के अंग को हानि पहुंचती है गर्भ में बच्चे का वही अंग विकृत हो जाता है. जिस पदार्थ के खाने से जिस अंग की पुष्टि होती है गर्भ में बालक का वह अंग उत्तम रीति से विकसित होता है. शरीर कल्पद्रुम.

5 .जिस अंग के बनने के तत्व डिम्ब- वीर्य में कम होते हैं वह अंग बेढंगा और निस्तेज होता है. जिस अंग के बनने का अंश डिम्ब और वीर्य में समुचित होता है वह अंग पूरी रीति से प्रफुल्लित रहता है.

उपर्युक्त कारणों से प्रत्येक मनुष्य की आकृति अलग-अलग हुआ करती है.

गर्भ में पल रहे शिशु की आंखें विभिन्न प्रकार की कैसे बनती है ?

गर्भ में पल रहे शिशु का रंग गोरा, सांवला या काला किस प्रकार बनता है ?
गर्भ में पल रहे शिशु जब 4 महीने का हो जाता है बच्चे की आंखों में कुछ ज्योति आने लगती है इसलिए चौथे महीने में जैसा तेज दृष्टि भाग में आता है वैसे ही आंखें होती है इस संबंध में कुछ भाव इस प्रकार हैं.

1 .यदि गर्भ के बालक के आंखों में तेज तत्व न पहुंचे तो बालक जन्म से ही अंधा उत्पन्न होता है.

2 .यदि तेज तत्व रक्त के साथ होकर दृष्टि भाग में जाता है तो बालक लाल नेत्रों वाला होगा.

3 .यदि तेज तत्व पित्त के साथ होकर आंखों में पहुंचे तो बालक पीले नेत्र वाला पैदा होगा.

4 .यदि तेज तत्व कफ के साथ होकर दृष्टि भाग में पहुंचे तो सफेद नेत्रों वाला बालक उत्पन्न होगा.

5 .यदि पेज तत्व वायु के साथ होकर दृष्टि भाग में पहुंचे तो भैनडी आंखों वाला या नेत्र रोग वाला अथवा चंचलाक्ष  बालक होता है.

6 .माता-पिता दोनों की आंखें पीली होने पर बच्चों की आंखें भी पीली होती है.

7 .यूरोप शीत प्रधान देश है और कफ, सर्दी से उत्पन्न होता है इसलिए वहां के निवासियों में कफ की अधिकता रहती है. जब शरीर में कफ की अधिकता होती है. तब तेज तत्व के साथ कफ दृष्टि भाग में पहुंचता है इसलिए यूरोप निवासियों की आंखें कंजी होती है.

स्रोत- एलोपैथिक गाइड.

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