सोरायसिस होने के कारण, लक्षण और आयुर्वेदिक एवं घरेलू उपचार

कल्याण आयुर्वेद- सोरायसिस एक चर्म रोग है जिसमें चमड़े के ऊपर रक्त वर्ण के धब्बे से होते हैं. लेकिन उसमें पीप नहीं होता है. अक्रांत स्थान की चमड़े उधड़ जाती है. त्वचा फटी- फटी दिखाई देती है.

सोरायसिस होने के कारण, लक्षण और आयुर्वेदिक एवं घरेलू उपचार

सोरायसिस रोग क्या है ?

सोरायसिस एक त्वचा रोग है जिसमें त्वचा पर लाल दाने और रैशेज हो जाते हैं. यह आमतौर पर घुटनों पर, सिर की त्वचा या स्कैल्प पर हो सकता है. सोरायसिस क्रॉनिक ऑटोइम्यून डिसऑर्डर है हमारी बाहरी त्वचा की कोशिकाएं त्वचा की सतह की काफी अंदर विकसित होती है और धीरे-धीरे परत दर परत बाहर की ओर आती है इसके बाद अंत में ऊपर की त्वचा नष्ट हो जाती है. इस पूरी प्रक्रिया को होने में लगभग 1 महीने का समय लगता है लेकिन सोरायसिस से पीड़ित व्यक्ति में यह प्रोसेस तेजी से होने लगता है और कोशिकाएं इतनी तेजी से नष्ट नहीं हो पाती है. ऐसे में त्वचा बाहर की ओर जमा होने लगती है यही सोरायसिस का रूप ले लेता है.

सोरायसिस रोग होने के क्या कारण है ?

सोरायसिस होने के कारण, लक्षण और आयुर्वेदिक एवं घरेलू उपचार
सोरायसिस होने के कारणों का अभी तक निश्चित रूप से पता नहीं चल पाया है. प्रायः यह आमवात तथा गठिया इत्यादि रोगों के उपद्रव स्वरूप या कभी-कभी दांत, टॉन्सिल और सर्विस के सेप्टिक कोक्क्स के कारण उत्पन्न होता है. यह स्वयं पैतृक प्रवृत्ति यानी अनुवांशिक भी रखता है तथा मक्खन और घी इत्यादि के सेवन से यह और अधिक बढ़ता है.

सोरायसिस रोग के लक्षण क्या है ?

सोरायसिस एक तरह के उद्दभेद पहले छोटे- छोटे होते हैं. फिर बहुत से एक साथ मिलकर बड़े हो जाते हैं. आसपास का चमड़ा लाल रंग का थोड़ा बहुत प्रदाह, रोग वाली जगह का चमड़ा ऊंचा और सूखा, धब्बों का रंग तांबे जैसा और यह धब्बे घुटने, कोहनी, हाथ, पैर के तलवों और सिर में अधिक होते हैं. यह धीरे-धीरे सारे शरीर में फैल जाते हैं. यह धब्बे शुरू में गोल- गोल या अंडे जैसी आधा से डेढ़ इंच के बराबर होते हैं. बाद में यह धब्बे मोटे, विरूप और गड्ढे वाले हो जाते हैं. यह सदा शुष्क रहते हैं. इन पर पपड़ी आदि नहीं जमती है.

सोरायसिस रोग का पहचान क्या है ?

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शरीर के घुटने, कोहनी आदि स्थानों पर कई लाल रंग के उभरे चकत्ते ( धब्बे ) होना. इनके ऊपर से चांदी के समान श्वेत रंग के छिलके उतरना, इसमें कोई स्राव नहीं होना और बहुत ही कम खुजली होना आदि लक्षणों से इसे आसानी से पहचाना जा सकता है.

सोरायसिस रोग का परिणाम-

यह एक बार अच्छा होकर फिर नए सिरे से हो जाता है और बार-बार हुआ करता है. लेकिन इससे स्वास्थ्य की कोई विशेष नुकसान नहीं होती है.

सोरायसिस रोग का घरेलू एवं आयुर्वेदिक उपचार-

1 .गिलोय-

आयुर्वेद में गिलोय रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत बनाने के लिए जाना जाता है. यह रोग प्रतिरोधक क्षमता में इजाफा करता है. जिससे त्वचा संबंधी समस्याओं में भी निजात मिलती है. गिलोय अर्क, पाउडर, टेबलेट आदि के रूप में भी कई कंपनियां बनाती है आप इसे शहद या गुनगुने पानी के साथ सेवन कर सकते हैं. इससे सोरायसिस में अच्छा लाभ होता है.

2 .हल्दी-

हल्दी एक एंटीबैक्टीरियल जड़ी-बूटी है. हल्दी प्राकृतिक एंटीबायोटिक के रूप में भी काम करता है. हल्दी को त्वचा के लिए एक अच्छा दवा मानी जाती है. घाव से लेकर किसी भी तरह की चोट के इलाज के लिए हल्दी का उपयोग सदियों से होता आया है. हल्दी पाउडर को 2 से 3 सप्ताह तक प्रतिदिन 3 बार एक चम्मच की मात्रा में दूध में मिलाकर पीने से सोरायसिस में राहत मिलती है. 

3 .मंजिष्ठा-

मंजिष्ठा को प्राकृतिक ब्लड प्यूरीफायर के रूप में जाना जाता है. मंजिष्ठा ब्लड फ्लो को ठीक करने के साथ ही त्वचा रोग में भी राहत पहुंचाता है. त्वचा को निखारने के लिए भी मंजिष्ठा का इस्तेमाल किया जाता है. मंजिष्ठा का काढ़ा, पाउडर आदि का सेवन करना सोरायसिस को दूर करने में मददगार होता है. इसे शहद या गुनगुने पानी के साथ सेवन किया जा सकता है.

4 .कैशोर गुग्गुल-

कैशोर गुग्गुल त्वचा पर मौजूद स्कार और घाव को भरने में मददगार होता है और यह गुग्गुल पित्त रोगों के इलाज के लिए इस्तेमाल की जाने वाली औषधि है. इसका सेवन गुनगुने पानी के साथ दो-तीन सप्ताह का दिन में दो बार करने से सोरायसिस में अच्छा लाभ होता है.

5 .आरोग्यवर्धिनी वटी-

आरोग्यवर्धिनी वटी कफ, वात और पित्त सभी तरह के दोषों को नियंत्रित करने के लिए इस्तेमाल की जाती है. यह त्रिफला, गुग्गुल, तांबे का भस्म, शिलाजीत, लोहे का भस्म आदि से मिलकर बनाई जाती है. इससे त्वचा से जुड़ी समस्याओं में राहत मिलता है.

6 .खदिरारिष्ट-

खदिरारिष्ट में माइक्रोबियल गुण पाए जाते हैं. यह त्वचा संबंधी रोगों को दूर करने के लिए आयुर्वेद में उपयोग किया जाता है. 10 से 15 मिलीलीटर सुबह-शाम इसका नियमित सेवन कुछ दिनों तक करने से सोरायसिस में एवं अन्य चर्म रोगों में लाभ होता है.

7 .एलोवेरा-

सोरायसिस होने पर आप एलोवेरा का प्रयोग कर सकते हैं. नियमित रूप से ताजा एलोवेरा जेल को त्वचा पर लगाने से सोरायसिस में काफी लाभ होता है.

8 .नीम-

त्वचा से जुड़ी समस्याओं को दूर करने के लिए नीम का इस्तेमाल सदियों से किया जाता रहा है. त्वचा रोग होने पर नीम का प्रयोग किया जाता है. नीम बहुत ही गुणकारी पेड़ है. इसमें कई सारे त्वचा रोगों को दूर करने के अद्भुत गुण मौजूद होते हैं. सोरायसिस होने पर नीम के पत्ते को पानी में उबालकर नहायें. नीम का तेल नारियल के तेल में मिलाकर सुखी त्वचा पर लगाने से खुजली से राहत मिलती है.

9 .अलसी-

सोरायसिस में अलसी के बीज का सेवन करना लाभदायक होता है. इससे शरीर के सूजन कम होता है. इसमें ओमेगा- 3 फैटी एसिड एवं एंटीऑक्सीडेंट गुण भी पाए जाते हैं जो त्वचा को स्वस्थ रखने में मददगार होते हैं.

10 .कांचनार गुग्गुल-

कांचनार गुग्गुल का सेवन करने से त्वचा की समस्याएं दूर होती है. यदि सोरायसिस की समस्या है तो दो-दो वटी सुबह- शाम महामंजिष्ठादि क्वाथ के साथ सेवन करना चाहिए.

11 .गंधक रसायन वटी-

समस्त प्रकार के चर्म रोगों को दूर करने में गंधक रसायन वटी काफी फायदेमंद औषधि है. सोरायसिस को दूर करने के लिए दो-दो वातो सुबह- शाम पानी के साथ सेवन करें.

12 .ग्लिसरीन-

ग्लिसरीन का प्रयोग सोरायसिस में करना काफी लाभदायक होता है. त्वचा को मॉइस्चराइज करती है. ग्लिसरीन में थोड़ा सा पानी मिलाकर रुई के मदद से प्रभावित जगहों पर लगाएं. इससे त्वचा मुलायम रहेगी एवं फटेगी नहीं.

नोट- यह लेख शैक्षणिक उदेश्य से लिखा गया है. किसी भी प्रयोग से पहले योग्य चिकित्सक की सलाह जरूर लें. धन्यवाद.



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