उन्माद ( पागलपन ) होने के कारण, लक्षण और आयुर्वेदिक उपाय

कल्याण आयुर्वेद- जब इंसान अपनी इंद्रियों पर से अधिकार खो देता है. तब उसका दिमाग और चेतना अव्यवस्थित हो जाता है जिसके कारण चिखना, चिलाना, कपड़े फाड़ना, बेवजह बकवास करना, खुद से बातें करना, हंसना, रोना, किसी को भी मारने लगना, काटने के लिए दौड़ना, बाल नोचना इत्यादि करने लगता है तो उसे उन्माद या पागलपन कहते हैं. आज हम इस लेख में उन्माद होने के कारण, लक्षण, प्रकार और आयुर्वेदिक उपाय के बारे में बात करेंगे.

उन्माद ( पागलपन ) होने के कारण, लक्षण और आयुर्वेदिक उपाय

चलिए जानते हैं विस्तार से-

विरुद्ध भोजन (दूध और मछली आदि ) बिष मिला हुआ भोजन, अपवित्र भोजन, गुरु, देवता का अपमान, काम, क्रोध, भय, हर्ष, शोक, भ्रम के घोर प्रभाव से शरीर की विषम चेष्टाओं, अदृश्य भूत प्राणियों या प्रेत आत्माओं के प्रभाव से मानसिक दोष या प्रसव के कारण या फिरंग रोग इत्यादि के कारण यह बीमारी होती है. वात आदि दोष मस्तिष्क और हृदय में व्याप्त होकर तीनों दोषों विमार्गगामी हो जाती हैं तो मनोगत नाड़ियों की क्रियाओं को अनियमित करते हैं तब बुद्धि विक्षिप्त हो जाती है और अनियमित कार्य करती है उसे उन्माद कहते हैं.

आयुर्वेद के अनुसार उन्माद 7 प्रकार के होते हैं.

 वातज, पित्तज, कफज, त्रिदोषज, मानसिक, बिष उन्माद और भौतिकवाद.

उन्माद के सामान्य लक्षण- 

बुद्धि विभ्रम, कभी सीधी बातें और क्रियाएं करें तो कभी विपरीत बातें और क्रियाएं करने लगे, मन में चंचलता, दृष्टि में आकुलता, अस्थिरता, हृदय में शुन्यता, स्मरण शक्ति का नाश होना, असंबद्ध भावना आदि उन्माद के सामान्य लक्षण है.

1 .वातज उन्माद के लक्षण- बिना कारण हंसना, रोना, गाना, नाचना, बोलना, मुस्कुराना और हाथ-पांव पटकना, चलते- फिरते रहना, डरना, कभी-कभी भोजन में बिष की शंका से भोजन नहीं करना, शरीर रुक्ष, कुछ लाल वर्ण का और दुर्बल हो जाए. भोजन के जीर्ण होने पर रोग बढ़ता है.

वातज उन्माद के आयुर्वेदिक उपाय-

उन्माद ( पागलपन ) होने के कारण, लक्षण और आयुर्वेदिक उपाय
वातज उन्माद से ग्रसित व्यक्ति को पहले उल्टी और विरेचन कराना चाहिए. सारस्वत चूर्ण या ब्राह्मी चूर्ण को 2 ग्राम, अभ्रक भस्म 2 गूंज और कस्तूरी वटी 1-1 गुंज सुबह- शाम शहद के साथ सेवन कराएं और अष्टांग घृत या अश्वगंधा घृत 10 ग्राम सुबह-शाम सेवन कराएं. सरस्वती वटी 3- 3 वटी दिन में 3 बार पानी के साथ सेवन कराएं. और ऊपर से सारस्वतारिष्ट 20ml मिलीलीटर पिलाएं तथा कुष्मांड का रस या ब्राह्मी का रस 20 मिलीलीटर में उतना ही शहद डालकर खिलाएं. सिर पर महालाक्षादि या ब्राह्मी तेल की मालिश करें. नाक में गो घृत या सरसों का उत्तम तेल डालें. डराना, ताड़ना, भय देना, बांधना आदि भी यथा समय आवश्यकतानुसार उचित है. उससे भी लाभ होता है. नींद के लिए जातिफलादि चूर्ण या निद्रोदय वटी या पीपला मूल का चूर्ण सेवन कराएं. स्वर्ण ब्राह्मी वटी, धात्री रसायन, बृहत वात चिंतामणि रस आदि का सेवन कराना उत्तम है.

2 .पित्तज उन्माद के लक्षण-

 पित्तज उन्माद से ग्रसित व्यक्ति को सहनशीलता नहीं रहती है, हाथ-पांव पटकना, नंगे हो जाना, दूसरों को त्रास देना, मारना, जोर से चिलाना, काटना, क्रोध करना, नींद नही आना, देह में दाह होती है शरीर का रंग पीला हो जाता है. शीतल जल, अन्न, छाया अच्छी लगती है.

पित्तज उन्माद के आयुर्वेदिक उपाय-

ब्राह्मी चूर्ण 2 ग्राम, प्रवाल पिष्टी 2 गुंज, जहरमोहरा पिष्टी 2 गुंज इस प्रकार दिन में 4 बार पानी में और शंखपुष्पी शर्बत 10 मिलीलीटर और अर्जुनारिष्ट या सारस्वतारिष्ट 20 मिलीलीटर, सरस्वती वटी 3-3 गोली दिन में 2 बार सेवन कराएं या सर्पगंधा चूर्ण 5 ग्राम, इलायची 10 दाना, काली मिर्च 10 दाना को गुलाब जल 25 मिलीलीटर में 3 घंटा भिगोकर ठंडाई के जैसा पीसकर छानकर उसमें शक्कर 25 ग्राम डालकर रोगी को पिलाएं. कुष्मांड का रस, ब्राम्ही का रस, स्वर्ण ब्राह्मी वटी, स्वर्ण वसंत मालती, खमीरा गाजवान आदि का सेवन कराना उत्तम है.

3 .कफज उन्माद के लक्षण-

 बहुत कम या धीरे बोलना, चुपचाप हो जाना, जड़ बुद्धि हो, नींद अधिक आए, नारी और निर्जन स्थान अति प्रिय हो, उल्टी हो, लार गिरते रहे ये कफज उन्माद के लक्षण हैं.

कफज उन्माद के आयुर्वेदिक उपाय-

कफन उन्माद से ग्रसित व्यक्ति को पहले उल्टी कराना चाहिए. सारस्वत चूर्ण, तालीसादि चूर्ण 1-1 ग्राम और कस्तूरी वटी 1-1 सवेरे और रात को शहद के साथ सेवन कराएं और सारस्वतारिष्ट 10 मिलीलीटर, अर्जुनारिष्ट 10 मिलीलीटर, सरस्वती बटी 3-3 गोली पानी के साथ सेवन कराएं या बचा चूर्ण 1-1 ग्राम और ब्राह्मी चूर्ण 1 ग्राम शहद के साथ सेवन कराएं.

4 .त्रिदोष उन्माद के लक्षण- 

इसमें तीनों रोगों के लक्षण होते हैं और जिसे यह हो जाता है ठीक नहीं होता है यानी यह असाध्य होता है.

5 .मानसिक उन्माद के कारण और लक्षण-

डाकूओं, राजपुरुषों, शत्रुओं तथा सिंह इत्यादि हिंसक जीवो के भय से, अधिक धनवान, प्रिय बंधुओं के विनाश से, प्यार में असफल होने से, किसी प्रकार मन को अत्यंत दुख पहुंचने से, अल्प सत्वगुणी व्यक्ति को प्रबल मानसिक उन्माद होता है तो वह विचित्र प्रकार से बोलता है, गुप्त बातें भी कह देता है या मूढ़ हो जाता है. पत्थर के समान तथा बुद्धि के विपरीत हो जाता है, कभी हंसता है तो कभी रोता है, कभी गाना गाने लगता है तो कभी चिलाने लगता है. उसे नींद नहीं आती है.

मानसिक उन्माद के उपाय-

उन्माद ( पागलपन ) होने के कारण, लक्षण और आयुर्वेदिक उपाय
जिस कारण से उसको यह रोग हुआ हो उस दुख, या भय या चिंता को दूर करने के लिए उपाय करें. सत्संग करें, अच्छी धार्मिक पुस्तकें पढ़ें तथा कीर्तन करें, खुला वातावरण में रखें व उन्माद जैसी चिकित्सा करें और स्मृति सागर रस, उन्माद भंजन वटी आदि का सेवन कराएं.

6 .बिष उन्माद के लक्षण-

आंखें लाल हो, बल और तेज नष्ट हो, मुख काला सा हो, दीन हो जाए.

बिष उन्माद के उपाय-

पहले उसे उल्टी कराना चाहिए और विरेचन देना चाहिए. तत्पश्चात पित्त उन्माद की तरह चिकित्सा करने से लाभ होता है.

7 .भौतिक उन्माद ( भूतोन्माद )-

जिस प्रकार दर्पण में छाया, सूर्यकांत मनी में सूर्य की किरणें, शरीर में उष्णता प्रवेश करती है किंतु देखने में नहीं आती उसी प्रकार भूत अर्थात गंधर्व, देव या पिशाच आदि शरीर में प्रवेश करते हैं या कोई प्रेमी प्रेम में निराश होकर तड़प- तड़पकर मर जाता है, आत्महत्या करता है तो वह प्रेत आत्मा भी अपने प्रेमी में प्रवेश करती है इसे भूतोन्माद कहते हैं

भूतोन्माद के लक्षण-

वाणी, कर्म, शूरता, तेज और शारीरिक क्रियाएं, ज्ञान, विज्ञान, स्मरण शक्ति आदि मनुष्य के जैसी ना होकर विचित्र देवता, राक्षस जैसी हो, उन्माद का समय ना हो, कभी बिल्कुल ठीक हो जाए, कभी कुछ विशेष दिनों पर फिर पागल हो जाए, जिस प्रकार के भूत का प्रवेश हो उस प्रकार की क्रिया करें यथा गंधर्व का प्रवेश हो तो वह गाता- नाचता है और उपवन आदि पसंद करता है. यक्ष का प्रवेश हो तो रात को जागता है और भटकता रहता है. देव का प्रवेश हो तो पवित्र और उत्तम आचरण करेगा, लोगों का हित करेगा, उनको वरदान देगा तो वह सिद्ध होगा. पिशाच का प्रवेश होगा तो उग्र, मांस और रक्त हारी हिंसा करने वाला, शूर और दिन-रात भटकने वाला होगा. प्रेत आत्मा प्रायः उसी व्यक्ति को पकड़ती है जिसके साथ उसका घनिष्ठ संबंध था और जिसने उसको धोखा दिया हो, तड़पाया हो, वह उसे बिगाड़ देता है यह मार देता है.

भूत उन्माद का दौरा प्रायः एकादशी, पूर्णमासी, अमावस्या, ज्वार- भाटा के समय होता है. बहुत से तांत्रिक लोग साधना से इन प्रेत आत्माओं को अपने वश में कर लेते हैं और अपने आदेशानुसार इन प्रेत आत्माओं से अलौकिक और असाधरण काम करवाते हैं.

भौतिक उन्माद के उपाय-

इसमें प्रायः आकाश तत्व द्वारा ही चिकित्सा की जाती है. आकाश तत्व द्वारा चिकित्सा केवल भारत की ही चिकित्सा पद्धति है. साधक पुरुष मंत्रों को सिद्ध करते हैं क्योंकि इन मंत्रों में अद्भुत शक्ति होती है. वह पुरुष मंत्रों से अनेक भयानक रोग जैसे भूत उन्माद, सर्पदंश, वृश्चिक और मानसिक रोग दूर करते हैं. आकाश तत्व का विशेष शब्द संगीत आदि है. अतः संगीत, सत्संग, दान, हवन, मंत्रों का जाप, सिद्ध पुरुषों की दया दृष्टि आदि से प्रायः भौतिक उन्माद रोग दूर होता है.

नोट- यह लेख शैक्षणिक उद्देश्य से लिखा गया है. किसी भी प्रयोग से पहले योग्य चिकित्सक की सलाह जरूर लें. और लेख पसंद आए तो शेयर जरूर करें. धन्यवाद.

लेख स्रोत आयुर्वेद ज्ञान गंगा पुस्तक

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