दिल की धड़कन रोग क्या है ? जाने कारण, लक्षण और आयुर्वेदिक एवं घरेलू उपाय

कल्याण आयुर्वेद- इसे दिल का धड़कना, धड़कन या हृत्कंप, कलेजे का धड़कना कहते हैं. इसे अंग्रेजी भाषा में पल्पिटेशन ( Palpitation ) कहा जाता है.

दिल की धड़कन रोग क्या है ? जाने कारण, लक्षण और आयुर्वेदिक एवं घरेलू उपाय

दिल की धड़कन रोग क्या है ?

दिल की धड़कन रोग में रोगी का दिल स्वभाविक से अत्यधिक धड़कने लगता है. रोगी को जब अपने तीव्र स्पंदन का खुद अनुभव होने लगता है. तब उसको दिल की धड़कन रोग कहते है.

दिल का अधिक धड़कने का कारण क्या है ?

दिल धड़कने की शिकायत लेकर चिकित्सक के पास बहुत से रोगी आते हैं. इन लक्षणों की यद्धपि बहुत से कारण हो सकते हैं. लेकिन सामान्य कारणें निम्न है.

1 .अरक्तता यानी खून की कमी होना.

2 .अजीर्ण यानि पाचन का सही नही होना.

3 .चिंता, विक्षिप्त.

4 .चाय, कॉफी, शराब, सिगरेट इत्यादि का ज्यादा मात्रा में सेवन करना.

5 .अति रक्तदाब यानी हाई ब्लडप्रेशर. 

6 .ह्रदय का फैल जाना.

7 .स्नायविक दुर्बलता, मानसिक अस्थिरता.

8 .ज्यादा मानसिक परिश्रम करना.

9 .ज्यादा मानसिक चिंता करना.

10 .ज्यादा शारीरिक परिश्रम करना और ज्यादा व्यायाम करना.

11 .पेट में गैस का बनना.

12 .भय, दुःख एवं सदमा.

13 .महिलाओं में मासिक धर्म की गड़बड़ी.

14 .अत्यधिक शारीरिक संबंध बनाना. ( वीर्यक्षय होना ).

15 .तेज अम्ल का सेवन करना.

16 . क्षय ( ट्यूबरक्लोसिस ) की प्रारंभिक अवस्था.

17 .ज्यादा धूम्रपान करना और उत्तेजना ( गुस्सा ) में आना.

18 .अत्यधिक मानसिक तनाव होना- मानसिक तनाव तो इस रोग की मुख्य कारण है.

19 .कुछ लोग जो आवश्यक पौष्टिक भोजन की परवाह किए बिना अत्यधिक परिश्रम में जुटे रहते हैं वे इस रोग के ज्यादा शिकार होते हैं.

20 .भय, क्रोध, हिंसा, डरावनी सपने देखना, डरावनी फिल्में देखना आदि की वजह से भी दिल की धड़कन अनावश्यक बढ़ जाती है.

21 .जो लोग पहले खानपान की परवाह नहीं करते और कब्ज, अजीर्ण, गुल्म, वायु गोला, अग्निमान्ध, अम्लरोग आदि के पूर्व से ही रोगी रहते हैं वे आगे चलकर निश्चय ह्रदय से संबंधित रोगों के शिकार हो सकते हैं. जिनमें दिल की धड़कन भी एक रोग हो सकता है.

22 .रक्त प्रधान धातु के लोग भी इस रोग के शिकार होते हैं.

23 .हृदय और रक्त से जुड़ी तमाम पहलू इस रोग को जन्म देते हैं.

24 .अत्यधिक पसीना निकलना, एकाएक ठंडा पसीना आना, अधिक मात्रा मे शरीर से स्राव निकलना, रक्त स्राव हो जाना आदि कारणों से भी यह रोग संभावित है.

25 .गर्भावस्था में कमजोरी के कारण दिल धड़कने की समस्या हो जाती है.

26 .शरीर को अति दुर्बल करने वाले रोग दिल की धड़कन से संबंधित समस्याओं को उत्पन्न करते हैं.

27 .यह रोग अधिकतर मृदु प्रकृति के मनुष्यों में और विशेषकर महिलाओं में होता है जिन्हें हिस्टीरिया रजोविकार अथवा श्वेत प्रदर आदि रोग होते हैं.

28 .लड़ाई, दंगे में या किसी को अपने सामने दुर्घटना से ग्रस्त या मरता देखकर अथवा अपने प्राणों के भय से भी दिल की धड़कन का रोग हो जाता है जो लंबे समय तक बना रहता है.

29 .हृदय धड़कन हृदय की रचनात्मक विकृति में उतनी स्वाभाविक नहीं होती है जितनी की थायराइड ग्रंथि के स्राव के बढ़ जाने या चिंता में होती है.

दिल की धड़कन रोग के लक्षण क्या है ?

दिल की धड़कन रोग क्या है ? जाने कारण, लक्षण और आयुर्वेदिक एवं घरेलू उपाय
दिल की धड़कन के रोगी का दिल सामान्य से अधिक धड़कता है.

हृदय के कार्य के व्यति क्रम से होने वाली धड़कन पुरुषों को अधिक होकर धीरे-धीरे प्रकट होती है. साथ ही हमेशा बनी रहती है लेकिन कभी-कभी अधिक भी हो जाती है.

धड़कन के साथ बाएं कंधे में दर्द होता है.

होठ और कनपटियाँ कुछ-कुछ  नीली पड़ जाती है.

ह्रदय के शब्द में कुछ अंतर मिलता है और परिश्रम करने तथा चलने- फिरने से भी हृदय स्पंदन धड़कन बढ़ जाती है.

ह्रदय धड़कने से रोगी को कष्ट होता है.

जिन्हें यह रोग एक बार हो जाता है उन्हें बार-बार होने का भय बना रहता है.

जब धड़कन अधिक होती है तब हृदय प्रदेश में कुछ- कुछ पीड़ा, शिरो- भ्रम ( चक्कर ) कर्णनाद तथा अतिश्वेद होता है.

रोगी की नाक लाल हो जाती है और हृदय में बेचैनी महसूस होती है.

रोगी हृदय की धड़कन को साफ-साफ सुन सकता है.

नोट- यह रोग कुछ सेकंड से लेकर दो-तीन घंटे तक रह सकता है, स्वस्थ अवस्था में ह्रदय शांत और नियमित रूप से धड़कता है और मनुष्य को उसकी धड़कन सुनाई नहीं देती है. लेकिन इस रोग में हृदय की गति इतनी ज्यादा और तेज हो जाती है कि रोगी को अपने हृदय की धड़कन आवाज खुद अनुभव होती है. वास्तव में इस रोग का हृदय की खराबी से कोई संबंध नहीं है. ऐसे रोगी के थोड़ी दूर चलने, सीढ़ियों पर चढ़ने, थोड़ा भी परिश्रम करने से हृदय अधिक धड़कने लगता है. इसकी गति 120 बार प्रति मिनट तक हो सकती है.

दिल की धड़कन के रोगी को धड़कन के समय दिल में भारी बेचैनी अनुभव होती है. रोगी की नाक लाल होती है. शिरो- भ्रम होता है. रोगी को कानों में आवाजें सी आती हुई प्रतीत होती है, रोगी जब रात को एकांत में सोता है तो उसके कानों में अपनी स्वयं की धड़कन धक- धक सुनाई पड़ती है.

रोग का निदान-

उपर्युक्त लक्षणों के आधार पर इस रोग के निदान में कोई कठिनाई नहीं होती है. ह्रदय का जोर- जोर से और जल्दी-जल्दी धड़कना ही इस रोग के मुख्य पहचान है.

पूर्वानुमान- जिन्हें यह रोग होता है उन्हें इसके होने की बार-बार संभावना बनी रहती है. साथ ही यह विकृति जीवन भर बनी रहती है.

जब यह रोग शांत रहता है तो उसे किसी तरह की दिक्कत महसूस नहीं होती है. लेकिन जब दिल की धड़कन बढ़ती है तो ह्रदय स्थान पर कुछ दर्द महसूस होता है. सिर चकराने लगता है. कान में आवाज में होने लगती है. पसीना अधिक आता है और फिर ह्रदय में बेचैनी महसूस होती है.

दिल की धड़कन की सामान्य चिकित्सा-

इस रोग की वास्तविक चिकित्सा जिस कारण से यह रोग हुआ है उसे दूर करना है.

खान-पान एवं रहन-सहन आदि परिमित एवं नियमित होना चाहिए.

स्नायविक संस्थान ( नर्वस सिस्टम ) को मजबूत करने का उपाय करना चाहिए.

यदि धड़कन किसी ह्रदय रोग के कारण हो तो इस रोग को दूर करने की चिकित्सा करने चाहिए.

चाय,कॉफी, शराब, धुम्रपान आदि के सेवन से यह रोग हो सकता है इसलिए इससे दुरी बना लेना चाहिए.

रोगी को ह्रदय को ताकत देने वाली औषधियां और खाद्य पदार्थों का सेवन कराना चाहिए.

ऐसी चीजों का सेवन कराएं जिससे पेट में गैस न बनने पाए.

कब्ज की तरफ विशेष ध्यान रखें, यदि कब्ज हो तो उसे दूर करने का उपाय करें.

इस रोग में दीपक, पाचक,रोचक,मृदु विरेचक, अफारा नाशक तथा ह्रदय को शक्ति देने वाली औषधियों का सेवन कराना चाहिए.

हमारे देश में अनीमिया से ग्रसित रोगी अधिक मिलते हैं खासकर महिलाएं लौह अल्पताजन्य अनीमिया से अधिक पीड़ित होते हैं इसलिए नैदानिक परीक्षा में अरक्तता मिलती है तो आयरन , विटामिन, विटामिन बी 12 युक्त तथा फोलिक एसिड का सेवन कराना चाहिए. अरक्तता दूर होते ही दिल की धड़कन दूर हो जाती है.  

Post a Comment

0 Comments