कल्याण आयुर्वेद- इस रोग में योनि मार्ग के अंदर तेज खुजली होती है. महिला योनि में उंगली डालकर खुजलाती है. खुजली के कारण महिला को शारीरिक संबंध बनाने की इच्छा प्रबल हो जाती है.
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योनि मार्ग में खुजली होने के कारण, लक्षण और आयुर्वेदिक एवं घरेलू उपाय |
योनि मार्ग में खुजली होने के कारण क्या है ?
मासिक धर्म का कम या ज्यादा होना अथवा अनियमित होना, योनि में सूजन हो जाना, गर्भावस्था में गर्भाशय संबंधी रोगों का उत्पन्न होना, मलावरोध ( कब्ज ), श्वेत प्रदर, बवासीर रोग होना, पेट में कीड़े होना, मधुमेह, वृक्क में सूजन होना, सुजाक, खून की कमी होना, शरीर में विटामिन की कमी होना, थायराइड ग्लैंड की खराबी, योनि की सफाई पर ध्यान ना देना, पूयमेह, रक्त विकार आदि कारणों से योनि में खुजली होती है.
योनि मार्ग में खुजली होने के लक्षण-
महिला अपनी योनि में उंगली डालकर बार-बार खुजलाती है. इससे उसे बहुत कष्ट होता है. महिला शारीरिक संबंध बनाने के लिए विशेष आतुर रहती है. खुजली के कारण योनि में लाल- लाल दाने निकल आते हैं और जलन भी होता है. मासिक धर्म होने के दो-चार दिन पहले से यह समस्या बढ़ जाती है और तीव्र खुजली होती है. खुजलाते- खुजलाते कभी-कभी योनि में घाव तक हो जाता है.योनि मार्ग में खुजली होने के कारण, लक्षण और आयुर्वेदिक एवं घरेलू उपाय
योनि मार्ग की खुजली दूर करने के घरेलू एवं आयुर्वेदिक उपाय-
1 .योनि मार्ग में खुजली होने पर सबसे पहले मुख्य कारण को हटाना है यानी जिस कारण से खुजली उत्पन्न हुई है उसे दूर करने का उपाय किया जाना चाहिए.योनि मार्ग में खुजली होने के कारण, लक्षण और आयुर्वेदिक एवं घरेलू उपाय
2 .इसके साथ-साथ खुजली के निवारण के लिए लाक्षणिक चिकित्सा करें अर्थात प्रक्षालन करें योनि के अंदर स्थानीय एंटीड्यूरेटिक मलहम आदि का प्रयोग एवं मुख द्वारा औषधियों का सेवन कराना होता है. इसमें स्थानीय औषधियों, मलहम, क्रीम एवं पिचू का प्रयोग तथा मुख द्वारा औषधि सेवन विशेष लाभदायक होता है.
योनि प्रक्षालन कब करना चाहिए ?
योनि प्रक्षालन का प्रयोग उस समय विशेष लाभकारी होता है जबकि योनि के अंदर अस्वच्छता एवं योनि स्राव की अधिकता होती है. ऐसी अवस्था में योनि को पोटेशियम परमैग्नेट के घोल अथवा सेवलोन के हल्के घोल से योनि को धोना चाहिए.
3 .इस रोग में ठंडे पानी से योनि प्रक्षालन करना और योनि का स्नेहन, स्वेदन, उत्तरबस्ती आदि सभी प्रयोग विशेष लाभकारी होती है.
4 .नीम के पेड़ पर का गिलोय, हरीतकी, बहेड़ा, आंवला और जमालगोटा की जड़ के क्वाथ से योनि का प्रक्षालन ( धोना ) एक सप्ताह तक करने से अच्छा लाभ होता है. यदि प्रक्षालन करने में दिक्कत हो तो उसी क्वाथ में रुई भिगोकर अथवा स्वच्छ कपड़ा भिगोकर योनि में रखना चाहिए.
5 .चौकिया सुहागा गर्म जल में घोलकर योनि को धोए हैं अथवा योनि में बस्ति लगावें.
6 .नीम के पति को पानी में उबालकर उस पानी से योनि को धोना चाहिए. ऐसा करने से खुजली से राहत मिलती है.
7 .हल्के गर्म पानी में रस कपूर को घोलकर उस पानी से योनि को धोने से खुजली से राहत मिलती है.
8 .उपर्युक्त औषधियों के पानी से योनि को धोने के बाद योनि के मुख में चमेली के तेल से भिगोया हुआ रुई का फाहा रखें अथवा संदल का तेल लगावें.
9 .गंधक का मलहम भी लगाना फायदेमंद होता है इससे योनि की खुजली समूल नष्ट हो जाती है.
10 कासिसादी तेल या घृत भी लगाना फायदेमंद होता है.
उपर्युक्त चिकित्सा क्रम का अवलंबन करने के साथ-साथ महिला को निम्न औषधियों में से किसी एक का भी सेवन कराना चाहिए.
11 .सारिवादि क्वाथ- श्वेत एवं कृष्ण अनंत मूल, निशोथ, लोध, गज- पीपर सभी को बराबर मात्रा में लेकर अधकुटा करके पानी में पकाकर क्वाथ बनाकर सुबह-शाम पिलाने से लाभ होता है.
12 .शुद्ध सुहागा, पांचों नमक, वंशलोचन, शिलाजीत, सोठ, चित्रक, पद्माख, नीलोफर, जीवंती, मुलेठी, मोथा, मुनक्का, गिलोय, श्वेत चंदन, लाल चंदन सभी को बराबर मात्रा में लेकर पीसकर पाउडर बनाकर सुरक्षित रखें. अब इसमें से 3 से 6 ग्राम चूर्ण पानी के साथ प्रतिदिन सेवन करें. इसके नियमित सेवन करने से योनि में हो रही खुजली कुछ ही दिनों में खत्म हो जाती है.
13 .कच्ची फिटकरी 6 ग्राम को 1 लीटर पानी में घोलकर दिन में तीन बार योनि को धोने से अच्छा लाभ होता है.
14 .तेज शराब में रुई भिगोकर योनि में रखने से उसके कीटाणु नष्ट होकर पुरानी से पुरानी खुजली भी दूर हो जाती है.
15 .त्रिफला या गुलर के क्वाथ से योनि मार्ग को धोने से खुजली एवं खुजली के कारण हुए घाव ठीक हो जाते हैं.
16 .कपूर, अफीम, मुर्दाशंख, चंदन का तेल और सुहागे का फूल सभी को एक-एक ग्राम लेकर 5 ग्राम नीलगिरी के तेल और 25 ग्राम वेसलीन को अच्छी तरह से मिलाकर मलहम बना लें. इस मलहम को योनि में लगाने से अच्छा लाभ होता है. कुछ दिन प्रयोग करने से खुजली समूल नष्ट हो जाती है.
17 .यदि यह रोग मासिक धर्म की गड़बड़ी के कारण हुई हो तो महिला को अशोकारिष्ट 20 मिलीलीटर सुबह-शाम उतना ही पानी मिलाकर सेवन कराना चाहिए. इससे मासिक धर्म सुचारू रूप से हो जाता है और इस समस्या से राहत मिलती है.
विशेष ज्ञातव्य- रोग की सफलतम चिकित्सा के लिए आवश्यक है कि सबसे पहले पेट को साफ करने के लिए कोई हल्का सा विरेचन देना चाहिए. इसके बाद रक्तशोधक औषधि का सेवन कराना चाहिए. साथ ही साथ लाक्षणिक चिकित्सा भी जारी रखें. रोग ठीक हो जाने के बाद कुछ दिनों तक रक्तशोधक दवाओं का सेवन करते रहना चाहिए.
नोट- यह लेख शैक्षणिक उद्देश्य से लिखा गया है. किसी भी प्रयोग से पहले योग्य महिला चिकित्सक की सलाह जरूर लें. धन्यवाद.
लेख स्त्रोत- स्त्री रोग चिकित्सा
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