प्रेरणादायक कहानी- संगत का असर

 

प्रेरणादायक कहानी- संगत का असर

अल्बर्ट आइंस्टीन जितने महान वैज्ञानिक थे 

उनका पहनावा उतना ही साधारण था. लेकिन 

काम असाधारण. सिर पर बड़े-बड़े बाल, बदन 

पर घिसी हुई चमड़े की जैकेट, बिना सस्पेंडर 

की पतलून, पांव में बिना मोज़े के जूते, खोलते 

समय ना उन्हें ढीला करना पड़े और ना पहनते 

समय उन्हें बांधना पड़े, एक ऐसे शख्स जिन्हें 

देखकर कभी नहीं लगता था कि यही वह 

महान वैज्ञानिक हैं. जिसने विश्व को क्रांतिकारी 

सिद्धांत दिए हैं. जिसे विश्व पूरा सम्मान देता है. 

नोबेल पुरस्कार भी उनके कामों के सम्मुख 

बौना पड़ता है. यह महान व्यक्ति और कोई 

नहीं विश्व प्रसिद्ध वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन थे. 

एक समय की बात है आइंस्टीन के ड्राइवर ने 

एक बार आइंस्टीन से कहा-सर, मैंने हर बैठक 

में आपके द्वारा दिए गए हर भाषण को याद 

किया है. आइंस्टीन हैरान रह गए. उन्होंने कहा- 

"ठीक है, अगले आयोजक मुझे नहीं जानते. 

आप मेरे स्थान पर वहां बोलिए और मैं ड्राइवर 

बनूंगा. ऐसा ही हुआ, बैठक में अगले दिन 

ड्राइवर मंच पर चढ़ गया और भाषण देने लगा...

उपस्थित विद्वानों ने जोर-शोर से तालियां बजाईं. 

उस समय एक प्रोफेसर ने ड्राइवर से पूछा - 

"सर, क्या आप उस सापेक्षता की परिभाषा को 

फिर से समझा सकते हैं?"असली आइंस्टीन ने 

देखा बड़ा खतरा ! इस बार ड्राइवर पकड़ा 

जाएगा. लेकिन ड्राइवर का जवाब सुनकर वे 

हैरान रह गए... ड्राइवर ने जवाब दिया- "क्या 

यह आसान बात आपके दिमाग में नहीं आई ? 

मेरे ड्राइवर से पूछिए---वह आपको समझाएगा"

यह छोटी सी कहानी से हमें यह सिख मिलती है 

कि यदि आप बुद्धिमान लोगों के साथ चलते हैं, 

तो आप भी बुद्धिमान बनेंगे और मूर्खों के साथ 

ही सदा उठेंगे-बैठेंगे तो आपका मानसिक तथा 

बुद्धिमता का स्तर और सोच भी उन्हीं की भांति 

हो जाएगी.

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