कल्याण आयुर्वेद- हिस्टीरिया रोग को योषापस्मार, अपतंत्रक, गुल्मवायु इत्यादि नामों से जाना जाता है.
जब कोई व्यक्ति अपनी इच्छा अथवा आशा के विघात हो जाने के कारण भय की स्थिति में उनको सहन कर लेने पर और समझदारी से काम लेने के स्थान पर अपनी इच्छा अथवा भय के वशीभूत होकर एक अजीब आवेशपूर्ण अथवा असाधारण रूप में नाटकीय व्यवहार करे तब उसके इस असाधारण व्यवहार को हिस्टीरिया कहते हैं. इस रोग में हाथ- पैर और शरीर अकड़ जाते हैं. गला घुटने लगता है. शरीर कांपता है. रोग के दौरे के समय रोगी जोर से हंसने या रोने लगता है. फिर मूर्च्छा आ जाती है. मूत्र त्याग के पश्चात दौरा दूर हो जाता है. यह रोग विशेषकर कोमल प्रकृति की महिलाओं में अधिक होता है.
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हिस्टीरिया रोग क्या है ? जाने के कारण, लक्षण और आयुर्वेदिक एवं घरेलू उपाय |
उम्र- यह रोग युवा लड़कियों और व्यस्क महिलाओं में अधिक होता है और 40 वर्ष की आयु तक रहता है. लेकिन कई बार बचपन और वृद्धावस्था में भी ऐसा होते देखा जाता है.
हिस्टीरिया होने के कारण क्या है ?
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हिस्टीरिया रोग क्या है ? जाने के कारण, लक्षण और आयुर्वेदिक एवं घरेलू उपाय |
विवाह संबंधी कोई कष्ट, किसी प्रकार की आर्थिक हानि या अन्य कोई समस्या इस रोग का कारण बन सकता है.
माता-पिता का उपदंश रोग, उनका कंठमाला से ग्रसित होना और शराबी होना भी उनकी संतान में हिस्टीरिया रोग का कारण हो सकता है.
नाजुक स्वभाव एवं विलासिता पूर्ण जीवन व्यतीत करने वाली युवा महिलाओं में भी हिस्टीरिया रोग होते देखा जाता है.
घर के कामकाज से निश्चिंतता और विलासिता की अवस्था में तीव्रता में अधिक काम इच्छा होने पर भी सहवास प्राप्त ना हो. मन में हर समय शारीरिक संबंध बनाने के विचार आता रहता हो, प्रेम व मोहब्बत की कहानियां और उपन्यास पढ़ना, अश्लील फिल्में और चित्र देखना, युवा लड़कियों की अधिक समय तक शादी ना करना और शादी के बाद भी अपूर्ण मैथुन इस रोग का कारण है.
गर्भाशय संबंधी रोग जैसे- मासिक धर्म का रुकना, मासिक धर्म कम होना अथवा बिल्कुल नहीं होना. ल्यूकोरिया, गर्भाशय में सूजन होना, प्रसव के उपरांत रक्त स्राव का रुक जाना, गर्भाशय का टेढ़ा हो जाना आदि विकारों से भी हिस्टीरिया रोग हो जाता है.
स्वास्थ्य कमजोर होना, आर्थिक कष्ट, बहुत ज्यादा परिश्रम, पौष्टिक आहार की कमी तथा दुर्बलता लाने वाले रोगों के कारण भी हिस्टीरिया रोग हो जाता है.
उत्तेजनात्मक मानसिक जोश, सदमा, मस्तिष्क पर चोट लगना, निराशा, चिंता, संबंधी की मृत्यु तथा मोटर- गाड़ी आदि की दुर्घटना हो जाने के कारण भी हिस्टीरिया रोग हो सकता है.
आमाशय, यकृत दोष, मलावरोध, अजीर्ण, पेट फूलना, गैस का रोग, शरीर में दूषित तरल एकत्रित होना आदि भी हिस्टीरिया रोग के कारण हो सकते हैं.
पुरुषों में कामेच्छा की अधिकता किंतु शारीरिक संबंध बनाने का समय ना मिलना, हस्तमैथुन, गुदामैथुन, अधिक मानसिक परिश्रम, अनिद्रा यानी भरपूर नींद नहीं लेना आदि इस रोग के कारण होते हैं.
शारीरिक और नेगेटिव प्रकार के मानसिक दोष इसके मुख्य कारण हैं.
दूसरे लोगों की उपस्थिति में ही मानसिक भावनाओं में उत्तेजना उत्पन्न होने पर व्यक्ति बार-बार वहम में पड़कर स्वयं ही इस रोग को पैदा करने का कारण बन जाता है. सहानुभूति प्रकट करना हिस्टीरिया का दौरा पड़ने में सहायक होता है.
रजोनिवृत्ति काल में कई महिलाओं को हिस्टीरिया का दौरा पड़ते देखा गया है.
हिस्टीरिया के दौरों का कारण मानसिक आघात भी है. जैसे कि किसी महिला को बहुत भला बुरा कहना, गाली- गलौज अथवा उसके किसी संबंधी या किसी प्रियजन की मृत्यु के कारण महिला इन विकारों को अपने मन में बिठा लेती है और बार-बार सोचने से उसके मन को आघात पहुंचता है जिसका परिणाम हिस्टीरिया के दौरे के रूप में प्रकट होता है.
जब किसी महिला की संभोग की इच्छा पूर्ण नहीं होती है तब उसका दुष्प्रभाव मस्तिष्क के वासना केंद्र पर पड़ता है जिससे महिला को हिस्टीरिया के दौरे पड़ने लगते हैं.
दुर्बल मस्तिष्क वाले लोगों को एक ही विचार बार-बार सोचने और समझने के कारण हिस्टीरिया रोग उत्पन्न हो जाता है.
कुछ डॉक्टरों का विचार है कि महिला के सेरीब्रल कॉर्टेक्स में दोष पैदा हो जाने से हिस्टीरिया रोग उत्पन्न हो जाता है.
नोट- हिस्टीरिया के कारणों में प्रधान रूप से पारिवारिक इतिहास, मेंटल स्ट्रेस तथा Contitutinalfactors होते है. निर्बल चित वाले व्यक्तियों के मन का बाह्य प्रभाव से सीधे प्रभावित हो जाना भी इस रोग का एक मुख्य कारण प्रतीत होता है. यदि कोई प्रामाणिक व्यक्ति ऐसे व्यक्ति को गलती से यह कह दे कि उसे हिस्टीरिया रोग है अथवा भविष्य में उसे हो सकता है तो उस व्यक्ति पर इस कथन का अधिक प्रभाव पड़ता है कि उसको अपने अंदर हिस्टीरिया रोग का अनुभव होने लगता है.
सारांश- हिस्टीरिया मस्तिष्क में असाधारण उत्तेजना की दशा है. डॉक्टरों का मत है कि हिस्टीरिया के रोगी में कुछ वहम और विचार बैठ जाते हैं. जिनको बार- बार सोच कर वह मन में उनका पालन-पोषण करती रहती है. जिससे उसको दौरा पड़ने लगता है. हिस्टीरिया वास्तव में एक विशेष प्रकार का मानसिक व शारीरिक रोग है जो शारीरिक लक्षणों के रूप में प्रकट होता है.
हिस्टीरिया रोग के लक्षण क्या है ?
1 .मूर्च्छा एवं आक्षेप- मूर्च्छा का होना इस रोग का प्रधान लक्षण है. इसके अलावा कंपकंपी, आक्षेप, दांत बैठ जाना आदि लक्षण होते हैं.
2 .मानसिक दशा में असामान्य परिवर्तन- हिस्टीरिया के अधिकांश रोगियों की मानसिक दशा में असामान्य परिवर्तन हो जाता है. इस परिवर्तन की अधिकता या कमी के अनुसार महिलाओं में विभिन्न लक्षण होती है. महिला की इच्छा शक्ति में दोष आ जाता है, महिला स्वयं को नियंत्रित नहीं कर पाती है वह अपने अनुचित विचारों को उचित समझती है और उसको मनवाना चाहती है.
पुरुषों में इस रोग से मानसिक विचारों में हीनता तथा दुर्बलता आ जाती है. साधारण सी बात पर क्रोधित होना और काबू से बाहर हो जाना आदि लक्षण होते हैं.
3 .बात करने का विशेष ढंग- हिस्टीरिया की रोगिनी अपने कष्टों को बहुत अधिक बढ़ा- चढ़ाकर बतलाती है जो वास्तव में उसको नहीं होते हैं. वह अपने दुखों में सहानुभूति प्राप्त करने की इच्छुक होती है.
4 .स्मृति नाश- थोड़े समय के लिए स्मृति ( याददास्त ) खत्म हो जाता है.
5 .संज्ञा संबंधी लक्षण- रोगी को अर्धदृष्टि नाश या पूर्ण दृष्टि नाश का लक्षण हो सकता है. बधीरता, सिर दर्द, चुभने वाला भारी दर्द, एक या दोनों हाथों में संज्ञानाश का लक्षण हो सकता है. किसी- किसी में गुन्गेपन का लक्षण होता है और उसके खांसने में आवाज होती है.
6 .चेष्टा संबंधी लक्षण- गले की मांसपेशियों में स्तंभ होने से गले में अवरोध का लक्षण मिलता है. यह अवरोध रोगी को खाते समय प्रतीत होता है. अंत में स्तम्भ होने पर आध्मान या अंत्र शूल का लक्षण मिलता है अथवा श्वासावरोध का लक्षण मिलता है. पेशाब का अवरोध होने पर मुत्राघात के लक्षण प्रकट होते हैं. डायाफ्राम में स्तंभ होने पर हिचकी उत्पन्न हो जाती है. इसी प्रकार हृदयाघात, मांस पेशियों में विक्षोभ होने पर धड़कन के लक्षण होते हैं.
मूर्च्छा के साथ-साथ शरीर में रह- रहकर आक्षेप भी होने लगते हैं. कभी-कभी रोगी अपनी ऐच्छिक मांसपेशियों में संकोच उत्पन्न करके पक्षाघात के समान लक्षण प्रकट करता है. किसी- किसी रोगी में अनेक प्रकार के दौरे या अपूर्ण के लक्षण प्रकट होते हैं. इस रोग में कभी रोगी हंसता है तो कभी उसमें रोने के दौरे पड़ने लगते हैं.
हिस्टीरिया का दौरा-
हिस्टीरिया का दौरा पड़ने से पहले रोगिनी को आभास हो जाता है कि अब मुझे रोग का हमला होने वाला है. इसलिए अनेक महिलाएं आक्रमण होने से पहले सावधान होते भी देखी जाती है. वह कसकर कपड़े पहन लेती है ताकि वह फट ना जाए.
रोगिणी को बेहोशी आने से पहले कभी- कभी ऐसा महसूस होता है कि पेट से गले तक गोले के समान कुछ चढ़ रहा है. दौरा पढ़ते समय उसकी मुट्ठियाँ बंध जाती है और उनका शरीर धनुष के समान टेढ़ा हो जाता है. रोगिणी अपने हाथ- पैरों को इधर-उधर पटकती है. उसकी सांस से आवाज आती है. वह कभी हंसती है तो कभी रोने लगती है. कभी चुपचाप पड़ी रहती है तो कभी नाराज होने लगती है. दौरा समाप्त होने पर पेशाब ज्यादा आती है.
दौरे का समय कुछ मिनटों से लेकर कुछ घंटों तक या कुछ दिनों तक हो सकता है. रोग की तीव्रता में दोनों के बीच का समय कम हो जाता है. यहां तक कि कई बार दौरे पड़ने लग जाते हैं. परंतु वह साधारण होने पर दो दौरों के बीच का समय कई महीने का हो सकता है.
रोगिणी का स्वभाव प्रायः चिड़चिड़ा हो जाता है. वह कभी बहुत प्रसन्न हो जाती है तो कभी रोने लगती है. कभी क्रोधित और कभी भयभीत हो जाती है. वह जरा- जरा सी बातों पर प्रसन्न हो जाती है. यदि कोई बात उसके विपरीत होती है और उसको बुरी लगती है तो तुरंत दौरा शुरू हो जाता है. रोगिणी चाहती है कि अन्य लोग उससे सहानुभूति प्रकट करें और उसका आदर करें. उसकी इच्छाएं और उसके विचार जल्दी-जल्दी बदलते रहते हैं. वह स्वयं को ऐसे रोगों से ग्रसित बतलाती है जो उसे बिल्कुल ही नहीं होते हैं. वह अपने रोग और कष्टों को बहुत बढ़ा- चढ़ाकर बतलाती है.
दो दौरों के अंतर के समय मिलने वाले लक्षण-
हृदय की धड़कन, सिर में भारीपन, सिर दर्द.
कुछ महिलाओं में प्रकाश का सहन ना होना.
कुछ महिलाओं के स्तनों में सख्त तनाव युक्त दर्द, किसी के पेट में तो किसी की पीठ में दर्द रहता है. कभी-कभी गर्दन या टांग में भी दर्द रहता है.
शरीर के किसी एक भाग की त्वचा में चुभन, कभी कभी खराब, कभी सनसनाहट अथवा संज्ञा हीनता उत्पन्न हो जाती है. कभी-कभी संज्ञा हीनता इतनी अधिक हो जाती है कि उस स्थान को दबाने अथवा उत्तेजना पहुंचाने से तुरंत दौरा शुरू हो जाता है.
किसी- किसी की पिंडलियों में दुर्बलता तथा बेचैनी सी प्रतीत होती है.
कई महिलाओं को कभी गर्मी तो कभी ठंडी लगने लगती है.
दौरे के बीच अनेक महिलाओं को मल- मूत्र निकल जाने का आभास भी नहीं होता है.
प्रायः कब्ज, पाचन संबंधी विकार, आध्मान आदि उपद्रव के लक्षण मिलते हैं.
कुछ महिलाओं को मतली, हिचकी अथवा खासी आने लगती है.
किसी- किसी में मलावरोध की स्थिति उत्पन्न होती है तो किसी- किसी को अधिक मूत्र आने लगता है.
किसी- किसी में पागलपन जैसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है.
हिस्टोरिकल पक्षाघात का लक्षण अधिकांश देखने को मिलता है. इसका शुरुआत एकाएक किसी शारीरिक चोट या भावना के अधीन होता है. उसके मन में यह वहम समा जाता है कि उसे पक्षाघात अंगों के शिथिलता का रोग हो गया है. इस भ्रम बस वह पैर घसीटकर चलती है.
प्रायः रोगी की आवाज बैठ जाती है और बोलने में कष्ट होता है.
कोई चीज निगलने में भी प्रायः कष्ट होता है.
किसी- किसी को बहरापन की समस्या हो जाती है.
किसी- किसी में गुंगेपन का लक्षण उत्पन्न हो जाता है, वह बहुत प्रयत्न करने पर भी बोल नहीं पाती है.
हिस्टीरिया के अनेक रोगियों में ऐसा भी देखा गया है जिनको दौरा पड़ने पर कुछ दिखलाई नहीं देता, लेकिन दौरे खत्म होने पर उनकी दृष्टि सामान्य हो जाती है.
कई महिलाएं ऐसी भी देखी गई है जिनको पेट बढ़ जाता है और उन्हें गर्भवती होने का संदेह हो जाता है.
दौरे के विशिष्ट लक्षण-
दौरा शुरू में बहुत साधारण होता है. लेकिन क्रमशः बढ़कर हिंसा और जोश तक का रूप धारण कर लेता है, स्त्री का धड़ और शेष अंग जकड़ कर सख्त हो जाता है.
कई बार हिस्टीरिया के दौरे के समय महिला का सारा शरीर इतना तन जाता है जिससे लेटी हुई अवस्था में उसके सिर का पिछला भाग और पांव की एड़ियां ही भूमि पर लगी होती है शेष शरीर भूमि से ऊंचा उठ जाता है.
कभी-कभी दौरा कम हो जाता है और कभी दुबारा महिला हाथ- पैर जोर से मारने लग जाती है और फिर एक तरफ से दूसरी तरफ सिर को जोर से मारती है स्त्री जोश में आकर अपने या दूसरों के कपड़े धार डालती है. सिर के बालों को नोचती है. अपने होठों को दांतो से काटती है अथवा दूसरों के अंगों को काटने का प्रयत्न करती है. रोगिणी के परिवार अथवा संबंधी लोग उसे जितना दबाने का प्रयत्न करते हैं उसे उतना ही अधिक जोश आता है.
यदि महिला को दौरे की स्थिति में अकेला छोड़ दिया जाए तो दौरा खुद ही शांत हो जाता है.
किसी समय तो महिला अनेक प्रकार के मिथ्या विचारों से ग्रसित हो जाती है कभी वह बड़बड़ करने लगती है और बकवास की शिकार हो जाती है. दौरा खत्म होने के बाद उसे यह होश नहीं रहता है कि दौरे के समय उस पर क्या बीती महिला का चेहरा तमतमा जाता है.
हिस्टीरिया रोग की पहचान कैसे करें ?
दौरे के समय महिला का चेहरा तमतमा जाता है, गले में कोई वस्तु चढ़ती हुई महसूस होती है. पेट में गोला सा उठने लगता है. इन लक्षणों से यह रोग सरलता पूर्वक पहचाना जा सकता है.हिस्टीरिया रोग क्या है ? जाने के कारण, लक्षण और आयुर्वेदिक एवं घरेलू उपाय
सापेक्ष निदान- हिस्टीरिया के दौरों के लक्षण मिर्गी और बेहोशी की बहुत अधिक समानता रखते हैं. इसलिए इन रोगों के निदान में कठिनाई होती है. इसलिए हिस्टीरिया और मिर्गी के लक्षणों में अंतर भी जानना जरूरी है.
हिस्टीरिया और मिर्गी के लक्षणों में क्या अंतर है ?
हिस्टीरिया के दौरे के समय बेहोशी पूर्ण रूप से नहीं होती है वह दूसरों की बातें बराबर सुनती रहती है लेकिन वह जवाब नहीं देती है, जबकि मिर्गी के रोगी दौरे के समय बेहोशी पूर्ण रूप से रहती है उसे कुछ सुनाई नहीं देता है.
हिस्टीरिया का दौरा धीरे-धीरे पड़ता है जो चिकित्सा से ठीक हो जाता है, जबकि मिर्गी का दौरा अचानक पड़ता है और स्वतः दूर हो जाता है.
हिस्टीरिया के रोगी बेहोश होकर धीरे से जमीन पर गिरती है, जबकि मिर्गी की रोगी अचानक भूमि पर गिरती है और अपने को संभालने में असमर्थ होती है.
हिस्टीरिया के दौरे पड़ने पर मुंह से झाग नहीं आता है, जबकि मिर्गी के दौरा पड़ने पर मुंह से झाग आता है.
हिस्टीरिया रोग में मुंह बंद होता है जीभ अपने स्थान पर ही होती है और दांत जम जाते हैं, जबकि मिर्गी के दौरे आने पर मुंह खुला होता है जीभ बाहर निकल आती है और दांत नहीं जमते हैं.
हिस्टीरिया रोग प्रायः महिलाओं को होता है जबकि मिर्गी पुरुषों को भी होता है.
हिस्टीरिया के दौरे की दशा में मल-मूत्र नहीं निकलता है, जबकि मिर्गी के दौरे पड़ने पर प्रायः मल- मूत्र निकल जाता है.
हिस्टीरिया के दौरे पड़ने पर चेहरे का रंग पीला अथवा लाल हो जाता है, जबकि मिर्गी के दौरे पड़ने पर चेहरे का रंग नीलापन लिए हुए होता है.
हिस्टीरिया के दौरे होने पर चेहरे में कोई खिचाव नहीं होती है जबकि मिर्गी के दौरे पड़ने पर चेहरा एक तरफ को खींच जाता है.
हिस्टीरिया के दौरे की अवस्था में खर्राटे की आवाज नहीं होती है जबकि मिर्गी के दौरे में खर्राटे की आवाज बहुत अधिक होती है.
हिस्टीरिया की दौरे की स्थिति में कभी रोगी हंसता है तो कभी रोता है, जबकि मिर्गी के रोगी में ऐसी स्थिति कभी नहीं होती है.
हिस्टीरिया में शरीर ऐंठ जाता है हाथ- पैर तेजी से फैलते हैं और सिकुड़ते हैं जबकि मिर्गी में शरीर एक तरफ अधिक और एक तरफ कम आता है.
हिस्टीरिया में आंखें बंद रहती है आंखों के पलकों में फड़कन मिलती है जबकि मिर्गी में आंखें एक तरफ खुली रहती है और ऊपर को चढ़ जाती है.
हिस्टीरिया में पूतलियां प्रकार से सिकुड़ जाती है जबकि मिर्गी में ऐसा नहीं होता है
हिस्टीरिया में पेट में एक गोला सा उसका है जो ऊपर को छोड़कर गले में अटक जाता है और बेहोशी उत्पन्न हो जाती है जबकि मिर्गी में ऐसा नहीं होता है बल्कि हाथ राम कथा पीठ से सर सराहन उत्पन्न होकर बेहोशी उत्पन्न हो जाती है
हिस्टीरिया का दौरा सोते समय कभी नहीं पड़ता है जबकि मिर्गी का दौरा सोने की स्थिति में ही पड़ सकता है
हिस्टीरिया का दौरा देर तक रहता है जबकि दिल्ली में ऐसा नहीं होता है
हिस्टीरिया के दौरे के बाद पेशाब अधिक आता है जबकि मिर्गी में ऐसा नहीं होता है.
पूर्वानुमान-
हिस्टीरिया रोग जिसको एक बार हो जाता है बहुत ही कठिनता से जाता है.
गर्भाशय अथवा डिम्बाशय आदि के रोग के परिणाम स्वरुप यह रोग होने पर उचित चिकित्सा करने पर इसके ठीक होने की आशा अधिक रहती है.
यदि रोगिणी का विवाह नहीं हुआ है तो विवाह कर देने से रोग खुद ही ठीक हो जाता है.
विवाह होने के कुछ वर्षों बाद जब महिला एक- दो बच्चे की मां बन जाती है तब इस रोग में कमी आ जाती है.
जब रोग युवा अवस्था में उत्पन्न होता है तब बड़ी आयु होने पर रोग धीरे-धीरे कम होने लगता है.
जब रोग मस्तिष्क की खराबी से उत्पन्न होता है तब मानसिक चिकित्सा करने पर कुछ हद तक ठीक होने की संभावना अधिक रहती है.
नोट- अच्छा हो जाने पर यह रोग जिसे पुनः होता है उसमें इसकी बारंबार पुनरावृत्ति होती है.
हिस्टीरिया रोग की सामान्य चिकित्सा-
रोगी को पहले के वातावरण से हटाकर रखने वातावरण में रखने तथा उचित औषधि चिकित्सा द्वारा रोगी के तन मन को शांति रखने का प्रयास करना चाहिए.-
वेग के समय अन्य व्यक्तियों से अलग रखना चाहिए, साथ ही उसे हर प्रकार के विक्षोभों से बचाना चाहिए.
सिर और गर्दन पर ठंडे पानी से तर किया हुआ कपड़ा रखना चाहिए.
मन और शरीर को शांति तथा बलवान बनाने का प्रयास करें.
रोग के शारीरिक अथवा मनोवैज्ञानिक कारणों का पता लगाने का प्रयत्न करना चाहिए तथा चिकित्सा करनी चाहिए.
स्नायु दुर्बलता दूर करना ही इस रोग की सफलतम चिकित्सा है.
रोगी को नित्य सामान्य प्रकार का व्यायाम तथा सैर आवश्यक है.
रोगिणी महिला को पति का भरपूर प्यार मिलना चाहिए, उसकी कामेच्छा की पूर्ण संतुष्टि आवश्यक है.
रोगिणी को होश में लाने के लिए स्मैलिंग साल्ट अथवा लाईकर अमोनिया फोर्ट सुंघाना चाहिए.
रोगी को किसी न किसी कार्य में व्यस्त रखना चाहिए, उनकी रुचि को बदलना जरूरी है.
दौरे के समय रोगी से सहानुभूति प्रदर्शित न करें.
रोगी को चिंता रहित रखने का प्रयास करें.
रोगी का पेट साफ रखना आवश्यक है यदि उसे कब्जियत की शिकायत हो तो इसे दूर करने का उपाय करना चाहिए.
हिस्टीरिया दूर करने के आयुर्वेदिक उपाय-
1 .सबसे पहले हिस्टीरिया रोग किस कारण हुआ है उसका पता लगाकर उसे दूर करने का उपाय करनी चाहिए.
2 .बेहोशी की हालत में मुख पर ठंढे पानी के छींटें लगाने चाहिए. खुली हवा और एकांत में रखना चाहिए. प्याज काटकर या तम्बाकू या कायफलादि चूर्ण सुंघाना चाहिए. पैर के तलवों में सुई आदि से गुदगुदी करें जिससे उसकी मूर्च्छा टूट जाए.
3 .रोगी की मूर्च्छा टूटने पर अपतंत्रादि वटी या नवजीवन वटी या कस्तूरी वटी 2-2 वटी सुबह- शाम दूध के साथ सेवन कराएं. और अमरसुंदरी वटी और सरस्वती वटी 2-2 वटी सुबह-शाम सेवन कराएं.
4 .अश्वगंधारिष्ट 20-20 ml सुबह -शाम उतना ही पानी मिलाकर पिलाएं.
5 .हिस्टीरिया रोग के लिए अग्नितुंडी वटी, सारस्वत चूर्ण, हींग-कर्पुर वट, ब्राम्ही वटी या चूर्ण, मुक्तापिष्टी, संगईराव पिष्टी, कुमार्यासव, भार्ग्यादी क्वाथ और सारस्वतारिष्ट भी उत्तम है अतः चिकित्सक की देखरेख में इनका सेवन कराना चाहिए.
हिस्टीरिया का घरेलू उपाय-
1 .शहद-हिस्टीरिया रोग क्या है ? जाने के कारण, लक्षण और आयुर्वेदिक एवं घरेलू उपाय
हिस्टीरिया पीड़ित रोगी को प्रतिदिन एक चम्मच की मात्रा में दिन में तीन बार शहद का सेवन कराना चाहिए. इससे कुछ ही दिनों में आराम मिलने लगता है.
2 .जटामांसी-
मिट्टी के बर्तन में आधा किलो पानी भरकर इसमें जटामांसी, रास्ना, पीपल पेड़ की जटा, एरंड की जड़ की छाल, सोठ, अजवाइन, एलुवा 3- 3 ग्राम की मात्रा में भिगोकर रात को रख दें. अब सुबह इसे उबालें. जब पानी 50 ग्राम रह जाए तो इसे छानकर रोगी को पिलायें.
3 .केले का तना-
केले के तने का ताजा रस निकालकर एक- एक गिलास प्रतिदिन सुबह, दोपहर, शाम पिलाने से हिस्टीरिया मरीजों में अच्छा लाभ होता है. यह हिस्टीरिया मरीज के लिए अचूक उपाय माना जाता है.
4 .धनिया-
25 ग्राम धनिया और 10 ग्राम सर्पगंधा मिलाकर चूर्ण बना लें. इस चूर्ण में से 1- 2 ग्राम की मात्रा में रात को सोते समय पानी के साथ हिस्टीरिया के मरीज को सेवन कराएं. इससे नींद अच्छी आएगी और हिस्टीरिया से आराम मिलने लगेगा.
5 .चुकंदर-
एक कप चुकंदर के ताजे रस में एक चम्मच आंवले का रस मिलाकर प्रतिदिन सुबह खाली पेट पिलाएं. नियमित रूप से 1 महीने तक पीने से हिस्टीरिया रोग में अच्छा लाभ मिलेगा.
6 .हींग-
जब भी हिस्टीरिया का दौरा पड़े तो हींग सुंघाए. इससे रोगी को तुरंत आराम मिलेगा. आधा ग्राम से 1 ग्राम हींग प्रतिदिन नियमित रूप से खाने से लाभ मिलेगा. हींग का सेवन दाल- सब्जी इत्यादि में मिलाकर करना हिस्टीरिया रोग में काफी लाभदायक होता है.
7 .लहसुन-
लहसुन की एक कली छीलकर 4 गुना दूध और 4 गुना पानी मिलाकर धीमी आंच पर पकाएं. जब दूध आधा रह जाए तो उसे मरीज को थोड़ा-थोड़ा करके पिलाने से अच्छा लाभ होता है.
8 .काली हरड़-
काली हरड़ को अरंडी के तेल में भूनकर चूर्ण बना लें. प्रतिदिन 5 ग्राम इस चूर्ण के सेवन से हिस्टीरिया में लाभ होता है.
हिस्टीरिया के मरीज को क्या खाना चाहिए ?
हिस्टीरिया के मरीज को हरी सब्जियां जैसे पालक, मेथी, खीया, तोरई, गाजर,. मूली इत्यादि चीजों का सेवन करना चाहिए गाय का दूध, नारियल का पानी, छाछ पीना चाहिए. दूध में 10- 12 किशमिश और एक चम्मच शहद मिलाकर पीना फायदेमंद होता है. प्रतिदिन सुबह-शाम आंवले का मुरब्बा भोजन के साथ सेवन करना लाभदायक है., संतरा मौसमी, अनार, पपीता आदि खाने चाहिए. गेहूं के आटे की रोटी, पुराना चावल, दलिया, मूंग की दाल, मसूर का दाल सेवन करना चाहिए.
हिस्टीरिया के मरीज को क्या नहीं खाना चाहिए ?
तले- भुने खाद्य पदार्थ, तेज मिर्च- मसालेदार भोजन और चटपटे खाद पदार्थ, गुड़, तेल, हरी लाल मिर्च, खटाई, आचार, मांस, मछली, अंडा, चाय, कॉफी, चॉकलेट, शराब, तंबाकू, खैनी, गुटखा व अन्य नशीले पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए.
नोट- यह लेख शैक्षणिक उदेश्य से लिखा गया है. किसी भी उपयोग से पहले योग्य चिकित्सक की सलाह लें और चिकित्सक की देखरेख में ही उपर्युक्त दवाओं का सेवन करें. धन्यवाद.
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