दोस्तों, भगवान शिव के बारे में ऐसा कहा जाता है कि भगवान् शिव त्रिलोक के आदि और अंत के देवता हैं. जिनके आगे दुनिया की सभी शक्तियां असफल हो जाती है. लेकिन क्या आपको मालूम है कि आखिर भगवान शिव का जन्म कैसे हुआ था? उनकी माता कौन थी और उनके पिता का क्या नाम था? उन्होंने किससे अपनी शिक्षा प्राप्त की थी और सिर्फ किसको शिक्षा का दान दिया था? तो दोस्तों यह सभी जरूरी जानकारियां आप भी प्राप्त करना चाहते हैं तो इस लेख को अंत तक जरूर पढ़ें.
भगवान शिव का जन्म कैसे और कब हुआ ? जाने असली सच्चाई |
दोस्तों, सबसे पहले भगवान शिव के जन्म से जुड़ी पहली कहानी यानी शिव के एक लोकप्रिय कथा के बारे में बताने वाले हैं. शिव पुराण के अनुसार भगवान शिव को स्वयं भू माना जाता है. जिसका मतलब होता है कि भगवान शिव का जन्म स्वयं ही हुआ था यानी कि इससे एक बात तो साफ हो जाती है कि ना ही भगवान शिव का कोई माता है और ना ही उनके कोई पिता है. इसी कारण से भगवान शिव पंचतत्व से भी परे हैं जिस कारण उन्हें मृत्यु का भी कोई भय नहीं है और उनकी मृत्यु कभी नहीं हो सकती.
दोस्तों, विष्णु पुराण की कथा के अनुसार भगवान शिव के जन्म से जुड़ी एक और कहानी के बारे में विष्णु पुराण में बताया गया है कि भगवान विष्णु के माथे से निकलने वाले तेज के कारण भगवान शिव की उत्पत्ति हुई थी और उनके नाभि से निकलते हुए तेज से कमल पर विराजमान ब्रह्मा का जन्म हुआ था.
लेकिन दूसरी ओर भगवान विष्णु के जन्म के बारे में शिव पुराण में बताया गया है कि एक बार की बात है जब भगवान शिव अपने घुटने मल रहे थे और उनके घुटनों से निकलने वाले मैल से भगवान श्री विष्णु जी का जन्म हुआ था. पर अगर ऐसा हुआ है तो विष्णु पुराण और शिव पुराण एक दूसरे से बिल्कुल अलग है. इस कथा के अलावा भगवान शिव के जन्म की और एक पौराणिक कथा काफी ज्यादा प्रसिद्ध है जिसे शायद आप बड़े बुजुर्गों से सुने होंगे.
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भगवान शिव का जन्म कैसे और कब हुआ ? जाने असली सच्चाई |
लेकिन अगर नहीं सुना तो आपकी जानकारी के लिए बता दें कि एक बार की बात है. जब भगवान विष्णु और परम ब्रह्मा जी के बीच इस बात पर बहस हो गई कि आखिर इस संसार में सबसे महान कौन है और जब भगवान विष्णु और भक्त ब्रह्मा इस बात को लेकर बरस कर रहे थे तो एक जलते हुए खंबे के रूप में महादेव उनके बीच आए थे.
दोस्तों, वह दोनों इस रहस्य को नहीं समझ पाए और तभी अचानक से एक आवाज आई जिसमें कहा कि जो भी इस खंभे का छोर ढूंढ लेगा वही सबसे महान कहलाएगा. ऐसा सुनते ही ब्रह्मा जी ने एक पक्षी का रूप धारण किया और खंभे का ऊपरी हिस्सा ढूंढने निकल गए. वहीं विष्णु जी वैराह का रूप धारण किया और खंभे का अंत ढूंढने के लिए निकल गए बहुत देर तक खोजने के बाद भी दोनों में से किसी को खंबे का छोर नहीं मिला और दोनों हार मानकर आ गए. इसके बाद भगवान शिव अपने असली रूप में आए और फिर भगवान विष्णु और ब्रह्मा ने यह मान लिया कि महादेव ही सबसे महान और शक्तिशाली है.
इनसे बड़ी शक्ति इस दुनिया में कोई नहीं है. इसके साथ ही शिव पुराण में बताया गया है कि खंभा इस बात को दर्शाता है कि ना ही भगवान शिव जन्मे थे और ना ही उनका कोई अंत है और एक कारण तो यही है कि भगवान शिव को स्वयं भू भी कहा जाता है यानि भगवान शिव का अंत है ही नहीं. वह अमर है. अब हम बात करते हैं भगवान शिव से जुड़े एक ऐसे विषय के बारे में जो सबसे ज्यादा प्रसिद्ध है कि क्या भगवान ब्रह्मा भगवान शिव के पिता है? जी हां उनकी यह कहानी लोगों के बीच काफी प्रसिद्ध है तो आपको बता दे कि आखिर किस प्रकार भगवान शिव ने पुत्र के रूप में जन्म लिया था.
विष्णु पुराण की एक पौराणिक कथा के अनुसार जब धरती, आकाश, पाताल या कहे कि पूरा ब्रह्मांड जलमग्न हो गई यानी पानी से डूब गया था तब भगवान विष्णु के अलावा कोई भी देव या प्राणी इस संसार में नहीं था. तब केवल विष्णु ही जल सतह पर अपने शेषनाग पर लेटे हुए नजर आ रहे थे. जिसके बाद उनकी नाभि से कमल की डंडी पर ब्रह्मा जी प्रकट हुए और जब भगवान ब्रह्मा और भगवान विष्णु ब्रह्मांड से संबंधित बातें कर रहे थे. तब भगवान शिव प्रकट हुए. इसके बाद ब्रह्मा ने उन्हें पहचानने से इनकार कर दिया. इस कारण से भगवान शिव रूठ गए और उनके रूठ जाने के कारण भगवान विष्णु ने उन्हें दिव्य दृष्टि प्रदान कर ब्रह्मा जी को भगवान शिव की याद दिलाई.
इसके बाद भगवान ब्रह्मा को अपनी गलती का एहसास हुआ और भगवान शिव से क्षमा मांगते हुए. उन्होंने उनसे अपने पुत्र रूप में पैदा होने का आशीर्वाद मांगा. जिस कारण भगवान शिव ने भगवान ब्रह्मा की प्रार्थना को स्वीकार करते हुए उन्हें आशीर्वाद दे दिया. लेकिन इसके बाद जब भगवान ब्रह्मा ने इस सृष्टि की रचना शुरू की तो उन्हें एक बच्चे की जरूरत पड़ी और तब उन्हें भगवान शिव का आशीर्वाद ध्यान आया. इसके लिए भगवान ब्रह्मा ने तपस्या की और बालक के रूप में भगवान शिव उनकी गोद में रोते हुए प्रकट हुए.
आपको बता दें कि यह भगवान शिव का एकमात्र बाल रूप है. जब भगवान ब्रह्मां ने उनके रोने का कारण पूछा तो उन्होंने बताया कि उनका कोई नाम नहीं है. तब भगवान ब्रह्मा ने भगवान शिव का नाम रूद्र रख दिया. जिसका मतलब होता है रोने वाला. लेकिन इसके बावजूद भी भगवान शिव चुप नहीं हुए. इसलिए ब्रह्मा ने उन्हें दूसरा नाम दिया लेकिन वो भी नाम पसंद नहीं आया और फिर भी चुप नहीं हुए. इस तरह उन्हें चुप कराने के लिए भगवान ब्रह्मा ने भगवान शिव को 108 नाम दिए थे जो रूद्र, सर्व, उग्र, भीम, पशुपतिनाथ, ईशान और महादेव जैसे नाम थे और शिव पुराण के अनुसार उनके यह नाम पृथ्बी पर लिखे गए थे.
श्री देवी पुराण के कथा के अनुसार भगवान शिव के माता और पिता के बारे में बताया गया है श्री देवी पुराण के अनुसार देखा जाए तो एक बार जब भगवान नारद ने अपने पिता भगवान ब्रह्मा से पूछा कि सृष्टि का निर्माण किसने किया है. साथ ही भगवान विष्णु, भगवान शिव और आपके माता पिता कौन हैं? तब भगवान ब्रह्मा जी ने नाराज हो त्रिदेव के जन्म के बारे में बताया जो कि वाकई चौका देने वाली बात थी.
दरअसल उन्होंने कहा कि देवी दुर्गा और शिल्प स्वरूप ब्रह्मा के योग से ब्रह्मा, विष्णु और महेश का जन्म हुआ था. यानी प्रकृति का रूप लिए मां दुर्गा ही हम तीनों की माता है और ब्रह्मा यानी काल शिव सदा हमारे पिता है. इसके साथ ही श्रीमती देवी पुराण में भी भगवान विष्णु और भगवान ब्रह्मा के बीच हुए झगड़े की एक कहानी मिलती है. जिसके अनुसार एक बार श्री ब्रह्मा और विष्णु जी में झगड़ा हुआ और दोनों में यह बहस छिड़ी हुई थी. तब भगवान ब्रह्मा ने कहा कि सृष्टि को मैंने बनाया है और मैं ही प्रजापिता हूँ. जिसके जवाब में भगवान विष्णु जी ने कहा कि मैं आपका पिता हूं क्योंकि आप मेरी नाभि से निकले हुए कमल से पैदा हुए हैं और धीरे-धीरे ये बहस बढ़ती गई. दोस्तों, इसके बाद इन दोनों का झगड़ा सुनकर सदाशिव वहां पहुंचे और उन्होंने कहा कि मैंने ही उनको इस संसार को बनाने और इसे संभालने के केवल दो काम दिए हैं. इसी प्रकार मैंने शंकर और रुद्र को संहार और तीरों गति के कार्य दिए हैं. इसके साथ ही उन्होंने कहा कि मेरे पास पांच मुख है एक से आकार, दूसरे मुख से उकार, तीसरे मुख से मुकार और चौथे मुख से बिंदु और पांचवें मुख से शब्द प्रकट हुए हैं. उन्हीं पांचों को एक साथ मिलाकर देखा जाए तो एक अक्षर ॐ बनता है जिसे आज हम सभी भगवान शिव के मूल मंत्र के रूप में जानते हैं. इतना कहने के बाद भगवान ब्रह्मा और विष्णु दोनों ही समझ गए कि भगवान शिव से ज्यादा शक्तिशाली इस दुनिया में कुछ भी नहीं है और दोनों ने भगवान शिव को प्रणाम किया और चले गए.
चलिए दोस्तों, अब जब आप भगवान शिव के बारे में इतना तो जान ही चुके हैं तो क्या आपको पता है कि आखिर भगवान शिव ने किससे शिक्षा प्राप्त की थी और उनके गुरु कौन थे? हम जानते हैं शायद इसका जवाब आप में से किसी को पता होगा पर जिन्हें नहीं पता उन्हें बता दें कि भगवान शिव स्वयं में संसार के गुरु माने जाते हैं. जिन्होंने संसार में गुरु शष्य की परंपरा की शुरुआत की थी. लेकिन प्रश्न उठता है कि आखिर भगवान शिव किसके गुरु थे तो आपको जरूर जान लेना चाहिए कि हिंदू धर्म के ग्रंथ कहते हैं कि ब्रह्मा और शिवजी इस संसार के सबसे पहले गुरु है. जिन्होंने गुरु शिष्य के इस रिश्ते की शुरुआत की थी. जहां भगवान ब्रह्मा ने मानस पुत्रों को शिक्षा प्रदान की थी वहीं भगवान शिव ने अपना ज्ञान केवल अपने सात शिष्यों को दिया था. यानि भगवान शिव 7 शिष्यों के गुरु थे और वे जिन शिष्यों के गुरु थे उन्हें आज के समय में सप्तऋषि का दर्जा दिया गया है. दोस्तों, अगर आपको यह वीडियो पसंद आई हो तो इस चैनल को सब्सक्राइब कर लें और कमेंट में हर हर महादेव जरूर लिखें. धन्यवाद.
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