कल्याण आयुर्वेद- डायबिटीज एक आजीवन रहने वाली बीमारी है। यह एक मेटाबॉलिक डिसॉर्डर है, जिसमें मरीज़ के शरीर के रक्त में ग्लूकोज़ का स्तर बहुत अधिक होता है। जब, व्यक्ति के शरीर में पर्याप्त मात्रा में इंसुलिन नहीं बन पाता है और शरीर की कोशिकाएं इंसुलिन के प्रति ठीक से प्रतिक्रिया नहीं कर पाती हैं। जैसा कि, इंसुलिन का बनना शरीर के लिए बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह रक्त से शरीर की कोशिकाओं में ग्लूकोज़ का संचार करता है। इसीलिए, जब इंसुलिन सही मात्रा में नहीं बन पाता तो पीड़ित व्यक्ति के बॉडी मेटाबॉलिज्म पर भी इसका प्रभाव पड़ता है।
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डायबिटीज होने के कारण, लक्षण और बचाव के उपाय |
डायबिटीज क्या है? डायबिटीज़ के प्रकार कितने हैं ?
हम जो भोजन करते हैं उससे, शरीर को ग्लूकोज प्राप्त होता है जिसे कोशिकाएं शरीर को ऊर्जा प्रदान करने में उपयोग करती हैं। यदि शरीर में इंसुलिन मौजूद नहीं होता है तो वे अपना काम सही तरीके से नहीं कर पाती हैं और ब्लड से कोशिकाओं को ग्लूकोज नहीं पहुंचा पाती हैं। जिसके कारण ग्लूकोज ब्लड में ही इकट्ठा हो जाता है और ब्लड में अतिरिक्त ग्लूकोज नुकसानदायक साबित हो सकता है। आमतौर पर डायबिटीज़ 3 प्रकार का होता है-
1 .टाइप-1 डायबिटीज
2 .टाइप-2 डायबिटीज और
3 .जेस्टेशनल डायबिटीज, जो कि प्रेगनेंसी के दौरान होने वाली हाई ब्लड शुगर की समस्या है।
डायबिटीज के कारण क्या हैं ?
जब शरीर सही तरीके से रक्त में मौजूद ग्लूकोज़ या शुगर का उपयोग नहीं कर पाता। तब, व्यक्ति को डायबिटीज़ की समस्या हो जाती है। आमतौर पर डायबिटीज के मुख्य कारण ये स्थितियां हो सकती हैं-
इंसुलिन की कमी
परिवार में किसी व्यक्ति को डायबिटीज़ होना
बढ़ती उम्र
हाई कोलेस्ट्रॉल लेवल
एक्सरसाइज ना करने की आदत
हार्मोन्स का असंतुलन
हाई ब्लड प्रेशर
खान-पान की ग़लत आदतें
डायबिटीज़ के लक्षण क्या हैं ?
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डायबिटीज होने के कारण, लक्षण और बचाव के उपाय |
बहुत अधिक प्यास लगना
बार-बार पेशाब आना
भूख बहुत अधिक लगना
अचानक से शरीर का वजह कम हो जाना या बढ़ जाना
थकान
चिड़चिड़ापन
आंखों के आगे धुंधलापन
घाव भरने में बहुत अधिक समय लगना
स्किन इंफेक्शन
ओरल इंफेक्शन्स
वजाइनल इंफेक्शन्स
डायबिटीज का निदान क्या है ?
डायबिटीज या मधुमेह के लक्षण दिखने पर डॉक्टर से सम्पर्क करना चाहिए। डायबिटीज़ के निदान के लिए इस प्रकार के कुछ टेस्ट कराने की सलाह दी जा सकती है-
ए1सी टेस्ट (A1C test or glycohaemoglobin test)
इस प्रकार का टेस्ट टाइप 2 डायबिटीज़ के लिए किया जाता है। जिसमें, मरीज़ को हर 3 महीने में एक बार ब्लड टेस्ट कराना होता है और उसका एवरेज ब्लड ग्लूकोज़ लेवल जांचा जाता है। ए1सी टेस्ट में 5 से 10 तक के अंकों में ब्लड में ग्लूकोज़ का स्तर मापा जाता है। अगर टेस्ट रिपोर्ट में 5.7 से नीचे का आंकड़ा दिखाया जाता है तो वह नॉर्मल होता है। लेकिन अगर किसी का ए1सी लेवल 6.5% से अधिक दिखायी पड़ता है तो वह, डायबिटीज़ का मरीज़ कहलाता है।
फास्टिंग प्लाज्मा ग्लूकोज टेस्ट
हाई ब्लड शुगर की स्थिति को समझने के लिए यह सबसे आम ब्लड टेस्ट है। इस टेस्ट के लिए व्यक्ति को खाली पेट रहते हुए ब्लड सैम्पल देना पड़ता है। जिसके लिए 10-12 घंटों तक भूखे रहने के लिए कहा जाता है। उसके बाद फास्टिंग प्लाज्मा ग्लूकोज टेस्ट किया जाता है। यह टेस्ट डायबिटीज या प्रीडायबिटीज का पता लगाने के लिए किया जाता है।
ओरल ग्लूकोज टॉलरेंस टेस्ट
इस टेस्ट में भी खाली पेट रहते ही ब्लड सैम्पल लिया जाता है। यह टेस्ट करने से दो घंटे पहले मरीज को ग्लूकोज युक्त पेय पदार्थ पिलाया जाता है।
रैंडम ग्लूकोज टॉलरेंस टेस्ट
इस प्रकार के टेस्ट में पीड़ित व्यक्ति के ब्लड सैम्पल की 4 बार जांच की जाती है। अगर ब्लड शुगर लेवल दो बार नॉर्मल से ज़्यादा पाया जाता है तो प्रेगनेंट महिला को जेस्टेशनल डायबिटीज होने की पुष्टि की जाती है।
डायबिटीज़ का उपचार क्या है ?
टाइप-1 डायबिटीज का कोई स्थायी उपचार नहीं है इसीलिए, व्यक्ति को पूरी ज़िंदगी टाइप-1 डायबिटीज का मरीज़ बनकर रहना पड़ता है। ऐसे लोगों को इंसुलिन लेना पड़ता है जिसकी मदद से वे अपनी स्थिति को नियंत्रित करने की कोशिश करते हैं। लेकिन, टाइप-2 डायबिटीज के लक्षणों से बिना किसी दवा के प्रतिदिन एक्सरसाइज, संतुलित भोजन, समय पर नाश्ता और वजन को नियंत्रित करके छुटकारा पाया जा सकता है। सही डायट की मदद से टाइप-2 डायबिटीज को नियंत्रित करने में मदद करता है। इसके अलावा कुछ ओरल एंटीबायोटिक्स दवाएं टाइप-2 डायबिटीज को बढ़ने से रोकने में मदद करती हैं।
डायबिटीज से बचाव के उपाय क्या हैं?
डायबिटीज़ एक गंभीर बीमारी है जिससे, आपको आजीवन परेशानियां हो सकती हैं। डायबिटीज़ से पीड़ित व्यक्ति को स्वास्थ्य से जुड़ी कई तरह की परेशानियां झेलनी पड़ सकती हैं। लेकिन, कुछ सावधानियां बरतकर डायबिटीज की बीमारी से बचा जा सकता है।
मीठा कम खाएं। शक्कर से भरी और रिफाइंड कार्बोहाइड्रेट वाला भोजन करने से बचें।
एक्टिव रहें, एक्सरसाइज करें, सुबह-शाम टहलने जाएं।
पानी ज़्यादा पीएं। मीठे शर्बत और सोडा वाले ड्रिंक्स पीने से बचें। आइसक्रीम, कैंडीज़ खाने से भी परहेज करें।
वजन घटाएं और नियंत्रण में रखें।
स्मोकिंग और अल्कोहल लेने से परहेज करें।
हाई फाइबर डायट खाएं,प्रोटीन का सेवन भी अधिक मात्रा में करें।
विटामिन डी की कमी ना होने दें। क्योंकि, विटामिन डी की कमी से डायबिटीज़ का ख़तरा बढ़ता है।
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