कल्याण आयुर्वेद- आधुनिक जीवनशैली के कारण आज केेेेेेे समय में कंपवात रोगियों की संख्या दिन- प्रतिदिन बढ़ती जा रही है. कंपवात तंत्रिका तंत्र के क्षरण के कारण पैदा होने वाला गंभीर रोग है. सामान्य तौर पर कंपवात 60 वर्ष की उम्र के बाद पैदा होनेे वाला रोग है. लेकिन कई आकस्मिक व्याधियों के कारण यह रोग किसी भी उम्र में हो सकती है. महिलाओंं की तुलना में यह रोग पुरुषों में ज्यादा होता है. शुरुआत मेंं इस रोग के लक्षण बहुत ही कम दिखाई देते हैं लेकिन धीरे-धीरे बढ़तेे ही चले जाते हैं.
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कंपवात क्या है ? जाने कारण, लक्षण और आयुर्वेदिक एवं घरेलू उपाय |
आयुर्वेद के अनुसार वात नामक दोष के बढ़ जाने से उत्पन्न होता है. यही बढ़ा हुआ वायु नाड़ी मंडल की स्थिरता को नष्ट कर देता है. इस रोग में पेशियों में जड़ता तथा दुर्बलता पैदा हो जाती है जिसके कारण कंपन पैदा होता है.
कंपवात रोग क्या है ?
कंपवात एक आक्षेप वाली बीमारी है जिसमें अनियमित तथा जर्की हरकतें होती है. यह एक पुराना स्नायविक रोग है. कभी-कभी यह पैतृक प्रभावों से भी होता है यानि यदि पिता या दादा को यह बीमारी हो तो उसके बच्चे को भी हो सकता है. इस रोग में चेहरा, कमर एवं गर्दन नहीं मुड़ती है तथा आंखें नहीं झपकती. रोगी छोटे- छोटे कदम उठाता है उसका सिर, हाथ, पैर जीभ और अन्य अंग अकारण भी हिलते- डुलते और कांपते रहते हैं.
कंपवात होने के कारण-
कंपवात रोग होने से निम्न कारण माने जाते हैं.
* मुख्य उद्दीपक कारण- क्रोध, भय, मेरुदंड में चोट का लगना, मासिक धर्म की गड़बड़ी या मासिक धर्म का अनियमित होना इत्यादि.
* आमवात बुखार, खसरा एवं स्कार्लेट फीवर आदि संक्रामक बीमारियों के कारण.
*स्नायविक एवं अवसाद रोग से ग्रस्त परिवार के बच्चे इस रोग से अधिक प्रभावित होते हैं.
कंपवात रोग के लक्षण-
1 .बालक में उग्र स्वरूप की हरकतें के साथ ही शरीर में कंपन होता है तथा वह कुर्सी यां चारपाई से नीचे गिर जाता है.
2 .रोगी को लेटने- बोलने तथा चलने में अत्यधिक कष्ट होता है.
3 .हाथ, पैर, मुख मंडल में अनैच्छिक कंपन होता रहता है.
4 .पूरा शरीर इधर- उधर हिलता-डुलता रहता है.
5 .रोगी को देखने से ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे उसका पूरा शरीर नृत्य कर रहा है.
6 .कभी-कभी रोगी में संज्ञाहीनता तथा दृष्टिगत निर्मूल भ्रम की अवस्था भी उत्पन्न हो जाती है.
7 .कंपवात के कुछ रोगियों में लकवा के लक्षण उत्पन्न हो जाते हैं. जिसका प्रभाव किसी एक हाथ अथवा दोनों हाथों पर पड़ता है. इस प्रकार से रोगी का प्रभावित अंग बेकार हो जाता है.
8 .चेहरे एवं हाथों की मांसपेशियों में कठोरता आना.
9 .धीमी एवं लड़खड़ाती चाल, कदम कमजोर, चलते समय आगे की तरफ झुका होना और छोटे- छोटे कदम, चलने में गिर जाने का डर लगना.
10 .भाव सुन्यता, मानो चेहरे पर कुछ लगा हुआ है ऐसा हमेशा महसूस होता है.
11 .बात करने में कठिनाई एवं तकलीफ होना अथवा आवाज पर नियंत्रण नहीं रहना.
12 .निगलने में कठिनाई एवं तकलीफ होना, कब्ज की समस्या बनी रहना.
13 .चिंता एवं अवसाद अथवा डिप्रेशन से पीड़ित रहना, स्मरण शक्ति में कमी आना.
14 .मन:स्थिति की अस्थिरता रहना.
कंपवात रोग का आयुर्वेदिक एवं घरेलू उपाय-
1 .हाथ- पैर कांपने पर गोरखमुंडी तथा लौंग का चूर्ण बराबर मात्रा में लेकर एक साथ मिलाकर सुरक्षित रख लें. अब इसमें से 2 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम सेवन करें.कंपवात क्या है ? जाने कारण, लक्षण और आयुर्वेदिक एवं घरेलू उपाय
2 .कंपवात रोगियों को नियमित रूप से बड़ी हरड़ के चूर्ण का सेवन करना फायदेमंद होता है.
3 .कंपवात रोग से पीड़ित रोगियों को एक चम्मच सोंठ का चूर्ण देसी गाय के एक कप गर्म दूध में मिलाकर सुबह-शाम पीने से काफी लाभ होता है.
4 .इस रोग से पीड़ित रोगियों को अलसी का सेवन किसी न किसी रूप में हमेशा करते रहना चाहिए क्योंकि अलसी बेहतरीन एंटीऑक्सीडेंट है जो रेटीना और दिमाग की कोशिकाओं का विकास करता है. जिससे स्मरण शक्ति और एकाग्रता बढ़ती है.
5 .विटामिन सी तथा विटामिन ई का नियमित सेवन करना इस रोग में काफी लाभदायक होता है. इसके पीछे कारण यह है कि यह दोनों विटामिन मस्तिष्क में बैसल गैंग्लिया में रहने वाली कोशिकाओं को नष्ट होने से बचाते हैं.
जानकारी के लिए बता दें कि विटामिन सी के कुदरती स्रोत नींबू प्रजाति के फल, ब्रोकली, लाल मिर्च, गहरे एवं हरे रंग वाले फल एवं सब्जियां जैसे कीवी, प्राची चोला की फली, ग्वार की फली, पालक, भिंडी, करेला, लौकी, अंकुरित धान, बंद गोभी, हरी मिर्च, हरा धनिया, हरे अंगूर, स्ट्रॉबेरी, आंवला इत्यादि हैं.
विटामिन ई के स्रोत अंकुरित गेहूं, बादाम, सूरजमुखी के बीज, साबुत धनिया, हरी सब्जियां, मूंगफली, मटर, सोयाबीन, दूध, काजू, पिस्ता, वेजिटेबल ऑयल इत्यादि. अतः कंपवात के रोगियों को इन चीजों का सेवन करना चाहिए.
6 .बुढ़ापे के कारण पैदा हुए रोग से पीड़ित व्यक्ति को गेहूं के ज्वारे का रस नियमित रूप से पीने से काफी लाभ होता है.
7 .मृत प्राणदा रस 2 वटी सुबह- शाम दूध या चाय के साथ सेवन करें और महायोगराज वटी या लशुनादी वटी 2 वटी सुबह- शाम महारस्नादि 20 ml के साथ सेवन करें.
8 .शरीर को गरम रखें एवं वृहत वात चिंतामणि रस और मल चंद्रोदय का सेवन करना उत्तम है.
9 .लहसुन, अश्वगंधा, तगर, ब्राह्मी, अफीम, कुचला गुग्गुल आदि का सेवन करना लाभदायक होता है.
10 .कंपवात में नसों को ताकत देने वाले औषधियों का सेवन कराना चाहिए.
नोट- यह लेख शैक्षणिक उदेश्य से लिखा गया है किसी भी प्रयोग से पहले योग्य चिकित्सक की सलाह जरुर लें. धन्यवाद.
चिकित्सा स्रोत- आयुर्वेद ज्ञान गंगा पुस्तक.
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